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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

बिहार में कांग्रेस को अपने दम पर खड़ा करना चाहते हैं राहुल, जातिगत समीकरणों व युवा नेतृत्व पर नजर

इंडिया गठबंधन और टिकटों के बंटवारे को लेकर ये बात लगातार आ रही है कि कांग्रेस पार्टी इस को लेकर बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है. कुछ भ्रम की स्थिति है, इसीलिए चुनाव के इतने करीब आने पर भी अभी तक सारा बंटवारा फाइनल नहीं हुआ है. हालांकि, इसके पीछे अंदर खाने जो बात आ रही है वो ये है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी मानते हैं कि कांग्रेस को खुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और पूरे देश में वो इसके लिए कोशिश भी कर रहे हैं. बिहार में पप्पू यादव के साथ जिस तरह की घटना हुई ये भी सबने देखा है. पप्पू को राजद ने अंतिम समय पर जगह नहीं दी और अब वह पूर्णिया में निर्दलीय लड़ने जा रहे हैं. 

बिहार पर है कांग्रेस की नजर

बिहार में कांग्रेस पार्टी अपने बूते फिर से पुनर्जीवित होना चाह रही है. हालांकि उसका अभी राज्य में संगठन नहीं है, उसके पास बिहार में कार्यकर्ता नहीं है, लेकिन वह शायद इसी के साथ शुरुआत कर भविष्य की तैयारी में है. ये इतने सूक्ष्म विश्लेषण की बात है जिसमें ऊपरी तौर पर आपको कुछ नहीं दिखेगा, लेकिन बहुत गौर से एक-एक तस्वीरों  और एक-एक घटनाओं को विश्लेषित कर इसकी पहचान की जा सकती है, उनसे बहुत कुछ संकेत देखने को मिल सकते हैं.  इन्ही संकेतों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि राहुल गांधी बहुत धीरे से और बहुत ख़ामोशी से पूरे देश में और बिहार में एक तरह से कांग्रेस एक अपना अलग पहचान बनाए और कांग्रेस को पुनर्जीवित किया जाए, इसके प्रयास में लगे हुए हैं. इसी क्रम में क्षेत्रीय दलों के साथ के विरोधाभास और बेहद पतली सी डाल पर संतुलन बनाने की उनकी कवायद भी है. फिलहाल बिहार में कांग्रेस, राजद या किसी अन्य दल के साथ बी या सी पार्टी बनकर खड़ा रहने की मुद्रा में नहीं दिख रही है. यह बात अभी कहने में अजीब सी लगेगी, क्योंकि अभी अगर टिकट बंटवारा देख लें, तो लगता है कि कांग्रेस ने हथियार डाल कर, एक तरह से अपमानजनक समझौते को भी स्वीकार किया है, लेकिन कांग्रेस भविष्य के लिए वर्तमान से समझौता कर रही है और आगे की राह तलाश रही है, नींव के पत्थर लगा रही है. 

राजद और कांग्रेस की गांठ 

कांग्रेस और राजद के बीच की गांठ का एक बेहतरीन उदाहरण हाल-फिलहाल के दिनों में देखने को मिला है, जब कांग्रेस में जाप पार्टी (पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी) का पूर्ण रूप से विलय हुआ. इससे कांग्रेस के मन में एक भ्रम भी खत्म हुआ. क्योंकि राजद ने उनका मान नहीं रखा और पूर्णिया सीट बीमा भारती को दे दी. यहां एक बात ये भी गौर करने की है कि राहुल गांधी कभी भी लालू प्रसाद के साथ बहुत सहज नहीं रहे हैं. उन्होंने हाल-फिलहाल के वर्षों तक लालू के साथ मंच भी साझा करने से गुरेज कर रखा था, भले ही उनकी मां सोनिया से लालू के बड़े अच्छे संबंध हैं. अब राहुल भले ही सबके साथ मंच साझा कर रहे हैं. दूसरी तरफ राजद ने ये मान के रखा था कि पूरा यादव समाज का वोट उसका है, जबकि असलियत यह है कि लोकसभा चुनाव में उनको पूरा का पूरा समर्थन मिलता भी नहीं है. पप्पू यादव जहां से आते हैं, वहां से यादव समाज का पूरा समर्थन उनके साथ है. कांग्रेस ने वहां से अपना प्रत्याशी नहीं उतारा लेकिन पप्पू यादव निर्दलीय के तौर पर वहां से चुनाव लड़ने जा रहे हैं और इस मामले में पूरी तरह से कांग्रेस चुप है. कांग्रेस ने इस पर कुछ ज्यादा विरोध नहीं किया, इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि लालू यादव का ये दांव कांग्रेस को बहुत अच्छा लगा है. बात यह है कि कांग्रेस का पप्पू यादव को अंदरखाने से सपोर्ट है और पप्पू यादव की आईटी टीम के लोगों का भी ये कहना है कि कांग्रेस का तो सपोर्ट है ही, इसके अलावा पप्पू यादव भी बहुत कायदे से इस चुनाव को लड़ रहे हैं. चुनाव के मैदान में वो अच्छी तरह से राजद पर हमलावर भी नहीं है और लालू यादव को पितातुल्य भी कह रहे हैं.

