BLOG: घबराइए मत- एडल्ट्री नहीं, पर्सनल फ्रीडम के रास्ते खुलेंगे- फ्रीडम किसी मायने में गलत नहीं
एडल्ट्री अब अपराध रहा ही नहीं- यानी व्यभिचार करना- मतलब किसी दूसरे की बीवी से संबंध रखना अब कोई अपराध ही नहीं है.

एडल्ट्री यानी व्यभिचार अब अपराध की सूची में नहीं आता. सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री को अपराध बनाने वाले आईपीसी के सेक्शन 497 को ही असंवैधानिक करार दिया है. एक भले मानस ने कहा, अब समाज बर्बाद हो जाएगा. सेक्शन 377 के रद्द होने के बाद देश की संस्कृति पर एक हथौड़ा चला दिया गया है. अब तो व्यभिचार बढ़ता ही जाएगा. शादी जैसी संस्था का क्या होगा? वैसे शादी जैसी संस्था को बचाने के लिए आप जो न करें, सो कम. औरत को रौंदे-कुचलें, मुंह पे ताले लगा दें- क्योंकि शादी जैसी संस्था की पवित्रता को बचाए जो रखना है.
केंद्र सरकार ने एडल्ट्री के कानून को बचाए रखने के लिए कोर्ट में यही दलील दी थी. उसका कहना था कि अगर कानून खत्म होगा तो औरत-आदमी छुट्टे हो जाएंगे. एक पक्ष का यह भी कहा था कि सेक्शन 497 में एडल्ट्री के लिए मर्द को तो पांच साल की सजा हो सकती है, लेकिन उसकी साथी औरत आसानी से छूट जाती है. अपराध एक सा, तो सजा भी एक सी होनी चाहिए. इसीलिए इस कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाने की हिमायत की गई थी. सारा पंचर यहीं फंसा था- मतलब एडल्ट्री के अपराध के लिए औरत को भी उतनी ही सजा दी जाए जितनी मर्द को दी जाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस बहस को खत्म कर दिया. एडल्ट्री अब अपराध रहा ही नहीं- यानी व्यभिचार करना- मतलब किसी दूसरे की बीवी से संबंध रखना अब कोई अपराध ही नहीं है. वैसे सिर्फ इतने भर से काम चलने वाला नहीं. इसके लिए हमें सबसे पहले इस सेक्शन को समझना होगा. सेक्शन कहता था कि कोई भी शादीशुदा औरत अगर पति के अतिरिक्त किसी दूसरे विवाहित पुरुष से संबंध बनाती है तो उस पुरुष को सजा हो सकती है. लेकिन इसमें जरूरी बात यह थी कि इस स्थिति में शिकायत उस औरत के पति द्वारा ही की जानी चाहिए. ऐसे मामले में भी दो तरह की स्थिति बनती थी. पहली यह कि अगर इस तरह के संबंध में औरत की मंजूरी नहीं है तो आदमी के खिलाफ रेप का केस बनेगा और उस पर क्रिमिनल मुकदमा चलाया जाएगा. दूसरी स्थिति यह थी कि अगर औरत की सहमति है, फिर भी पति शिकायत करता है तो सेक्शन 497 के तहत कार्रवाई की जाएगी और यह व्यभिचार माना जागा.
इस मामले में विवाद की बात यह थी कि अगर औरत के पति को इस संबंध से कोई शिकायत नहीं तो औरत से संबंध रखने वाले शादीशुदा मर्द के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. शादीशुदा मर्द की बीवी, जो इस मामले में विक्टिम हो जाती है, भी उसके खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करा सकती थी. मतलब आपका पति किसी दूसरी शादीशुदा औरत से संबंध रखे, फिर भी आप पति को एडल्ट्री के केस में जेल नहीं करवा पाएंगी. उसे जेल होगी सिर्फ शादीशुदा औरत के पति के शिकायत करने पर. कुल मिलाकर सेक्शन 497 के तहत किसी भी औरत की राय कोई मायने नहीं रखती थी. यह कानून कहीं न कहीं औरत को शादी के बाद पति की ही संपत्ति मानता था.
