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ब्लॉग: यूपी का चुनाव जीतने के लिए क्या है मायावती की अचूक रणनीति?

उत्तरप्रदेश में तीन चरण के मतदान हो चुके हैं और चौथे चरण के 53 सीटों पर आज मतदान है. चौथे चरण में किसकी है रणनीति मजबूत और किसका है पलड़ा भारी. इसकी गुत्थी समझने की कोशिश करते हैं.

उत्तरप्रदेश चुनाव में बीजेपी और सपा की जमकर चर्चा हो रही है लेकिन इस चर्चा में मायावती पूरी तरह गायब हैं क्योंकि बीएसपी के वोटर साइलेंट हैं वहीं मायावती ढिंढोरा कम पीटती है बल्कि चुपके-चुपके रणनीति ठोस बनाती हैं, शायद जिसकी भनक किसी को भी नहीं लगती है. ऐसी रणनीति जिसके सामने बड़े-बड़े चुनावी तुर्रम खान की जमीन खिसक सकती है. मायावती नपा-तौला बोलती भी हैं और सही समय पर सही मुद्दे पर हमला करती है.

उम्मीदवारों के चयन पर खास ध्यान

कब्रिस्तान और श्मसान के मुद्दे पर अखिलेश भटकते हुए नजर आ रहे थे जबकि मायावती ने मोदी के सवालों पर मोदी पर ही सवाल उठा दिया. श्मशान-कब्रिस्तान विवाद पर मायावती बोलीं कि हार के डर से मोदी ने धर्म का मुद्दा उठाया है. पूछा जहां बीजेपी की सरकार वहां कितने श्मशान बनवाए हैं. खासकर मायावती उम्मीदवारों के चयन पर खास रणनीति बनाती हैं. न तो बीजेपी ऐसी चाल सोची होगी और न ही सपा को ये बात समझ में आई होगी. उम्मीदवार के चुनाव में मायावती की रणनीति जबर्दस्त है. जहां अखिलेश यादव ने यादव, मुस्लिम और राजपूत उम्मीदवारों को तरजीह दी है वहीं बीजेपी ने अगड़ी जाति और पिछड़ी जाति पर खास ध्यान दिया है लेकिन मायावती हर सीट में अलग-अलग रणनीति अपनाई है ऐसी रणनीति जिसके सामने सभी पार्टियां पीछे छूटती नजर आ रही है.

मायावती की रणनीति होती है कि दलित में जाटव, मुस्लिम और अगड़ी जाति में ब्राह्मण उम्मीदवार को ज्यादा से ज्यादा टिकट दें तभी तो उन्होंने सपा-कांग्रेस के 72 मुस्लिम उम्मीदवार के जवाब में 100 मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिये हैं. वहीं 87 सीटों पर दलितों को, 106 सीटों पर ओबीसी, 66 सीटों पर ब्राह्मण और 36 सीटों पर ठाकुरों को टिकट दिये हैं. पिछले चुनाव में मायावती ने 88 मुस्लिम, 85 दलित, 93 ओबीसी, 70 ब्राहमण और 31 ठाकुर उम्मीदवार उतारे थे. 2007 के चुनाव में मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग करके सबको चौंका दिया था.

मायावती की क्या है अचूक चाल

उत्तरप्रदेश में आज 53 सीटों पर मतदान हो रहा है. 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को 24 सीटें, बीएसपी को 15 सीटें, कांग्रेस को 6 सीटें, बीजेपी को 5 सीटें और अन्य को तीन सीटें मिली थी. इन सीटों पर मायावती की रणनीति इसबार क्या है. मायावती ने ये नीति अपनाई है जहां पर जो जाति ज्यादा है उस जाति को टिकट देने में प्राथमिकता दी गई है. 15 सीटों पर मुस्लिम,15 सीटों पर ब्राहमण और 11 सीटों पर दलित की आबादी सबसे ज्यादा है यानि नंबर वन पर है. इसके अलावा 3-3 सीटों पर कुर्मी और लोध मजबूत है जबकि 2-2 सीटों पर ठाकुर और यादव का वर्चस्व है. इन सीटों पर किस पार्टी ने किसे उतारा है ये देखकर मायावती की रणनीति साफ साफ समझ में आ सकती है.

चौथे चरण में 15 सीटों पर मुस्लिम की आबादी सबसे ज्यादा है इसमें 9 सीटों पर मायावती ने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन ने सिर्फ चार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. जाहिर है कि बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है इसीलिए इनकी चाल अलग है. अब बात करते हैं ब्राह्मण बाहुल्य इलाके की. इस चरण में 15 सीटों पर ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी सबसे ज्यादा है . मायावती ने 9, बीजेपी गठबंधन ने भी 9 और सपा-कांग्रेस ने सिर्फ 5 ब्राहमण उम्मीदवारों को टिकट दिये हैं. अगड़ी जाति में जहां मायावती ब्राह्मण उम्मीदवारों को तरजीह देती है वहीं सपा का पंसदीदा उम्मीदवार ठाकुर है. 13 दलित सीटें हैं जहां पर सभी पार्टियों को उम्मीदवार उतारना अनिवार्य है लेकिन मायावती ने इन सीटों पर 7 जाटव उम्मीदवार उतारे हैं जबकि सपा-बीजेपी ने जाटव छोड़कर दूसरी दलित जाति को तरजीह देने की कोशिश की है.

ठाकुर बाहुल्य सीटें सिर्फ दो ही है लेकिन सपा-कांग्रेस ने 53 सीटों में से 12 सीटों पर ठाकुर, बीएसपी और बीजेपी ने 7-7 सीटों पर ठाकुर उम्मीदवारों को चुना गया है. यादव बाहुल्य सीटें सिर्फ 2 ही हैं लेकिन सपा ने 5, बीजेपी और बीएसपी ने 2-2 सीटों पर यादव उम्मीदवार उतारे हैं. बीजेपी ने बीएसपी और सपा के मुस्लिम उम्मीदवार की जगह पिछड़ी जाति के उम्मीदवार को ज्यादा टिकट दिया है. जीत के लिए सही उम्मीदवार का चयन महत्वपूर्ण होता है वहीं मायावती सीएम का चेहरा भी हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि वाकई मुस्लिम और ब्राह्मण वोटर मायावती को वोट देंगे.

धर्मेन्द्र कुमार सिंह, चुनाव विश्लेषक और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं. इनसे ट्विटर पर जुड़ने के लिए @dharmendra135पर क्लिक करें. फेसबुक पर जुड़ने के लिए इसपर क्लिक करें. https://www.facebook.com/dharmendra.singh.98434

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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