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कोर्ट में गोलीबारी और जेल में गैंगवार, तिहाड़ में गैंगस्टर टिल्लू ताजपुरिया की हत्या के बाद सवाल, कैसे रची जा रही साजिश

एशिया की सबसे सुरक्षित मानी जानी वाली तिहाड़ जेल में कुख्यात कैदी सुनील उर्फ टिल्लू ताजपुरिया की गैंगवार में हत्या कर दी गई. टिल्लू पर कई गंभीर आपराधिक मामले चल रहे थे. रोहिणी कोर्ट में गैंगवार का भी आरोपी था. 19 दिनों के अंदर तिहाड़ जेल में गैंगवार की ये दूसरी वारदात है. ऐसे में जेल के अंदर सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. कहा जा रहा है कि इस तरह की वारदात के घटित होने को लेकर जेल प्रशासन को पहले से इसकी भनक तक नहीं लगी. ऐसे में तिहाड़ जेल प्रशासन सवालों के घेरे में आ गया है.

मेरा सवाल सभी से सवाल ये है कि क्या ये अंतिम गैंगवार था? क्या इसके बाद गैंगवार की घटनाएं नहीं होंगी?  क्या ये अभी और आगे जाएगी? मेरा अपना अनुभव कहता है कि ये तो अभी बस शुरुआत भर है, क्योंकि लॉरेंस विष्णोई अभी जेल के अंदर है. नीरज बवाना उसके गैंगस्टर है और नए गैंगस्टर तेजी के साथ निकलकर सामने आ रहे हैं. उनकी एक बहुत बड़ी तादाद है जो हमेशा एक वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहते हैं. गैंगवार होता रहता है. पूरे भारत में गैंगवार होता है. मैक्सिको, अमेरिका और ईटली तक के जेलों में गैंगवार की घटनाएं होती हैं. गैंग वॉर का हर जगह पर अपना एक साम्राज्य रहा है. ये कहानी खत्म होने वाली नहीं है. ये दूसरे तरीके से किसी और स्वरूप में आ सकती है.आपने देखा होगा कि किस तरीके से लॉरेंस विष्णोई अपना साक्षात्कार टेलीविजन पर दे रहे हैं. 

अभी जिस ताजपूरिया के बारे में हम बात कर रहे हैं वो अपने आप में इतना बड़ा क्राइम का सिंडिकेट बन गया था कि दिल्ली और खासतौर पर हरियाणा और पश्चिमी यूपी के अंदर उसके कई गुर्गे उसके सक्रिय हो गए थे. वे इसे भगवान या गुरु के रूप में देखते थे. वे सभी अभी या तो जेल में हैं या भागे हुए हैं. ये गैंगवार अभी खत्म नहीं होने वाली है. इसका रूप बदल सकता है या यह थोडे़ समय के लिए थम सकता है. यूपी में आपने अभी देखा वहां पर किस तरीके से गैंगवार हुआ. इस घटना के भी तार अतीक और अशरफ को मारने वाले सन्नी से जुड़ रही है. चूंकि जो तुर्किश पिस्टल जिगना का इस्तेमान अतीक और अशरफ को मारने के लिए किया गया था, और वहीं सेम पिस्टल यहां भी इस्तेमाल हुआ है. इससे पहले इसका इसका इस्तेमाल धौनी कोर्ट में भी किया गया था. अभी दिल्ली पुलिस ने एक बड़ा काम किया है. उसने दीपक बॉक्सर को मैक्सिको से उठाकर भारत लाया है. उप पर अभी ट्रायल चल रहा है और वह जेल में बंद है.

कहने का मतलब ये है कि इनके जो लिंक है वो केवल दिल्ली हरियाणा और यूपी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों में है. इनके लिंक अंतरराष्ट्रीय हो गए हैं जैसे अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, रूस और यूरोप में भी बहुत से जगहों पर इनके लोग बैठे हुए हैं. ये सभी इनको मोरल, इकोनॉमिक और सभी तरह के समर्थन देते हैं. ये बहुत बड़े रूप में जा सकती है. हमने देखा कि कैसे सुकेश चंद्र ने 200 करोड़ रुपये की फिरौती की मांग की वो भी जेल में बैठकर और इसमें दिल्ली के सबसे सीनियर मॉस्ट आईपीएस अधिकारी संजीव गोयल सस्पेशन में हैं. क्योंकि उनके खिलाफ बहुत ही गंभीर आरोप लगाए गए थे कि इस मामले में उनकी कहीं न कहीं संलिप्ता है. करोड़ों रुपये के लेन देने सत्येंद्र जैन और डीजीपी के ऊपर लगया गया. इसके अलावा दिल्ली के जो जेल हैं और उनके 99 कर्मियों और अधिकारियों के ऊपर विभागीय जांच चल रही है. दिल्ली पुलिस भी इन सब को लेकर जांच कर रही है. ये जो शूटआउट हुआ है तो मेरा मानना है कि इस तरह की घटनाएं तभी होती हैं जब लोग आपस में मिले हुए होते हैं. 

