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नए भारत में नया संसद भवन, वर्तमान से भविष्य की ओर..अमृतकाल में ऐतिहासिक पल

6 एकड़ में फैला संसदीय लोकतंत्र का प्रतीक संसद भवन जो 27 फीट उंचे हल्के पीले रंग के 144 खम्भों और 12 दरवाजों से सुसज्जित है, अब वो कल की बात है. जो साक्षी है, भारतीय संसदीय लोकतंत्र की लंबी यात्रा का, उन पलों का, जो अविस्मरणीय रहे, और उन  ऐतिहासिक फैसलों का भी, जो भविष्य के भारत की ओर इशारा करते हैं.

यह तो हम सब जानते हैं कि हरबर्ट बेकर ने अपने सीनियर और दिल्ली के चीफ ऑफ टाउन प्लानर एडवर्ड लुटियंस के परामर्श के बाद संसद भवन का डिजाइन तैयार किया. मज़बूत दीवारों के बीच दोनों वास्तुकारों के बीच दरारों की कहानी भी जगजाहिर है. सवाल है कि फिर वो कौन था, जिसने दोनों इंजीनियरों के बीच संबंधों में पड़ी दरारों के बीच इन दीवारों को खड़ा किया. नाम हम बताते हैं, लक्ष्मणदास, जी हां, दिलचस्प बात ये भी है कि ये लक्ष्मणदास उस सिंध से आए तो थे, जो बाद में पाकिस्तान का हिस्सा बन गया. लक्ष्मण ने शायद ये सपने में भी नहीं सोचा होगा कि लोकतंत्र की जिस इमारत को वो गढ़ रहे हैं, एक दिन आएगा, जब वो उसका हिस्सा नहीं रहेंगे.

रोमांस ऑफ दिल्ली में खुशवंत सिंह लक्ष्मणदास की नेक नीयत और ईमानदारी के बारे में प्रशंसा करते नहीं थकते. ऐसा लगता है मानो कि इतिहास लिखने वाले उन हाथों का जिक्र करने में तंगी कर गए जो वास्तविकता में इतिहासकार थे. 1921-1927 के बीच बनकर तैयार हुई गोलाकार संसद भारतीय आज़ादी का आफताब बन गई. 26 जनवरी 1950 को भारत ने एक आधुनिक गणतंत्र के तौर पर इसी भवन में जन्म लिया. यही भवन संविधान निर्माण का गवाह बना. ये भवन, भारत की बढ़ती सैन्य क्षमता, भारत के परमाणु शक्ति बनने से लेकर,  आपातकाल की कड़वी यादें, कभी गठबंधन की राजनीति तो कभी मजबूत जनाधार वाली सरकार, नेताओं के ओजस्वी भाषण और बेहतर संवाद शैली, सहमति असहमति के बीच वाद-विवाद साक्षी रहा है.

साल 2020 में संसद के नए भवन (त्रिभुजाकार) की नींव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ये कहते हुए रखी कि नया संसद भवन सदस्यों की दक्षता में वृद्धि और उनकी कार्य संस्कृति को आधुनिक बनाएगा. उन्होंने कहा कि यदि पुराने संसद भवन ने स्वतंत्रता के बाद भारत को दिशा दी, तो नया भवन देश को ’आत्मनिर्भर’ बनाने का साक्षी बनेगा. यदि पुराने संसद भवन में देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए काम किया गया था, तो 21वीं सदी की भारत की आकांक्षाओं को नए भवन में पूरा किया जाएगा.

जाहिर है, बढ़ती आबादी के बीच प्रतिनिधियों की संख्या का सवाल सबके सामने रहा है. बता दूं कि 1971 की जनगणना के आधार पर फिलवक्त लोक सभा सीटों की संख्या 545 पर रुकी हुई है, जिसमें साल 2026 के बाद बढ़ोत्तरी होने की संभावना है क्योंकि सीटों की कुल  संख्या पर रोक केवल 2026 तक ही है.

इस बात को समझना भी जरूरी है कि जो देश आबादी  के लिहाज से भारत से बहुत छोटे हैं वहां की संसद में भी जनप्रतिनिधियों की भागीदारी भारत की अपेक्षा कहीं अधिक है. मसलन, जर्मनी की आबादी 8 करोड़ है, और वहां की संसद ‘बुंडेस्टाग’ में सदस्य संख्या 631 है. इंग्लैंड की आबादी 6 करोड़ है जबकि हाउस ऑफ़ कॉमन में 650 और हाउस ऑफ लॉर्ड्स में 804 सदस्य हैं. अमेरिका की आबादी करीब 33 करोड़ है और वहां की प्रतिनिधि सभा में 435 सदस्य हैं. फ्रांस की आबादी लगभग सात करोड़ है और उसकी नेशनल असेंबली में सीटों की संख्या 577 है, सीनेट की संख्या 348 है. इसी तरह 16 करोड़ की आबादी वाले बांग्लादेश की जातीय (राष्ट्रीय) संसद में सांसदों की संख्या 350 है. नेपाल में तीन करोड़ की आबादी पर प्रतिनिधि सभा में 275 सदस्य हैं. 4 करोड़ के कनाडा में उसके निचले सदन में सदस्यों की संख्या 338 है. 8 करोड़ आबादी वाले तुर्की सदन मजलिस में सदस्यों की संख्या 550 है.

