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'पियदसि राजा हेवं आहा'- सम्राट अशोक के अभिलेखों की सा‍र्थक विवेचना

भारत में हिंदी भाषी क्षेत्रों में जो नाम सबसे अधिक रखे जाते हैं,उनमें एक अशोक भी है. अशोक का शाब्दिक अर्थ हुआ जो शोक से परे हो, दुखशून्‍य हो. क्‍या शोक मुक्‍त होना संभव है? बुद्ध तो कहते हैं- सर्वे दुखमयं जगत. तो शोक से मुक्ति कहां हुई.  सीता जी को अशोक वाटिका में ही रखा गया था लेकिन जब तक वह वहां रहीं दुख से कातर ही रहीं. अशोक वाटिका में भी सीता शोक संपृक्‍त ही रहीं. जिस अशोक वाटिका में उन्‍हें रखा गया था,वह था तो रावण का प्रमदावन जिसमें अशोक के वृक्षों की संख्‍या अधिक थी लेकिन उन्‍हें जिस वृक्ष के नीचे रखा गया था,उसे सिंसुपा कहते हैं अर्थात शीशम.

अशोक में हैं बड़े-बड़े गुण

अशोक का वानस्पतिक नाम सरका अशोका है. यह भारतीय उपमहाद्वीप का सदाबहार वृक्ष है. इसके कई औषधीय उपयोग भी हैं. महिलाओं के लिए उपयोगी अशोकारिष्‍ट इसी से बनती है. यह प्रजनन क्षमता से जुड़ी औषधि है और गर्भाशय को मजबूती देती है. अशोक के फूल चमकीले, पीले होते हैं जो सूखने के पहले लाल हो जाते हैं. सीता जी ने इन्‍हीं लाल फूलों को देख कर अशोक से आग देने का आग्रह किया था जिससे वह अपने शरीर का दाह कर सकें. कुछ जगहों पर अशोक के फूल बिकते भी हैं. इनसे औषधियां बनती हैं.

साहित्‍य और कला में इसका अनेक-विधि वर्णन मिलता है. शालभंजिका शिल्‍प इसी से जुड़ा है. इससे अशोक और शाल के एक होने का भी भ्रम होता है. यह हिंदू और बौद्ध शिल्‍प दोनों में प्रयोग हुआ है. भरहुत की वेदिका पर इसका सुंदर चित्रण देखने को मिलता है. ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक का जन्‍म इसी वृक्ष के नीचे हुआ था. यही बालक आगे चल कर दुनिया में ‘धम्‍म’ की शिक्षा का प्रसार करने वाले महान सम्राट अशोक के रूप में विख्यात हुआ.

अशोक के शिलालेख

मेरी फोनबुक में यही नाम पिछले दिनों एक बार फिर जुड़ा- अशोक तपासे. अशोक तपासे का सम्राट अशोक से गहन रिश्‍ता है. वह उनके धम्‍म के अनुयायी तो हैं हीं,उन्‍होंने सम्राट अशोक के शिलालेखों के अध्‍ययन पर काफी समय लगाया और अशोक के लगभग हर शिलालेख को नजदीक से देखने की कोशिश की है. उनका मानना है कि शिलालेखों के पास जाकर उन्‍हें देखना और अनुभव करना इस महान सम्राट का साक्षात्‍कार करने जैसा है. उन्‍होंने अपने अध्‍ययन को – पियदसि राजा हेवं आहा ( प्रियदर्शी राजा ने ऐसा कहा) नाम की पुस्‍तक में प्रस्‍तुत किया है. यह पुस्‍तक मूलत: मराठी में लिखी गई थी जिसे उन्‍होंने खुद हिंदी में अनुवाद कर हिंदी प्रेमियों के समक्ष रखा. इसमें अशोक के सभी अभिलेख हैं. हर अभिलेख की छायाप्रति पठनीय है. उसका ब्राह्मी रूप, प्राकृत उच्‍चारण और व्‍याख्‍या के साथ हिेंदी में अर्थ दिए गए हैं.

अशोक के अभिलेख अनेक पुस्‍तकों में हैं लेकिन सभी अभिलेख एक जगह नहीं मिलते. ये पुस्‍तकें  सिर्फ शिला अभिलेख और स्‍तंभ लेखों तक ही सीमित रह गई हैं. इस पुस्‍तक में वे सभी अभिलेख हैं जिन्‍हें अशोक ने लिखवाया था.  इतनी विस्‍तृत पुस्‍तक कम से कम हिंदी में तो नहीं मिलती. राधाकुमुद मुखर्जी ने अपनी कालजयी पुस्‍तक ‘अशोक’ में मूल अभिलेख दिए हैं लेकिन उसमें उनका ब्राह्मी रूप नहीं है. ‘ अभिलेख निकर’ में भी सभी अभिलेख नहीं हैं. ब्राह्मी लिपि पर लिखी गई अनेक किताबें मैने देखी हैं उनमें किसी में सभी अभिलेख नहीं मिलते.

अशोक तपासे की किताब मील का पत्थर

अशोक तपासे ने एक-एक अभिलेख को उसके मूल स्‍थान पर जाकर देखने का प्रयास किया. उनकी भौगालिक स्थिति भी बताई और वे  इस समय किस रूप में मौजूद हैं,यह भी बताया. इसमें उन्‍हें कई कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन अभिलेख को निकट से देखने पर वे नगण्‍य हो गईं. पुस्‍तक में जितने भी अभिलेख ब्राह्मी लिपि में दिए गए हैं,वे सभी पठनीय हैं. ब्राह्मी लिपि को जानने वालों को इन्‍हें पढ़ने में अलग तरह का आनंद आता है. वह अपने को इतिहास को देखता अनुभव करता है. उन्‍होंने सम्राट अशोक के अभिलेखों में कई बार प्रयुक्‍त एक वाक्‍य पर ही पुस्‍तक का नाम भी रखा है.

‘ प्रियदसि राजा हेवं आहा’ में अशोक तपासे ने एक शोध लेख भी दिया है. इसमें रूपनाथ, रतनपुरवा,अहरौरा,सहसराम आदि अभिलेखों में आए अंक 256 की व्‍याख्‍या करते हुए उन्‍होंने इसे 256 रातें नहीं( जैसा कि अन्‍य विद्वान कहते हैं) बुद्ध के महा‍परिनिर्वाण के वर्ष से 256 वर्ष बाद इन अभिलेखों को सम्राट अशोक द्वारा लिखवाने का मत प्रतिपादित किया हैं.इसमें बुद्ध के महापरिनिर्वाण की वास्‍तविक तिथि तक पहुंचने का प्रयास भी है, क्‍योंकि अलग-अलग परंपराओं में बुद्ध के महापरिनिर्वाण का समय अलग- अलग बताया गया है. तपासे ने अपने शोध में सर्वथा नए तथ्‍य दिए हैं. विद्वानों में इस पर चर्चा अवश्‍य होनी चाहिए.

चूंकि अशोक तपासे मराठी भाषा भाषी हैं और पुस्‍तक का अनुवाद उन्‍होंने खुद किया है,इसलिए इसमें कई वर्तनी और उच्‍चारण संबंधी दोष दिखते हैं. यदि इसे छपने के पहले किसी हिंदी भाषी से संपादित करा देते तो यह कमी न खटकती. हिंदी के पाठक वर्तनी दोष से असहज महसूस कर सकते हैं. उम्‍मीद है कि अगले संस्‍करण में इसे सुधार लिया जाएगा.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.

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