इफ़्तार की सियासत और सियासी इफ़्तार

"आप की दावत सियासी होती है, लेकिन हमारी दावत रूहानी होती है. हम मज़हब के नाम पर लोगों का इस्तेहसाल नहीं करते, नीतीश कुमार काम करते हैं, हम यूपी नहीं हैं और ना ही हम असम और बंगाल हैं, हम बिहार हैं हमने पहले भी बिहार को बचाकर रखा है और आगे भी बचाकर रखेंगे, हम ने हमेशा सभी वर्गों के लिए लड़ाइयां लड़ी हैं और आगे भी लड़ेंगे."
"और हाँ हम बेईमान नहीं हैं, हम करप्ट नहीं हैं, हमें अपने परिवार को सेट करने की जल्दी भी नहीं है हमें तो सिर्फ़ बिहार को ले जाना है नीले गगन की बुलंदियों तक, बिना थके बिना हारे, हम बढ़ेंगे, बढ़ते रहेंगे."
"आप को जैसी गालियां देनी हो दीजिए , जितना पर्सनल टारगेट करना हो करें आप हमें दीवाना कहें मजनूं कहें बूढ़ा कहें या जो कहें कहते रहें, बिहार की तरक्की का कारवां रुकेगा नहीं, हमें अपने 14 करोड़ के परिवार के लिए सब कुछ सहना है."
यह नीतीश कुमार के मुसलमानों में सिपहसालार जेडीयू के एमएलसी, पत्रकार ख़ालिद अनवर का नीतीश की इफ़्तार के बाद का ट्वीट है.
रमज़ान में ऐसा ट्वीट क्यों?
आख़िर खालिद अनवर को क्या ज़रूरत पड़ गई इतना बड़ा ट्वीट करने की? वह भी रमज़ान के पवित्र महीने की इफ़्तार को लेकर. इस से पहले भी सियासी इफ़्तार होती रही हैं लेकिन उन्होंने कभी इस तरह का बयान नहीं दिया. रमज़ान में मुसलमान या तो दुआ मांगता है या ख़ुदा से माफ़ी मांगता है और उसकी पूरी कोशिश ख़ुदा के बंदों की ख़िदमत करना होती है.
वक़्फ़ संशोधन बिल और इफ़्तार का बायकॉट
दरअसल देश में इस समय वक़्फ़ संशोधन बिल को लेकर मुसलमानों में केंद्र सरकार के विरुद्ध जो नाराज़गी है उसको जमीयत उलमा ए हिंद ने नीतीश, चिराग़ और चंद्रबाबू की ओर मोड़ने की कोशिश की है. उनका कहना है कि इनके समर्थन से केंद्र सरकार चल रही है और यह तीनों मुस्लिम वोटों के दावेदार भी हैं तो फिर यह लोग केंद्र पर दबाव क्यों नहीं बनाते वक़्फ़ बिल को लेकर पीछे हटने के लिए. इस तरह वक़्फ़ की लड़ाई वह बिहार और आंध्र प्रदेश में लड़ना चाहते हैं.
बायकॉट के बाद भी इफ़्तार में भीड़
अगर नीतीश कुमार की इफ़्तार पार्टी को देखा जाए तो जिस तरह की भीड़ वहां दिखाई दी है, उस से यह साफ़ लग रहा है कि इस बायकॉट का मुसलमानों पर कुछ ज़्यादा असर नहीं हुआ है. वैसे भी इफ़्तार को लेकर सियासत के लिए यह समय ठीक नहीं है. इस समय इफ़्तार को लेकर वह लोग भी सियासत कर रहे हैं इसकी मुखालफत कर रहे हैं जिन के नेता पहले बड़- बड़ी इफ़्तार दे चुके हैं, जिनकी मुख्य मंत्री तक इफ़्तार में अभी दिल्ली में भाग ले चुकी हैं. अभी तो महाराष्ट्र में औरंगज़ेब घूम रहे हैं वरना किसी ने सोशल मीडिया पर 2018 का भाजपा की इफ़्तार पार्टी का निमंत्रण साझा किया है जिस में उस समय के और आज के महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस मुख्य अतिथि थे. इस में बिहार के भाजपा के क़दावर मुस्लिम नेता शाहनवाज़ हुसैन भी अतिथि के रूप में छपे हैं. इफ़्तार में तो रोज़ादार ही मुख्य अतिथि होता है लेकिन सियासी इफ़्तार में नेता मुख्य अतिथि होता है.
हेमवती नंदन बहुगुणा ने की शुरुआत
कहते हैं आपसी सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए हेमवती नंदन बहुगुणा ने शायद इन सियासी इफ़्तार पार्टियों को 1970 के आसपास शुरू किया था ताकि वह मुसलमानों में अपनी पकड़ बना सकें जिसे बाद में कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी जी ने भी आगे बढ़ाया और इस तरह सभी धर्मों में सौहार्द को बढ़ावा देने में इफ़्तार पार्टियां एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगीं. लगभग सभी प्रधान मंत्रियों ने जिन में अटल जी भी शामिल हैं इफ़्तार का आयोजन करते रहे लेकिन यह सिलसिला 2014 से बंद हो गया. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच भी इफ़्तार कराता चला आ रहा है.
गोल टोपी पहने नेता और सियासी इफ़्तार
सियासी इफ़्तार पार्टियों में नेताओं के गोल टोपी पहने चित्र समाचार पत्रों के पहले पन्ने को सजाते रहे हैं, लेकिन मुसलमानों को लेकर भाजपा के तेवरों को देखते हुए अब विपक्षी दलों के नेता इफ़्तार में टोपी पहनते हुए घबराने लगे हैं. उनका टोपी पहनना सांकेतिक होता था लेकिन जब से इस प्रकार के टोपी के चित्र सोशल मीडिया पर ट्रॉल आर्मी के निशाने पर आने लगे बहुत से विपक्षी नेता टोपी पहनने से बचते दिखाई देते हैं.
