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न पीएम पद के प्रत्याशी पर सहमति, न अध्यादेश पर एकजुटता, एनडीए के खिलाफ विपक्षी एकता को लेकर बैठक से क्या हासिल हुआ?

बिहार में शुक्रवार को एनडीए को शिकस्त देने के लिए विपक्षी दलों की बड़ी बैठक हुई. हाल के दशकों में पहली बार विपक्षी नेता महागठबंधन को लेकर इतने गंभीर दिखे. अब विपक्षी दलों की अगली बैठक अगले महीने यानी 12 जुलाई को शिमला में बुलाई जा सकती है. जिसमें इसके स्वरुप को अमलीजामा पहनाया जा सकता है. हालांकि, जहां एक तरफ विपक्षी नेता इस बात को लेकर गंभीर प्रयास कर रहे थे कि बीजेपी के खिलाफ और ब्रांड मोदी को हराने के लिए क्या रणनीति अपनाई जाए तो वहीं इससे इतर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केन्द्र की तरफ से दिल्ली सरकार के अधिकार में कटौती को लेकर लाए अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष को लामबंद करने की कोशिश कर रहे थे.

विपक्ष का जमावड़ा बड़े लक्ष्य के लिए

प्रियंका कक्कड़ अक्सर इस तरह की ट्वीट करती रहती हैं. अरविंद केजरीवाल दरअसल विपक्ष की राजनीति में पूरी तरह अप्रासंगिक हो गए हैं, बिहार में जो जुटाव हुआ था, वह 2024 के संसदीय चुनाव को लेकर हुई थीं. आप अगर देखें तो दिल्ली की सातों सीटें बीजेपी के पास हैं, पंजाब की 13 में से एकमात्र सीट आम आदमी पार्टी के पास है, जो ये उपचुनाव में जीते हैं. विपक्ष का यह जमावड़ा बहुत बड़े उद्देश्यों के लिए हुआ है. नो तो यह दिल्ली के ऑर्डिनेंस के बारे में था, न ही यह प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तय करने के लिए हुआ है. देश में जिस तरह का माहौल है, तानाशाही का वातावरण है, मोदीजी का जिस तरह का शासन है, उसके खिलाफ ये बैठक थी. इसकी पृष्ठभूमि में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ है, एजेंसियों का दुरुपयोग है, कुछ राज्य सरकारों को जिस तरह गिराया गया, वो है.

अरविंद केजरीवाल बीजेपी के सैटेलाइट

केजरीवाल भारत की राजनीति में कुल जमा 11-12 साल की उपज हैं. यह संयोग है कि वह तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. 2024 के बाद उनकी राजनीति खत्म हो जाएगी और वह बीजेपी के एक सैटेलाइट ही बनकर रह जाएंगे, जैसे मायावती हैं या केसीआर हैं. पहले तो यह जाने के लिए तैयार नहीं थे, फिर दिल्ली में राहुल गांधी से मिलने का समय मांगते रहे. जब राहुल गांधी और खड़गे ने मिलने से मना कर दिया तो बोलने लगे कि बिहार में पहले अध्यादेश पर ही चर्चा हो जाए. सोचने की बात है कि वहां इस पर चर्चा कैसे और क्यों होती? जैसा कि खड़गे ने कहा भी कि संसद में क्या मसला उठेगा या नहीं, यह तो संसदीय बैठक से पहले तय करते हैं, लेकिन अध्यादेश को विपक्ष की बैठक का मुद्दा कैसे बना सकते हैं?

केजरीवाल के पूरे प्रयास को पलीता लगाने का ही काम केजरीवाल का है. कांग्रेस की उनसे नाराजगी का कारण तो यही है कि 2014 में इन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार गिराने का काम किया था. रामलीला मैदान का जो आंदोलन था, वह यूपीए सरकार के खिलाफ था. उसमें उनके साथ बीजेपी और आरएसएस के लोग मंच पर ही थे. भाजपा जिस तरह से अब आक्रामक तरीके से काम करेगी, उसमें भाजपा के एजेंडे पर केजरीवाल तो हैं ही नहीं. वह तो विपक्षी राजनीति में अप्रासंगिक हो चुके हैं.

