BLOG: नीतीश ने बिहार में शराबबंदी का फूटा फुग्गा फिर फुला दिया

बिहार के शराबप्रेमी डाल-डाल तो सीएम नीतीश कुमार पात-पात! जब पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी और न्यायमूर्ति नवनीति प्रसाद सिंह की खंडपीठ ने राज्य में शराब की खपत, भंडारण और बिक्री पर रोक संबंधी राज्य सरकार की 5 अप्रैल, 2016 को जारी पूर्ण शराबबंदी वाली अधिसूचना को निरस्त कर किया तो राज्य के मद्यप्रेमियों एवं शराब विक्रेताओं में ख़ुशी की सूनामी आ गई थी. लेकिन नीतीश कुमार महात्मा गांधी जयंती यानी 2 अक्तूबर से एक नया क़ानून लेकर सामने आ गए और राज्य में पुनः शराबबंदी लागू कर दी.
नीतीश ने अपना चुनावी वादा निभाते हुए जब 1 अप्रैल, 2016 को राज्य में हल्की शराबबंदी लागू की थी तो कहीं ख़ुशी कहीं ग़म वाला माहौल बन गया था. इसके चार दिन बाद ही वह कठोर सज़ाओं वाला पूर्ण शराबबंदी वाला फ़रमान लेकर आ गए. पटना हाईकोर्ट ने इसके कई प्रावधानों पर ऐतराज जताया था जिनमें शराब मिलने पर पूरे परिवार को जेल भेजने जैसी सज़ाएं शामिल थीं. बेहद सख़्त माने जा रहे बिहार उत्पाद विधेयक (संशोधन) 2016 की धारा 19(4) में ज़हरीली शराब पीने से हुई मौत के मामले में फांसी की सज़ा तक का प्रावधान था.
बताते चलें कि पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद से ही तस्करों की चांदी हो गई थी. पटना में शराब की होम डिलिवरी हो रही थी तो मुंगेर के खेतों से शराब की बोतलें निकल रही थीं. नवादा में गैस सिलेंडर में भरकर शराब लाई-ले जाई जा रही थी. ख़ुद जदयू नेता इंद्रजीत सेन के नालंदा स्थित घर से भारी मात्रा में देसी शराब बरामद हुई थी! औरंगाबाद, गया, नालंदा, खगड़िया, बेतिया, गोपालगंज, सारण सहित 7 अन्य स्थानों पर 50 से ज्यादा लोगों के जहरीली शराब से मरने के समाचार भी आ चुके थे. उधर शराबबंदी लागू करने पर नीतीश कुमार ने अलोकप्रिय होने का जोखिम उठाते हुए भी 11 गांवों पर सामूहिक जुर्माना लगाने का फैसला किया था और 11 थाना अध्यक्षों को यह कहते हुए निलंबित कर दिया था उन्हें प्रमोशन नहीं मिलेगा.
शराब की लत इतनी बुरी शै है कि जब पहलेपहल शराबबंदी लागू हुई तो बेतिया के शमशुद्दीन पागलों की तरह घर में रखे साबुन खाने लगे. पूर्वी चंपारण जिले के कुंडवा चैनपुर थाने में तैनात दारोगा रघुनंदन बेसरा शरीर में शराब की कमी के चलते कोर्ट में गश खाकर गिर पड़े थे. अफ़वाह यहां तक उड़ गई थी कि जिसके घर में 5 किलो से ज़्यादा महुआ पाया गया, उसे पुलिस पकड़ ले जाएगी. ऋषि कपूर साहब ने ट्वीट की झड़ी लगाकर कहा था- ''नीतीश जी! जागो, आपको 3000 करोड़ के रुपए रेवन्यू का नुकसान होगा.”
शराबबंदी के विरोध में रेवेन्यू के नुकसान का तर्क नया नहीं था. गुजरात, नागालैंड और मिजोरम को छोड़ दिया जाए तो देश के कई राज्य अपने यहां पूर्ण अथवा आंशिक शराबबंदी लागू करके कई बार नुकसान उठा चुके हैं. ख़ुद बिहार में समाजवादी दिग्गज कर्पूरी ठाकुर ने 1977-78 के दौरान घाटा उठाकर शराबबंदी लागू करने की कोशिश की थी लेकिन पियक्कड़ों और शराब माफ़िया ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया था.