मेरा दृष्टिकोण यही है कि ये कोई चूक नहीं है, बल्कि ये मिली भगत का नतीजा है. क्योंकि इसके पीछे बहुत सारा पैसा, ताकत, जातीय समीकरण काम करता है. आपने देखा कि मूसेवाले का मर्डर हो गया पंजाब के अंदर. एक पंजाबी लॉबी है जिनके लोग कनाडा तक बैठे हुए हैं. उनके नाम तो पब्लिक डोमेन में हैं. अब तो उनकी तलाश कनाडा सरकार भी करने लगी है. ये विषय इतना जटिल है कि इसे आम आदमी को समझ पाना बहुत मुश्किल है. ये जांच का विषय है. बहुत सारी ऐसी चीजें होती हैं जिसे पब्लिक डोमेन में नहीं लाया जा सकता है और पुलिस उसे सिर्फ कोर्ट में ही पेश कर सकती है. पुलिस को सारे सबूत कई बार तो बंद लिफाफे में देनी होती है.

जब गैंगवार होता है तो उसमें कई नए गैंग भी बनते हैं. इसमें उसके परिवार के लोग, रिश्तेदार, जात-बिरादरी, उससे मिलने व चाहने वाले लोग यानी कि वो एक बहुत बड़ा साम्राज्य खड़ा कर देता है जो कि बाद में उसको मदद पहुंचाते हैं. चाहे वह जेल में ही क्यों न बंद हो. अब शाइस्ता परवीन का ही उदाहरण ले लीजिए वो फरार चल रही हैं और इसमें उनके तमाम लोगो उसकी मदद कर रहे हैं. पूरी यूपी पुलिस उसको ढूंढने में लगी हुई है. उनका एक और साथी की भी पुलिस को तलाश है. लेकिन वे ढूंढ नहीं पा रहे हैं. चूंकि इनका अपना एक बहुत बड़ा साम्राज्य होता है और दूर-दूर तक होता है. आपने अतीक अहमद को देखा कि कैसे उसके तार पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं. इसमें पैसा भी बहुत बड़ा इनवॉल्व है और बहुत सारी राजनीतिक समर्थन भी इन्हें प्राप्त होता है. ये सब मामले अब पूरी तरह से नंगा हो गया है. वे कहीं किसी फोटो में दिकाई दे जाते हैं, तो कहीं वे कहीं उनके फाइनेंस के साथ जुड़े दिखाई देते हैं. 

ये इतनी बड़ी समस्या भारत के अंदर है कि इससे निपटने के लिए सरकार को बहुत ही मजबूत निर्णय लेने होंगे. हालांकि अब तो ये लिए जा रहे हैं और यूपी में तो ये साफ तौर पर दिख भी रहा है. वहां पर जिस तरीके से एनकाउंटर और शूटआउट हो रहे हैं. योगी जिस तरह से बुलडोजर चलवा रहे हैं, उस पर सवाल पैदा किए जा रहे हैं लेकिन कहीं न कहीं आपको कड़वा जहर पीना ही पड़ेगा और तभी इस तरह के गैगस्टर को खत्म किया जा सकता है और सरकारे और पुलिस इस पर रोक लगा सकती है नहीं तो ये गैंग वॉर कहां तक पहुंचेगी. ये कोई नहीं बता सकता है.

तिहाड़ जेल में जो सुरक्षा मामला है वो बहुत ही खराब है. जो पब्लिक डोमन में बातें हैं, उससे कहीं और ज्यादा हालत खराब है. मैं अमेरिका में वहां की जेलों को देखने गया था. वहां पर जेल नहीं बोला जाता है बल्कि उसे डिटेंशन सेंटर कहा जाता है. वहां पर पूरा फुलप्रूफ सिस्टम होता है वहां पर चूक होने पर अधिकारियों और प्रशासन को बहुत जवाब देना पड़ता है. लेकिन हमारे यहां एक चूक होती है तो उसके दूसरी भी होती है. सबने देखा कि साकेत कोर्ट के अंदर किस तरह से गवाह को गोली मार दी गई और किस तरह से वकील और पुलिस आमने सामने आ गए. ये सारी चीजें इतनी उलझी हुईं है और इसे सरकरा सुलझा पाने में कहां तक सफल हो पाएगी ये कहना बड़ा मुश्किल है. मेरे हिसाब से इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए बड़े स्तर पर अगल से गैंग्स्टरों से जुड़े मामलों की छानबीन के लिए विभाग बनाया जाना चाहिए. 

हालांकि स्पेशल सेल इसके लिए काम कर रही है लेकिन और जो राज्य पुलिस हैं उसे भी समन्वय के साथ काम करना चाहिए. इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए कि वे किस राजनीतिक दल के समर्थन में काम करते हैं. जब तक सभी सरकारों की एक जैसी इच्छाशक्ति नहीं होगी तब तक इसमें सुधार की गुंजाइश कम होगी. क्योंकि इस तरह की परिस्थितियों में गैग्स्टर के अंदर ये मैसेज जाता है कि इस सरकार के अंदर मुझे शरण नहीं मिली तो फलाने के यहां मिलेगी क्योंकि फलाने राज्य में दूसरे राजनीतिक दल का शासन है. कहने का मतलब है कि जब तक हम सभी एक साथ मिलकर और एक जैसा व्यवहार नहीं करेंगे तब तक इसमें कामयाबी मिलना मुश्किल है. आने वाले समय में ये जो राजनीतिक दल इन्हें समर्थन दे रहे हैं, उनके लिए भी यह बहुत बड़ा सिर दर्द बन जाएगा. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब उन्हें पछताना पड़ा है.

[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]
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