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कटिहार में फायरिंग, दरभंगा में तनाव और बेगुसराय में नाबालिग लड़की की निर्वस्त्र पिटाई, नीतीश बाबू बताएं कहां है 'सुशासन'

बिहार चर्चा में है. दो वजहों से. एक तो खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कारण. उन्होंने भाजपानीत केंद्र सरकार के खिलाफ यलगार किया है. कई दलों को, नेताओं को एक छतरी के नीचे लाए. विपक्ष के महागठबंधन जैसी चीज आकार ले रही है. फिलहाल, कटिहार में बिजली मांगनेवाले नागरिकों पर गोलीबारी के चलते बिहार सुर्खियों में है. दरभंगा में सांप्रदायिक तनाव और 30 जुलाई तक इंटरनेट रद्द किए जाने के चलते सुर्खियों में है. बिहार की कानून-व्यवस्था, नीतीश के घटक दल राजद और बिहार की पूरी राजनीति एक बार फिर दिल्ली तक चर्चा में है. 

नीतीश कुमार को खारिज करना जल्दबाजी

यह कहना जल्दबाजी होगी कि नीतीश कुमार के हाथों से प्रशासन की लगाम छूट गयी है, लेकिन जो कुछ हो रहा है, उससे ये तो लगता ही है कि हाथों की पकड़ कुछ कमजोर हुई है. मुझे याद आता है कि जब नीतीश कुमार ने सत्ता पहली बार संभाली थी, 2005 के आखिर में, तो भागलपुर में कोई घटना हुई थी. तब अश्विनी चौबे को एक जुलूस को लेकर एक तरह की धमकी ही नीतीश कुमार ने दी थी, ‘वहां अगर कुछ भी अशांति होगी तो आप लोग जिम्मेदार होंगे, मैं सत्ता चलाने से इनकार कर सकता हूं.’ यह एक वेल्ड थ्रेट या छिपी हुई धमकी ही थी. दंगा-फसाद उसके तुरंत बाद ही रुक गया था. रोहतास जिले की भी एक ऐसी ही घटना थी. हमें लगा था कि डीएम के स्तर की यह घटना है, छोटी सी बात है, सुलझ जाएगी, लेकिन नीतीश जी ने जिस तरह दिलचस्पी ली और तुरंत उस घटना को सुलझाया, वह सराहनीय था.

सरकार का इकबाल तो हुआ है कम

अब, जब ऐसी घटनाएं हो रही हैं, वह चाहे कटिहार में बिजली की मांग करनेवालों पर गोली चलने की हो या दरभंगा में सांप्रदायिक झड़प की, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. यह तो नीतीश जी की शासकीय गरिमा पर ही धूल लगाता है. कटिहार की घटना तो बहुत ही दुखद है. गोली चली और लोगों की मौत हुई है. पुलिस की गोली से मौत हुई है और इससे जुड़ी एक घटना मुझे याद है. जब केरल में भानु पिल्लै की सरकार थी और समाजवादी सरकार थी, तब ऐसी ही एक घटना हुई थी, गोली चली थी और डॉ लोहिया ने खुद ही अपनी सरकार का इस्तीफा मांग लिया था. उनका कहना था कि अगर कांग्रेसी सरकार में यह गलत था तो समाजवादी सरकार में कैसे सही हो सकता है? हरेक बात पर इस्तीफा मांगने की बात तो सही नहीं है, लेकिन नीतीश जी को खुद सोचना चाहिए. मुख्यमंत्री किस तरह के लोगों से घिरे हैं, यह उनको देखना चाहिए. यह तो काफी समय से कहा जाता रहा है कि वह जब भी आरजेडी के साथ आए हैं, लॉ एंड ऑर्डर की सिचुएशन में दिक्कत आयी है. बाकी मसलों पर भले ही सरकार का प्रदर्शन जो भी हो, लेकिन कानून-व्यवस्था की हालत तो बिगड़ती ही है.