अवैध शराब की तस्करी एक अलग सरदर्द है. गुजरात, नागालैंड और मिजोरम में पूर्ण पाबंदी भले लागू है लेकिन गुजरात की सीमा पर शराब बनाने और पीने वालों की मौज है. मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में सीमावर्ती दमन की बिना ड्यूटी वाली अवैध शराब धड़ल्ले से बिकती है. मणिपुर में आंशिक शराबबंदी के बावजूद वहां स्थानीय दारू अशाबा और अतिम्बा खुले में मिल जाएगी. नागालैंड के दीमापुर में सैकड़ों अवैध बार खुले मिल जाएंगे. यहां पड़ोसी राज्य असम से शराब की बड़े पैमाने पर तस्करी होती है. कुल मिलाकर तस्वीर यही बनती है कि चाहे जितनी पाबंदी लगा दी जाए, ‘देवता’ अपने ‘सोमरस’ का इंतजाम कर ही लेते हैं. बिहार में पड़ोसी राज्यों झारखंड, यूपी और पश्चिम बंगाल के अलावा नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से शराब तस्करी हो रही है जिसे नीतीश कुमार नहीं रोक नहीं पाए.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश में पूर्ण शराबबंदी के पक्षधर थे. उनका कहना था कि शराब भ्रष्टाचार, अपराध और नैतिक पतन का मूल है. इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि गांधी के चेले ही रेवन्यू के चक्कर में पड़ गए. नीतीश कुमार ने बिहार में गांधी जी की इस सोच पर अमल करने की कोशिश की तो बाधाओं के पहाड़ ख़ड़े हो गए! लेकिन अब जबकि हाईकोर्ट के आदेश का तोड़ निकालकर गांधी जयंती के ही दिन उन्होंने फिर से शराबबंदी लागू कर दी है तो मानना पड़ेगा कि वह अपनी जिद पर कायम हैं. शराबख़ोरी से प्रभावित बिहार की महिलाएं पहले ही उन्हें इस पहल के लिए जी-भर कर आशीष दे रही हैं.
नीतीश कुमार का कहना है कि शराबबंदी को लेकर जो जनचेतना बिहार में आई है उससे पीछे क़दम हटाना जनता के साथ विश्वासघात होगा और ज़रूरत पड़ेगी तो लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी जाएगी. नए क़ानून के प्रावधान भी पहले जितने सख़्त नहीं हैं. नए क़ानून के मुताबिक अगर आप अपने घर या अन्य परिसर में नशे की अनुमति देते हैं अथवा वहां कोई नशे की हालत में पाया गया तो उसे 5-7 वर्ष की सज़ा और 1 से 10 लाख तक का जुर्माना हो सकता है. यह सज़ा आजीवन कारावास में भी बदली जा सकती है. शराब पीकर उपद्रव करने पर कम से कम 10 वर्ष की सज़ा रखी गई है.
किसी गांव या शहर विशेष में शराबबंदी से जुड़े किसी क़ानून का उल्लंघन होता देख कर डीएम सामूहिक जुर्माना लगा सकता है. प्रावधान यह भी है कि अगर कोई उत्पाद पदाधिकारी या पुलिस अधिकारी परेशान करने के इरादे से किसी के घर की तलाशी लेता है या उसे गिरफ्तार करता है तो उसे भी 3 वर्ष की जेल और एक लाख रुपए का जुर्माना भरना पड़ेगा. यह जनता में विश्वास पैदा करने वाला प्रावधान कहा जाना चाहिए.
नया क़ानून पहले जितना भले ही सख़्त न हो, डरावना तो है ही. पहले वाले क़ानून को हाईकोर्ट द्वारा रद्द कर देने का एक अर्थ यह भी लिया जा सकता है कि चुनौती देने पर नीतीश कुमार का नया क़ानून भी ज़्यादा दिन तक टिक नहीं सकेगा! क़ानूनी दांव-पेंच, राजनैतिक कुटिलताओं, व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, शराब माफ़िया और तस्करी के चक्रव्यूह में घिरी पूर्ण शराबबंदी को नीतीश कुमार मरने नहीं देना चाहते और निहित स्वार्थी तत्व इसे आसानी से जीने नहीं देंगे!
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