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मणिपुर: चार दिन से भूस्खलन के मलबे में दबे सैनिक क्या जिंदा बच पाएंगे?

मणिपुर में हुए जबरदस्त भूस्खलन की त्रासदी में अब तक सेना के 18 जवानों और छह नागरिकों की मौत हो चुकी है, लेकिन अफसोसजनक ये है कि अभी भी  12 सैनिक और 26 अन्य लोग मलबे के नीचे दबे हुए हैं. सेना और एनडीआरएफ समेत अन्य एजेंसियां युद्ध स्तर पर बचाव कार्य में जुटी हुई हैं, लेकिन तेज बारिश इसमें रोड़ा बनी हुई है. मलबे में दबे लोगों का पता लगाने के लिये हालांकि सेना अब विदेशी तकनीक का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन जानकार कहते हैं कि इसकी क्षमता 20 मीटर तक की है. मगर तेज़ बारिश की सूरत में ये तकनीक भी कितनी कारगर साबित होगी, ये पक्के तौर पर नहीं बताया जा सकता है.

29-30 जून की रात मणिपुर के नोने जिले के टूपल रेलवे स्टेशन के करीब हुए भारी भूस्खलन से भारतीय सेना की गोरखा राइफल्स की 107 टीए कंपनी का कैंप चपेट में आ गया था. जानकारी के मुताबिक जिरीबाम को इंफाल से जोड़ने के लिए एक रेलवे लाइन का निर्माण हो रहा है, जिसकी सुरक्षा के लिए टेरिटोरियल आर्मी के जवानों को तैनात किया गया था. बुधवार रात को वहां पर भारी भूस्खलन हुआ जिसमें कई जवान दब गए. इसके अलावा रेलवे के अधिकारी, मजदूर और प्राईवेट कंपनी के अधिकारी और कर्मचारी भी मौजूद थे. 

चूंकि सैनिकों व अन्य लोगों को मलबे के नीचे दबे चार दिन हो गए हैं, इसलिए उनके जीवित बचने की गुंजाइश बहुत कम है. कई मीटर मलबे के नीचे दबे हर शव को निकालना सेना व एनडीआरएफ की टीम के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव एस एम ख़ान के मुताबिक गीली मिटटी की वजह से मलबे में दबे लोगों के ज़िंदा होने की संभावनाएं कम हो गई हैं. अगर मलबा सूखा होता तो उसमे एयर पॉकेट बनने की संभावना थी और ऑक्सिजन मिलने से सैनिकों के बचने की उम्मीद भी की जा सकती थी.

राज्य की राजधानी इम्फाल स्थित रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता, लेफ्टिनेंट कर्नल मोहित वैष्णव ने बताया है कि बचाव कार्य के लिए भारतीय सेना, असम राइफल्स, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ का साझा सर्च ऑपरेशन चल रहा है. इसमें अब तक टेरिटोरियल-आर्मी (टीए) के 13 जवानों और पांच  सिविलियन्स को सुरक्षित बचाने में कामयाबी मिली है. हालांकि टीए के 18 जवान और 6 सिविलियन्स के शवों को भी मलबे से निकाला गया है, लेकिन अभी भी 12 सैनिक और 26 सिविलियन लापता हैं.

सेना के मुताबिक, मलबे में दबे जवानों और सिविलयन का पता लगाने के लिए सेना द्वारा खास वॉल पैनिट्रेसन रडार (Wall Penetration Radar) का इस्तेमाल किया जा रहा है. एंटी-टेरिरिस्ट ऑपरेशन के दौरान घरों या अन्य किसी जगह की दीवारों के पीछे आंतकियों की लोकेशन का पता लगाने के लिए इस रडार का इस्तेमाल किया जाता है. ये रडार दीवार के पीछे स्टेटिक और मूविंग टारगेट का पता लगा पाने में सक्षम है. इसी रडार को अब मलबे के नीचे दबे सैनिकों और बाकी लोगों का पता लगाने के लिए उपयोग में लाया गया है.

सेना के लिए ये एक बड़ी प्राकृतिक त्रासदी है, जहां एक साथ डेढ़ दर्जन जवानों के शव मलबे से निकाले गए हैं और अभी भी कम से एक दर्जन जवान दबे हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत मणिपुर के मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह खुद इस रेस्कयू ऑपरेशन की मॉनिटरिंग कर रहे हैं. इस भूस्खलन में स्थानीय प्रशासन ने 50 से ज़्यादा लोगों के लापता होने की बात कही है, लेकिन स्थानीय लोगों को आशंका है कि मरने वाले लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा हो सकती है. वह इसलिए कि रेल की इस परियोजना में बाहरी मज़दूर भी काफी संख्या में काम कर रहे थे, जिनके न तो नाम उपलब्ध हैं न ही अन्य कोई दस्तावेज़.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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