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महाराष्ट्र: सरकार चलाने का ये फार्मूला आख़िर कितना होगा कारगर?

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में अगले दो-तीन दिन सियासी गहमागहमी वाले रहने वाले हैं. इसलिये कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार होना है, लिहाजा उनके गुट वाली शिवसेना के 39 विधायकों के साथ ही बीजेपी के तमाम विधायकों के दिल की धड़कनें बढ़ चुकी हैं कि मंत्री बनने के लिए उनका नंबर आएगा कि नहीं. इनमें भी सबसे ज्यादा बेचैन वे हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं और जिन्हें सरकार चलाने का ठीकठाक अनुभव भी है.

शिंदे और बीजेपी के बीच नए मंत्रिमंडल को लेकर जिस फार्मूले पर सहमति बनने की खबरें आ रही हैं और अगर उस पर ही अमल हुआ, तो बीजेपी के कई विधायकों का गुस्सा देखने को मिल सकता है, जिसमें कई पूर्व मंत्री भी शामिल होंगे. इसलिये कि बीजेपी इस बार कई नए चेहरों को मंत्री बनाने के पक्ष में है. जाहिर है कि इसमें कुछ पुराने चेहरे भी होंगे, लेकिन उनकी संख्या कम होगी.

मंत्रिमंडल विस्तार पर लंबी चर्चा 
बताते हैं कि मंत्रिमंडल के इस विस्तार को लेकर पिछले कुछ दिनों में सीएम शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने काफी दिमाग खपाया है. बीजेपी ने 40 विधायकों वाले शिवसेना के बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री भले ही बनवा दिया हो लेकिन ऐसा भला कैसे हो सकता है कि बीजेपी सरकार पर अपना पूरा कंट्रोल ही न रखे. महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार बताते हैं कि महज महीने भर के भीतर ही बीजेपी आलाकमान ने शिंदे को ये अहसास दिला दिया कि वे हवा में उड़ने की न सोचें और जो मिल रहा है, उससे ही संतुष्ट रहने की आदत डाल लें. मुंबई के सियासी गलियारों से छनकर दिल्ली के रायसीना हिल्स तक पहुंचने वाली खबरों पर अगर यकीन करें, तो लगता यही है कि सीएम शिंदे बीजेपी के आगे नतमस्तक की मुद्रा में आ गए हैं और इसके सिवा उनके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं था.

महाराष्ट्र में पिछले तीन दिन से चल रही सियासी उहापोह पर नजर रखने वाले विश्लेषक बताते हैं कि एकनाथ शिंदे ने अपने गुट से 20 विधायकों को मंत्री बनाने की मांग बीजेपी नेतृत्व के सामने रखी थी. लेकिन बीजेपी ने उनके आगे 13 मंत्री बनाने की पेशकश रखी. कहते हैं कि मामला शायद 14-15 पर जाकर सुलझ गया लग रहा है. लेकिन शिंदे की बड़ी मुसीबत ये बन गई कि वे बाकी के 24 विधायकों को कैसे अपने साथ रखने का भरोसा दिला पायेंगे, क्योंकि उन्होंने तो उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना का साथ ही इस आस में छोड़ा था कि उन्हें सरकार में मलाईदार मंत्रीपद मिलेगा.

शिंदे ने अपने विधायकों को मनाया
ख़बर ये भी है कि अपने विधायकों को समझाने के लिए सीएम शिन्दे ने अपने गुट के हरेक विधायक के साथ अलग-अलग लंबी बैठक करके उनकी मान-मनोव्वल करी कि जो मंत्री नहीं बन पाएंगे, उन सबको किसी कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बना दिया जायेगा, जिसका दर्जा भी एक राज्य मंत्री का होता है. लेकिन अब इस गठबंधन वाली सरकार में जो बड़ा अड़ंगा आने का खतरा दिख रहा है, वो यही है कि शिन्दे गुट के सारे विधायकों को अगर इस बग़ावत का ईनाम मिलता है, तब बीजेपी अपने विधायकों के गुस्से को भला कैसे संभालेगी. मुंबई के सियासी गलियारों से जो खबर आ रही है, उसके मुताबिक, कैबिनेट में करीब 45 मंत्री बनाए जा सकते हैं. इनमें 25  बीजेपी के कोटे से, 13 शिंदे कोटे से और सरकार को समर्थन देने वालों में से 7 निर्दलीय विधायक भी मंत्री बन सकते हैं. हालांकि कुछ सूत्र ये भी बता रहे हैं कि महा विकास आघाड़ी गठबंधन को दोबारा सरकार में आने से रोकने के लिए बीजेपी शिंदे गुट से 15 मंत्री भी बना सकती है.

बीजेपी ने शिंदे को भले ही सीएम बना दिया हो लेकिन वह ये भी जानती है कि सरकार में एक मंत्री पद का कितना महत्व होता है और खासकर गठबंधन की सरकार में ये कितना मायने रखता है. दरअसल, आज़ादी के बाद कई दशकों तक जनसंघ, जनता पार्टी और फिर बीजेपी कई सालों तक विपक्ष में रही. इसमें जनता पार्टी अपवाद है, जो 1977 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद सत्ता में आई थी लेकिन तब उसमें कई ऐसे समाजवादी नेताओं का भी योगदान था, जिनकी विचारधारा संघ से मेल नहीं खाती थी.

लेकिन बहुतेरे दार्शनिकों ने कहा है कि "सत्ता,शक्कर के मीठेपन और ज़हर के कड़वेपन का ऐसा घालमेल है जिसे राजनीति में आया हर इंसान पीना ही चाहता है क्योंकि इसके बगैर उसकी तृष्णा कभी शांत ही नहीं हो सकती." ओशो रजनीश ने कहा था कि, "पांच साल में एक बार आपकी चौखट पर आकर अगर कोई नेता आपसे वोटों की भीख मांगता है, तो समझ लेना कि देश में उससे बड़ा भिखारी कोई और हो ही नहीं सकता. लेकिन परेशानी वाली बात ये है कि तब आप उसकी लच्छेदार व चिकनी-चुपड़ी भाषा के ऐसे मुरीद बन जाते हो कि वो अगले पांच साल में आपको भिखारी बनाकर रख देता है. फिर भी आप लोग उसके भाषण पर तालियां बजाते हो, बजाते रहो क्योंकि ये लोकतंत्र भी किसी सर्कस से कम नहीं है."

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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