पिछले कुछ वर्षों से सियासी इफ़्तार में कमी आई है. कोरोना काल ने इस में ब्रेक लगा दिया था. मुझे कई अवसरों पर राष्ट्रपति भवन की इफ़्तार में जाने का अवसर मिला है. लेकिन अब वहां भी इफ़्तार नहीं होती. ऐसे में चंद एक नेता सियासी इफ़्तार करवा रहे हैं तो उनको निशाना बनाना कहां तक उचित है.
वक़्फ़ की लड़ाई सड़क पर लड़ें
आप की वक़्फ़ की लड़ाई क्या इफ़्तार के बायकॉट से कामयाब हो जायेगी? अगर ऐसा है तो आप इसे इफ़्तार बायकॉट से लड़ें वरना इसको उसी तरह लड़ें जिस तरह विरोध प्रदर्शन से राजनीतिक विचार धाराओं और निर्णयों से लड़ा जाता है या लड़ा जाता रहा है. यह सोच लेना कि केवल नीतीश, चिराग़ और चंद्रबाबू ही वक़्फ़ बिल लाने के ज़िम्मेदार हैं बिलकुल वैसा ही है जैसा विपक्ष केवल मीडिया को कोस कर अपना दायित्व पूरा कर लेता है. न सरकार के विरुद्ध सड़क पर उतरता है न जेल भरने को तैयार है. हां दूसरों को आगे बढ़ा कर उनके पीछे खड़ा हो जाता है और जब मतलब निकल जाता है तो पंजाब सरकार की तरह किसानों को रातों रात उठा कर फेंक देता है.
उत्सव से सियासत को अलग रखें
देखा जाए तो बिहार में नीतीश की इफ़्तार को लेकर कई मुस्लिम संस्थाओं ने भी बॉयकॉट का ऐलान किया था लेकिन यह और बात है कि उनके कई सदस्य इफ़्तार पार्टी में शिरकत करते दिखाई दिए हैं. ऐसे में कांग्रेस के बिहार विधान सभा में नेता शकील अहमद खान का यह कहना उचित है कि हम वक़्फ़ संशोधन बिल का मौजूदा स्वरूप में विरोध करते हैं लेकिन त्यौहार के जश्न और उत्सव को सियासत से नहीं जोड़ना चाहिए. लगभग यही सब कुछ बिहार के सीनियर कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी का भी कहना है.
रमज़ान के अंतिम दस दिन एकांत में तपस्या
सच तो यह है कि रमज़ान के अंतिम दस दिनों में बहुत से इबादत करने वाले मुसलमान मस्जिद में ऐतकाफ़ (एकांत में ईश्वर की तपस्या) में बैठ जाते हैं और वह मस्जिद से बाहर नहीं निकलते. बहुत से मुसलमान क़ुरआन की तिलावत में लगे होते हैं ताकि वह रमज़ान के पवित्र महीने में अधिक से अधिक क़ुरआन पढ़ने का पुण्य कमा लें. उनके पास किसी इफ़्तार में जाने का समय ही नहीं होता. सियासी इफ़्तार में सियासत से नज़दीकियां बनाने वाले मुसलमान ही जाते हैं और उन पर बायकॉट अधिक असर नहीं कर पाता है.
अब सोशल मीडिया पर नीतीश की इफ़्तार के फ़ोटो डाल कर उनकी इफ़्तार में शिरकत करने वाले मुसलमानों को मुसलमानों के द्वारा ही निशाना बनाया जा रहा है. जो काम दूसरे ट्रॉल आर्मी वाले मुसलमानों को लेकर कर रहे थे वही काम मुसलमान भी मुसलमानों को लेकर अब कर रहे हैं. यानि सियासी इफ़्तार तो हो गई लेकिन अब इफ़्तार पर सियासत हो रही है.
गंगा जमुनी तहज़ीब और इफ़्तार पार्टियां
गंगा जमुनी संस्कृति से जुड़े अधिकतर लोग इफ़्तार के आयोजनों से जुड़े रहे हैं. भारत में बहुत से हिन्दू अपने मुस्लिम भाइयों के लिए इफ़्तार का आयोजन अपने घरों में भी करते हैं. उर्दू के बड़े शायर स्वर्गीय पंडित आनंद मोहन ज़ुत्शी गुलज़ार देहलवी अपने अंतिम समय तक रमज़ान में एक रोज़ा ज़रूर रखते थे और इफ़्तार का आयोजन करते थे. इस लिए इफ़्तार पर सियासत करना उचित नहीं है हालांकि सियासी इफ़्तार पूरी तरह से सियासी ही होती है. अगर आप इफ़्तार का बॉयकॉट कर रहे हैं तो कल आप को ईद मिलन का भी बॉयकॉट करना पड़ेगा और इस प्रकार आप अपने त्यौहारों और खुशियों से दूसरों को दूर कर देंगे.
अफ़सोस इतनी जल्दी रमज़ान जा रहा है
ज़रूरी यह है कि आप खुद एक बड़े इफ़्तार का आयोजन करें और उस में नीतीश, चिराग़ और चंद्रबाबू को दावत दें और वहीं उनसे सवाल करें कि वक़्फ़ को लेकर वह कुछ क्यों नहीं कर रहे हैं. अंत में अपने दो शेर;
अफ़सोस कितनी जल्दी रमज़ान जा रहा है
संग अपने लेके सारे पकवान जा रहा है
बे रोज़ा रोज़ सियासी इफ़्तार कर रहे थे
सब कुछ हमारा लेके मेहमान जा रहा है
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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