नहीं काम देगा मीडिया-मैनेजमेंट, जनता में निराशा

उपमुख्यमंत्री तेजस्वी और मुख्यमंत्री नीतीश दोनों को ही इस पर मिलकर काम करना चाहिए. ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हम तो मीडिया को मैनेज कर ही लेंगे. जनता में यह मैसेज जा चुका है और अगर नीतीश जी इस पर कड़ा एक्शन नहीं लेते हैं, तो यह उनकी विदाई का समय आ गया है. जनता में एक नैराश्य है. दरभंगा में जो सांप्रदायिक तनाव की घटना हुई, वह क्यों हुई? आपके कार्यकर्ता क्या कर रहे हैं? उन लोगों को जाकर इसे समझना चाहिए. वोट बैंक की राजनीति से तो नहीं होगा. समाज में ही तो आपके कार्यकर्ता रहते हैं.  प्रदर्शनकारियों पर गोली तो किसी भी तरह नहीं चलायी जानी चाहिए. कटिहार में जो भी घटना हुई, वह तो सरकार को सीधे तरह कठघऱे में खड़ा करती है.

हां, एक बात जरूर है. यह चुनावी साल है और अब जबकि कुछ ही महीने बचे हुए हैं. बिहार से जो लोग एनडीए को निपटाने की बात कर रहे हैं, हालिया घटनाएं तो इसी को दिखाती हैं कि अपने राज्य में जो लोग सुशासन नहीं ला सके, वे पूरा देश कैसे चलाएंगे? मणिपुर की घटना पर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने वहां के मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगा है. अगर मणिपुर के सीएम का इस्तीफा होना चाहिए, तो बिहार के मुख्यमंत्री का भी हो. अब ये तो नीतीश जी का ही एक शब्द है-थेथरोलॉजी, तो इस पर थेथरोलॉजी नहीं हो कि मणिपुर के लिए एक बात लागू हो और बिहार के लिए दूसरी. नीतीश जी को इस पर सोचना चाहिए कि कहीं न कहीं उनसे गड़बड़ी हो रही है. हरेक चीज को विरोधियों पर थोप कर आप नहीं बच सकते.

अफसरों पर न रहें डिपेंड, कार्यकर्ता कहां हैं?

नीतीश के शासन का 18वां साल है. वह अफसरशाही पर बहुत निर्भर करते हैं. वह निर्भरता उनकी कमजोरी है. आखिर, उनके कार्यकर्ता कहां हैं? लोगों के बीच कनेक्ट कहां है? दरभंगा में सांप्रदायिक सौहार्द क्यों नहीं कांग्रेस, जेडीयू, आरडेडी के कार्यकर्ताओं ने बचाया, कटिहार में आक्रोश था लोगों के बीच, यह उनके कार्यकर्ताओं को क्यों नहीं मालूम था, क्यों नहीं उन लोगों ने इसको पैसिफाई किया. इनके सहयोगी दल और उनके कार्यकर्ता क्या कर रहे थे. अगर लोकतंत्र में आप सब कुछ अफसरों के भरोसे कर रहे हैं, तो दिक्कत है. सांप्रदायिक सद्भाव और जनाक्रोश की ये दोनों ही घटनाएं तो राजनीतिक स्तर पर सुलझाने की थी. यह तो उनकी प्रशासनिक अक्षमता के साथ ही उनकी राजनीतिक समझ पर भी सवालिया निशान है.

लोग तो कहते ही हैं कि आरजेडी के साथ आने के बाद लॉ एंड ऑर्डर का क्षरण होता है. देखें तो यह सच भी प्रतीत होता है. यह क्यों होता है कि आरजेडी के साथ ही आप जैसे ही सरकार बनाते हैं, कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हो जाती है. हां, यह नीतीश कुमार का चरित्र है कि वह राजनीतिक तौर पर झुकते नहीं. हालांकि, यहां तो वह झुकते दिख रहे हैं. उनके सहयोगी दलों का ही एक तरह का असहयोग दिखता है. दूसरी बात, नीतीश केवल एक मुख्यमंत्री नहीं हैं, राष्ट्रीय राजनीति में भी उनका एक दखल है. यह जब संकेत बाहर जाएंगे, राष्ट्रीय राजनीति में जाएंगे, तो क्या संकेत जाएगा? यह तो नीतीश कुमार के लिए, विपक्ष के नए गठबंधन इंडिया के लिए और खुद बिहार के लिए भी बेहद शर्मनाक है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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