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समाज में नासूर की तरह है नक्सली, लेकिन इस तरह की रणनीति अपना दे सकते हैं माओवादियों को उसके गढ़ में मात

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए उग्रवादी हमले में जिला सुरक्षा गार्ड के 10 जवान और एक गाड़ी चालक की मौत हो गई. राज्य में पिछले दो सालों में सुरक्षाबलों पर ये सबसे बड़ा हमला है. बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुंदर राज पी. ने बताया कि अरनपुर क्षेत्र में टर्भा डिवीजन के नक्सलियों की सूचना मिलने पर दंतेवाड़ा जिला के सुरक्षा मुख्यालय के जवानों को नक्सल विरुद्ध अभियान के लिए रवाना किया गया था. सवाल यह है कि इस तरह की घटना आखिरकार क्यों हो जाती है और क्यों हमारे जवान शहीद हो जाते हैं और आखिर कहां चूक रह जाती है?

नक्सलवाद की समस्या बड़ी पुरानी है. जिस जगह पर घटना हुई है वो एरिया जंगल में है और ऐसे में फोर्स अगर वहां जाती है तो उन्हें पता ही नहीं चलता है. ऐसे एरिया में जाने से पहले उस पूरे इलाके की रेकी की जानी चाहिए और यह पता लगाने की कोशिश की जानी चाहिए कि जो समर्थक हैं वो कहां के हैं, उनका बैकग्राउंड क्या रहा है. वे कैसे ऑपरेट करते हैं और इसमें हमारी इंटेलिजेंस बहुत स्ट्रॉन्ग होनी चाहिए. वहां के लोकल लोगों के साथ मेल-मिलाप होना चाहिए. चूंकि वे बहुत सारी खबरों को पास कर देते हैं. हमें पहले तो इस समस्या को ही देखना पड़ेगा कि यह क्यों है. उनकी जो समस्या है वो जंगल का है, जमीन का है.

उनका कहना है कि आपने (सरकार) ने हमारी जमीनों को दूसरों को दे दिया है. उन्हें यह समझाया जाना चाहिए कि जमीन पर विकास कार्य होंगे और उसका लाभ उन्हें और उनके परिवारों को ही दिया जाएगा. उन्हें नौकरियां मिलेंगी. उनके बच्चे स्कूल, कॉलेज में पढ़ने जाएंगे और फिर आगे बढ़ेंगे. शहरों में जो आम जनता हैं उनसे उनका मेल-मिलाप होगा और फिर वे धीरे-धीरे मेन स्ट्रीम में आ जाएंगे. इसलिए लड़ने का कोई फायदा नहीं होगा. ये बातें उन्हें समझाया जाना चाहिए.

दूसरी बात यह की हमें अपने फोर्स को कहीं भेजने से पहल इंटेलिजेंस की स्ट्रॉन्ग इनपुट लेनी चाहिए. उस प्रक्रिया में पहले एसओपी लगया जाना चाहिए ताकि यह पता हो कि हमें कहा जाना है और हम कहां जा रहे हैं. चूंकि जब आपने किराए पर गाड़ी ली है और उसका कोई चालक बाहरी व्यक्ति है तो उसके बारे में तो जरूर पता होना चाहिए था कि वो कौन था और कहां से आया था. उसका बैकग्राउंड क्या रहा है. क्या कहीं उसने तो सूचना नहीं दे दी थी. जिस रास्ते से ले जाया जा रहा था उस रूट की जांच पहले होनी चाहिए थी. ताकि कहीं अगर आईईडी लगा होगा तो वह पता चल जाएगा.  

मेरा ख्याल से नक्स्ल की समस्या को खत्म करने के लिए दोनों तरीकों के हथकंडों का एक साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए. पहला यह कि लॉ एंड आर्डर के मुताबिक जो कार्रवाई हो सकती है वो चलते रहना चाहिए और राजनीतिक स्तर से जो प्रयास किया जाना चाहिए वो भी होना चाहिए. एडमिनिस्ट्रेटिव स्तर पर उनके लीडर के साथ बैठकर उनकी मांगों को देखना चाहिए कि उनकी क्या मांग हैं, वो चाहते क्या हैं. अगर यह होता है तो फिर कुछ हद तक या कहें की पूरे तरीके से समस्या खत्म हो जाएगी. कभी वो मार रहे हैं, कभी हम उन्हें मार गिराएंगे ऐसे में जो उनकी समस्या है वो जस की तस बनी रहेगी.

सरकारें चाहे कोई भी रही हो सभी ने अपने स्तर से उग्रवाद की समस्या को खत्म करने के लिए अभियान चलाया है. लेकिन दिक्कत ये होती है जब हमला अचानक होती है तो कुछ भी पता नहीं चल पाता है. जवान तो उन्हें अभियान के तहत मारने के लिए जाते हैं और वो बैठे होते हैं हमें मारने के लिए और इसी में जो पहले हमला कर दिया वो जीत जाता है. इसलिए मेरे हिसाब से इस समस्या का हल दोनों तरफ से बैठकर हल किया जा सकता है.

[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]

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