पूर्णिया में पप्पू यादव 

पप्पू यादव की पूर्णिया में स्थिति काफी मजबूत बताई जा रही है और कहीं न कहीं इस बात से कांग्रेस भीतर ही भीतर इन चीजों को लेकर खुश भी है. इसके साथ कांग्रेस ने पप्पू यादव को आगे के लिए भविष्य का अपना तुरुप का पत्ता भी सोच लिया है, सीटों के बंटवारे को लेकर  कांग्रेस के भीतर लोग खुश नहीं हैं और जिस तरह से पार्टी नेतृत्व ने आत्मसमर्पण किया है, उससे भी काफी असंतोष है. पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र देकर जाने का सिलसिला है वो नहीं थम रहा है. अभी हाल में कांग्रेस के तेजतरार प्रवक्ता असिततनाथ तिवारी ने इस्तीफा दिया है. हालांकि इस दौरान उन्होंने कारणों का खुलासा नहीं किया है और उन्होंने इसके लिए व्यक्तिगत कारण बताया है, लेकिन अंदरूनी बातें कुछ और है. पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने इस्तीफा दिया है. जो वर्तमान में बिहार के कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह है, उनके बारे में स्थानीय नेताओं का कहना है कि कांग्रेस ने महागठबंधन से बिहार में सीटों के बंटवारा में कोई खास तोलमोल नहीं किया. जिसके कारण बिहार में कांग्रेस को कम सीटें मिली है. इसका एक खास वजह ये भी है कि अखिलेश प्रसाद सिंह, लालू प्रसाद यादव के कृपा से राज्यसभा पहुंचे थे., इसीलिए वह ठसक के साथ मोलभाव नहीं कर सके. 

बिहार को लेकर कांग्रेस की योजना

पूर्णिया में पप्पू यादव को सहानुभूति का वोट मिलेगा, और इसको भुनाने में वो काफी हद तक काम भी कर रहे हैं. पप्पू यादव पूर्णिया के साथ ही पूरे बिहार में हर जगह सक्रिय रहते हैं, चाहे बाढ़ हो या कोरोना का समय हो. वह अपने बाहुबली की पिछली छवि से काफी हद तक आगे आ चुके हैं. हालांकि, कांग्रेस ये भी नहीं भूली होगी कि महागठबंधन में जब से कांग्रेस आई है तब से राजद ने कांग्रेस को काफी नुकसान किया है और उसमें लालू की अहम भूमिका है. भले ये बात अलग है कि लालू के सोनिया गांधी से अच्छे रिश्ते रहे हों. वर्तमान के या जो पहले के कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं वो भी कांग्रेस को कोई फायदा नहीं पहुंचाया, बल्कि नुकसान ही किया है. बिहार की जातिगत राजनीति बहुत जटिल है और यहां किसी एक जाति का नेतृत्व कर के अपने संगठन को मजबूत नहीं बना सकते, चुनाव जीतने की बात तो काफी दूर की बात है. हालांकि कांग्रेस बिहार और पूरे देश को लेकर साइलेंट प्लानिंग में लगी हुई है. इसका एक उदाहरण कन्हैया कुमार भी है. पिछले दिनों सदाकत आश्रम में कन्हैया कुमार ने एक जोरदार भाषण दिया है. उस भाषण का विश्लेषण किया जाए तो पाया जाएगा कि एक अलग प्लानिंग पर काम हो रही है. उन्होंने कहा है कि बिहार किसी के बाप की बपौती नहीं है. एक उदाहरण बिहार के रहने वाले मुजफ्फरपुर के रहने वाले और दिल्ली यूनिवर्सिटी प्रो. रतनलाल देश के कुछ चुनिंदा दलित-चिंतकों में से एक हैं. पिछले एक महीने में उनकी दो मुलाकात राहुल गांधी से हुई है, इस दौरान उनको बिहार की वास्तविक स्थिति के बारे में अवगत कराया गया है. कांग्रेस फिलहाल अगड़ा-पिछड़ा-दलित यानी APD समीकरण को साधने में लगी है. अल्पसंख्यकों को लेकर कांग्रेस को यह विश्वास हो चला है कि वे वापस उसकी ओर बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं, जुड़ रहे हैं. 

कांग्रेस के बड़े राहुल गांधी लगातार जातिगत जनगणना की बात कर रहे हैं, ओबीसी फैक्टर की भी बात कर रहे हैं. पप्पू यादव जो यादव समाज से आते हैं, कन्हैया कुमार भूमिहार जाति से आते हैं और प्रो. रतनलाल एससी हैं. कांग्रेस इन तीन के सहारे बिहार में एक नया खाका खींचने की तैयारी में है. यह अभी भले दूर की कौड़ी लगे, लेकिन इसी पर कांग्रेस काम कर रही है और लोकसभा चुनाव के बाद शायद इसको आक्रामक तरीके से प्रचारित भी किया जाए. जातिगत हिसाब से देखें भी तो सामान्य वर्ग के लोग, ओबीसी और एससी-एसटी जाति कांग्रेस से कहीं न कहीं दूर हो गए थे. इसको साधने के लिए भी ये एक कदम हो सकता है. पिछले चुनाव में देखें तो सीमांचल को छोड़कर बाकी भी सीटों से कहीं न कहीं कई जाति के वोट कांग्रेस से हट चुके हैं. एक तरह से राहुल गांधी एक टीम तैयार कर रहे हैं जो सड़क से लेकर भाषणों तक में जान भर देगी और इसके लिए बिहार में वह पूरी तरह से तैयारी कर रही है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]  

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