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राज्यसभा चुनाव: कांग्रेस में मचे घमासान से क्या पार्टी जीत लेगी सभी 10 सीटें?

पिछले आठ साल से कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर है लेकिन राज्यसभा चुनाव को लेकर पार्टी में जैसा घमासान अब देखने को मिल रहा है,वैसा शायद पहले कभी नहीं हुआ होगा. कांग्रेस के पास अपने 10 सदस्यों को उच्च सदन में भेजने लायक बहुमत है लेकिन इनमें से ऐसा कोई राज्य नहीं है,जहां से पार्टी नेताओं के विरोध व विद्रोह की आवाज न उठ रही हो.इसलिये सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस अपने सभी 10 सदस्यों को संसद भेजने में कामयाब हो पायेगी या फ़िर एक -दो सीटों पर इस खींचतान का फायदा बीजेपी उठा ले जायेगी? इसलिये भी कि दो मीडिया मालिकों ने मैदान में कूदकर कांग्रेस का पूरा गणित बिगाड़ दिया है.

कांग्रेस के लिए ये स्थिति इसलिये भी ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि राज्यसभा का सदस्य चुनने का जिम्मा विधायकों पर होता है,जहां आम जनता की कोई भागीदारी नहीं होती.लिहाजा, जब इस चुनाव में उम्मीदवारों के चयन को लेकर पार्टी नेतृत्व पर भीतर से ही इतने सवाल उठ रहे हैं, तब ऐसी हालत में दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस किस ताकत के साथ बीजेपी का मुकाबला कर पायेगी.

दरअसल, राज्यसभा के लिए 10 नेताओं के नाम की लिस्ट जारी होने के बाद कांग्रेस में जिस तरह से बगावत के सुर उठे हैं,उसकी उम्मीद भले ही पार्टी आलाकमान को न रही हो लेकिन सोचने वाली बात ये भी है तो है कि उम्मीदवार के चयन का पैमाना आखिर क्या रखा गया.जो शख्स पिछला लोकसभा का चुनाव कई लाख वोटों से हार गया हो,उसे किस आधार पर राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया गया,इसके खिलाफ अपनी आवाज उठाने का हक़ पार्टी नेताओं को नहीं होगा तो भला और किसे होगा?यूपी से आने वाले कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी के नाम पर सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है.कांग्रेस ने इमरान प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र से राज्यसभा भेजने की घोषणा की है. इमरान के नाम पर पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा और फिल्मों से आकर कांग्रेस का हाथ थामने वाली नगमा भी इस पर अपना तीखा विरोध जता चुकी हैं.

महाराष्ट्र् के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चौहान ने भी इमरान के नाम पर विरोध जताते हुए कहा है कि ये गलत फैसला है.पार्टी को इसकी बजाय मुकुल वासनिक को ही महाराष्ट्र से राज्यसभा में भेजना चाहिए था. पार्टी ने वासनिक को राजस्थान से उम्मीदवार बनाया है.उम्मीदवारों के चयन से नाराज नेताओं की लिस्ट और लंबी होती जा रही है. महाराष्ट्र के काटोल से पूर्व विधायक आशीषराव देशमुख ने प्रदेश कांग्रेस के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने एक चिट्ठी लिखकर इसका ऐलान किया है.

माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व ने इमरान के नाम पर मुहर लगाकर 'मुस्लिम कार्ड' खेलने की कोशिश की है,ताकि दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में उन्हें कांग्रेस के नजदीक लाया जा सके.लेकिन शायद ही कोई ऐसा नेता हो,जिसने इमरान प्रतापगढ़ी के नाम का खुलकर विरोध न किया हो.पार्टी नेता नेता विश्वबंधु राय ने भी विरोध जताते हुए सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में कहा है, 'क्या पार्टी आलाकमान सिर्फ दिल्ली दरबारी करनेवालों को ही निष्ठावान और पार्टी को मजबूती प्रदान करने योग्य समझती है?' उनके मुताबिक इमरान प्रतापगढ़ी मुरादाबद लोकसभा सीट से करीब 6 लाख वोट से चुनाव हार चुके हैं.वह अभी तक नगर निगम का चुनाव भी नहीं जीत सके हैं.अब उन्हें राज्यसभा में भेजा जा रहा है.