इन आंकड़ों से साफ़ होता है कि भारतीय लोकतंत्र में प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाना कितना ज़रूरी है. भारत में 25 लाख की आबादी पर एक सांसद है,  ऐसे में संसद, सांसद और जनता से संवाद की अपेक्षा बेमानी लगती है, लेकिन जिस हिसाब से नई संसद में सीटों की व्यवस्था पर ध्यान दिया गया, उसे देखकर लगता है कि आने वाले समय में कुछ नए संसदीय क्षेत्र और उनका प्रतिनिधित्व नए भारत की आधुनिक संसद में देखने को मिलेगा. शायद यही देखते हुए, नई लोकसभा में 545 से बढ़ाकर 888 सीटें और विजिटर्स गैलरी में 336 लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है. राज्यसभा में सदस्यों के बैठने की क्षमता 280 से बढ़कर 384 कर दी गई है. संयुक्त सत्र के दौरान नई लोकसभा में ही 1,272 से ज्यादा सांसद बैठने की व्यवस्था है.

डिजिटल संसद से सार्वजनिक भागीदारी

अगले 150 साल तक भारत के लोकतंत्र को सेवा देने के लिए लिहाज़ से इस भवन को तैयार किया गया है जो पूरी तरह डिजिटल सुविधाओं से लैस है. ऐसा कहा जा सकता  है कि Accessibility, Availability और Affordability यानि AAA फॉर्मूले से युक्त आधुनिक संसद श्रम, समय और धन की बचत करने में भी सफल होगी.

साल 1982 में शुरु हुई पहली ऑटोमेशन सर्विस के बावजूद भी संसद संवाद की कड़ी कमज़ोर रही. संसद के भीतर होने वाली गर्म बहस तो अखबार के पन्नों और टीवी की सुर्खियों में जगह बना लेते हैं, लेकिन उसके जरिए पास हुए जनहित से जुड़े कानून उतनी  जगह नहीं बना पाते हैं.  कोविड-19 के संकट ने तो डिजिटल तकनीक से युक्त संसद की अहमियत पर और भी अधिक बल दिया.

अंतर संसदीय संघ यानि आईपीयू की ग्लोबल रिपोर्ट 2022 के मुताबिक डिजटल क्रांति के इस दौर में सभी देशों की संसद को अब लोगों की भागीदारी के लिए डिजटिल सुविधाओं से लैस करना होगा. इस रिपोर्ट के मुताबिक ब्राज़ील डिजिटल संसद संवाद के माध्यम लोकतांत्रिक शासन, जवाबदेही, और सहयोग का बेहतरीन उदाहरण पेश करने वाला पहला देश है.

अब जब संसद के नए भवन में अल्ट्रा हाई डिफिनेशन युक्त 4K कैमरा, 4K ट्रांसमीशन, हाईडिस्पिले स्क्रीन, उच्च कवॉलिटी युक्त 41 ग्लोबल रोबोटिक कैमरे से कैप्चर होते हुए संसदीय कार्यवाही के दृश्य आपके मोबाइल की स्क्रीन पर तुरंत पहुंचेंगे तो निश्चित ही आप आज नहीं तो कल संसद से जुड़ाव महसूस करेंगे. 

इसी कड़ी में संसद के 96 साल के इतिहास में अब एक और नया अध्याय जुड़ गया है जिस पर नए भारत की संकल्पनाओं को मूर्त रूप दिया जाएगा. अगले 4 सालों में पुराना संसद भवन पूरे 100 वर्ष का हो जाएगा. इस बीच कितनी ही बार हुई मरम्मत का इशारा इस ओर था कि अब इस पुराने भवन को विश्राम की ज़रूरत है.

जब देश अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है तो लगता है नए भारत की संसद तमाम उपलब्धियों में शामिल सबसे प्रमुख उपलब्धि है. विरासत, वर्तमान और अतीत से मिली चुनौतियों ने हमेशा से भारत को आगे बढ़ने और अपने आदर्शों पर डटे रहने का हौंसला दिया है. वन अर्थ, वन फैमली, वन फ्यूचर ही वसुधैव कुटुंबकम का पर्याय है. निश्चित है नए भारत की संसद के शिलान्यासकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कॉनट्रैक्टर टाटा प्रोजेक्टस,शिल्पी बिमल पटेल, कई विभागों और हजारों श्रमिकों ने मिलकर आधुनिक संसद की इमारत को तो खड़ा कर दिया लेकिन इसमें लोकतंत्र की प्राण प्रतिष्ठा और अभिषेक करने की जिम्मेदारी स्वंय जनसेवकों की होगी. अंतराष्ट्रीय मानकों पर बन कर तैयार हुई नई संसद से अंतराष्ट्रीय बिरादरी को आत्मनिर्भर भारत के जीवन मूल्यों का संदेश देना अभी बाकी है जिसकी बानगी के लिए सबकी नज़र संसद के कल पर है.

(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)

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