चीफ जस्टिस ने तभी इस मामले में बार-बार यह कहा कि औरत किसी तरह से किसी मर्द की प्रॉपर्टी नहीं है. जो भी कानून उसे प्रॉपर्टी की तरह समझता है, उसे खत्म कर ही दिया जाना चाहिए. तो, एडल्ट्री तो खत्म हो गई लेकिन अगर एडल्ट्री के कारण कोई दूसरा अपराध होता है तो मामला दूसरा होगा. अगर बीवी के व्यभिचार के कारण पति सुसाइड कर लेता है तो सबूत पेश करने के बाद इसमें खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला बन सकता है. बाकी, इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा कि इस सेक्शन को खत्म करना इसलिए जरूरी है क्योंकि औरत की गरिमा सबसे ऊपर है. पति उसका मालिक नहीं है.
पति अक्सर मालिक की तरह बर्ताव करते हैं- इस बात से कौन इनकार कर सकता है. इस कानून ने उनके हाथों में चाबुक भी दे दी थी. सिकंदराबाद के फैमिली कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा केस आया था जिसमें एक कपल को म्यूचुअल कनसेंट से तलाक मिल गया था. पति को शक था कि बीवी का संबंध किसी दूसरे पुरुष से है. बीवी के नए पार्टनर के पास जाने के बाद पति ने अदालत से एमओयू लिया जिसके तहत उसकी बीवी अपने दो बच्चों से नहीं मिल सकती थी. औरत उस फैसले को चैलेंज भी नहीं कर सकती थी. तब वकीलों ने पाया कि इस कानून से औरत को धमकाया जा सकता है. यह भी कहा गया कि मर्द इस कानून के तहत आसानी से तलाक ले लेते हैं और बीवी से उसकी सोशल स्टैंडिंग भी छीन लेते हैं. अब इस सेक्शन को खत्म करके, सुप्रीम कोर्ट ने एक नई पहल की है. यह लगातार कहा जा रहा है कि दो एडल्ट लोगों की परस्पर सहमति बहुत मायने रखती है. सेक्शन 377 को रद्द करने के समय भी सहमति पर बहुत जोर दिया गया. सहमति, किसी की भी. यह राइट टू प्राइवेसी का मामला भी है.
समाज की पुरानी वोकैबलरी बदल रही है. नए शब्द, नई सोच के हिसाब से गढ़े जा रहे हैं. बेशक, इनसान को अपने जीवन के इनटिमेट फैसले करने की प्राइवेसी मिलनी ही चाहिए. इसके लिए क्रिमिनल लॉ के तहत सजा की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. इस सिलसिले में यूएस के फ्रीडम ऑफ इंटिमेट एसोसिएशन के जजमेंट का जिक्र किया जा सकता है. 1984 में यूएस सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ खास इनटिमेट ह्यूमन रिलेशनशिप्स को राज्य के दखल से दूर रखा जाना चाहिए क्योंकि हमारे संविधान में व्यक्तिगत आजादी की सुरक्षा भी मायने रखती है. ऐसी आजादी की बात इस साल हादिया मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने दोहराई थी. शफीन जहां से उसके संबंध पर कोर्ट ने कहा था कि संविधान हर व्यक्ति के मामले में लिबर्टी और ऑटोनॉमी को मान्यता देता है. शादी में, या शादी के बाहर पार्टनर चुनने की च्वाइस हर व्यक्ति के एक्सक्लूसिव डोमेन का हिस्सा है.
औरत की सेक्सुएलिटी पर किसका कंट्रोल हो, इस पर बहस की कोई गुंजाइश नहीं. अपने देह पर उसका खुद का ही हक है. खास बात यह है कि कोर्ट ने भी इस बात को रेकोग्नाइज किया है. हमें भी अपने दिमाग को खोलना चाहिए और ताजा हवा के झोंके को महसूस करना चाहिए.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)




