इसी तरह कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए पार्टी नेतृत्व पर तंज कसा है कि "शायद मेरी तपस्या में ही कुछ कमी रह गई." वहीं कांग्रेस नेता और पूर्व अभिनेत्री नगमा ने लिखा कि "हमारी 18 साल की तपस्या भी इमरान भाई के सामने कम रह गई. पार्टी अध्यक्ष सोनिया जी ने व्यक्तिगत रूप से मुझे 2003-04 में राज्‍यसभा में भेजने के लिए आश्‍वासन दिया था.जब मैं कांग्रेस पार्टी में शामिल हुई थी, उस समय हम सत्ता में नहीं थे, तब से 18 वर्ष हो गए. इमरान प्रतापगढ़ी महाराष्‍ट्र से राज्‍यसभा की उम्‍मीदवारी पा सकते हैं, मैं पूछ रही हूं कि मैं क्‍या कम योग्य हूं?"

दरअसल, कांग्रेस ने सिर्फ महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि राजस्थान से तीन और हरियाणा से जिस एक सीट से अपना उम्मीदवार तय किया है,वे सभी बाहरी हैं.यानी उनका उस प्रदेश से कोई नाता नहीं है.ऐसी सूरत में इन प्रदेशों के वरिष्ठ नेताओं के नाराज होने और बगावत की आवाज उठाने को गलत नहीं कहा जा सकता.

हरियाणा में तो कांग्रेस को अब अपने ही विधायकों के क्रॉस-वोटिंग का डर सता रहा है. हरियाणा में राज्यसभा की दो सीटों के लिए तीन उम्मीदवारों के मैदान में आने से वहां मतदान होना तय है. ताजा सियासी हालात और हरियाणा के पुराने अनुभव को देखते हुए कांग्रेस अपने विधायकों को इकट्ठा करने में जुट गई है.चर्चा है कि कांग्रेस हरियाणा के विधायकों को अब राजस्थान या छत्तीसगढ़ शिफ्ट कर सकती है. 90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस के पास 31 विधायक हैं. पार्टी ने अपने राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन को उम्मीदवार बनाया है. जीत के लिए एक उम्मीदवार को 31वोट चाहिए. यानी कांग्रेस के पास विधायकों का संख्याबल है लेकिन विधायक कुलदीप बिश्नोई पार्टी से नाराज चल रहे हैं. विश्नोई के अलावा यदि कांग्रेस का एक विधायक भी टूटा तो माकन के लिए ये जीत मुश्किल हो जाएगी.

दरअसल,हरियाणा में एक निर्दलीय उम्मीदवार ने मैदान में कूदकर कांग्रेस का सारा समीकरण गड़बड़ा दिया है, इसीलिए पार्टी को अपने विधायकों की किलेबंदी करनी पड़ रही है.बीजेपी और कांग्रेस के एक-एक उम्मीदवार के अलावा नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन जेजेपी के समर्थन से मीडिया उद्यमी कार्तिकेय शर्मा ने भी निर्दलीय पर्चा भर दिया है. कार्तिकेय शर्मा के पिता विनोद शर्मा हुड्डा सरकार में मंत्री रह चुके हैं और उन्हें हुड्डा का करीबी भी माना जाता है. जेजेपी बीजेपी के साथ हरियाणा की गठबंधन सरकार में शामिल है.

बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि वहां से कांग्रेस जीत सके,इसलिये अपने उम्मीदवार के अलावा बीजेपी भी कार्तिकेय शर्मा को जिताने की पूरी कोशिश करेगी.जाहिर है कि इसके लिए कांग्रेस के कुछ विधायकों को तोड़ने की कोशिश भी की जाएगी. कुछ ऐसा ही हाल राजस्थान का भी है. वहां भी चार राज्यसभा सीटों पर पांच उम्मीदवार आने से सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल गए है. कांग्रेस के तीसरे उम्मीदवार प्रमोद तिवारी की जीत अब इतनी आसान नहीं रह गई है.वैसे मौजूदा सियासी गणित तो कांग्रेस के पक्ष में है लेकिन बीजेपी समर्थित मीडिया मालिक सुभाष चंद्रा ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर दी है.

हालांकि बीजेपी की चुनौती से निपटने के लिए कांग्रेस ने रणनीति बदली है. बताया जा रहा  है कि कांग्रेस ने जयपुर के एक होटल में विधायकों को प्रशिक्षण के नाम पर उन्हें अपनी निगरानी में रखने की तैयारी कर ली है. कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव के लिए रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी को उम्मीदवार बनाया है और तीनों ही उम्मीदवार बाहरी हैं. कांग्रेस विधायक बाहरी उम्मीदवारों का विरोध कर रहे हैं,इसलिये उनके क्रॉस वोटिंग करने का ख़तरा मंडरा रहा है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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