हमले तो कांग्रेस झेल रही है

जिस तरह से कांग्रेस के लोगों पर आक्रमण हो रहे हैं, उसका सबसे बड़ा उदाहरण तो आपने देखा कि किस तरह राहुल गांधी जी की लोकसभा सदस्यता गयी, किस तरह उनके खिलाफ प्रकरण कायम हुआ. इस समय तो बीजेपी के निशाने पर कांग्रेस है, उसमें आम आदमी पार्टी कहां से आ गयी? यह तो आम आदमी पार्टी का गलत आरोप है. वह जब यह कहते हैं कि उनके सबसे अधिक लोग जेल में हैं, तो वह छुड़ा क्यों नहीं पा रहे हैं? कोर्ट ने भी तो कहा है कि सिसोदिया के खिलाफ प्रमाण हैं, सत्येंद्र जैन के खिलाफ प्रमाण हैं. केजरीवाल उसको चुनौती नहीं दे रहे हैं, वे तो सार्वजनिक तौर पर कहते हैं कि उनके पास 100 सिसोदिया हैं, 100 सत्येंद्र जैन हैं. तो, उनको तो फर्क ही नहीं पड़ता. आखिर, दिल्ली की जनता इनके पक्ष में क्यों नहीं हैं, मनीष सिसोदिया किसके लिए काम कर रहे थे, अरविंद केजरीवाल के पास एक भी विभाग नहीं है. वह किसी भी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं करते. वह तो भारतीय राजनीति के सबसे शातिर आदमी हैं. उनकी पूरी कुंठा यह है कि उनकी महत्वाकांक्षा के मुताबिक उनको कोई भाव नहीं दे रहा है.

अरविंद केजरीवाल हैं हेमंत बिस्वा ही

कांग्रेस के लिए यह बड़े दिल का सवाल नहीं है. आप (यहां बात आम आदमी पार्टी की हो रही है) कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन करते हैं. आप गुजरात पहुंच जाते हैं, वहां बीजेपी से मिल जाते हैं, 13 परसेंट वोट लेकर 5 सीट हथिया लेते हैं, आप राजस्थान पहुंच जाते हैं चुनाव के लिए, आप कांग्रेस पर लगातार हमला करते हैं. तो, आप चाहते हैं कि आप तो हमलावर रहें, लेकिन कांग्रेस आपसे बात करती रहे.

राजनीति में तो बात भी हैसियत होकर होती है, तो केजरीवाल की राजनीति में हैसियत क्या है? कांग्रेस ममता बनर्जी से क्यों न बात करेगी, जो इनसे करेगी? वैसे, सच पूछा जाए तो इनकी भी हैसियत हेमंत बिस्वा शर्मा वाली ही है. ये आखिरकार बीजेपी से ही मिलेंगे और भाजपा का भी नुकसान करेंगे. अभी जैसे हेमंत बिस्वा शर्मा ने प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के बाद बराक ओबामा पर जो ट्वीट किया, उसने पीएम की पूरी यात्रा और उससे मिले लाभ को खत्म कर दिया. मणिपुर जल रहा है, और वो असम में बैठे हैं. तो, आखिरकार केजरीवाल करेंगे वही. वैसे, उनसे पूछा जाना चाहिए कि अगर कांग्रेस छोड़कर बाकी दलों का उनको समर्थन हासिल है ही, तो फिर दिक्कत क्या है? क्या बाकी दलों ने इसका समर्थन किया कि पहले अध्यादेश पर ही चर्चा हो जाए, अरविंद केजरीवाल पटना में अकेले क्यों पड़ गए?

अरविंद केजरीवाल पटना से पूरी तरह अकेले होकर लौटे हैं. विपक्ष की राजनीति में पूरी तरह अप्रासंगिक. उनका विपक्षी एकता में कोई महत्व नहीं है. वह तो बारात में सबसे आगे जाकर नाचना चाहते थे, लेकिन बारात ने कह दिया-आपकी जरूरत नहीं.  

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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