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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
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INDIA
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OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
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AIADMK+
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BJP+
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NTK
KARNATAKA (28)
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NDA
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INC
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29
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INDIA
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HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

गोरखपुर ट्रेजडी : ‘अगस्त’ को बदनाम ना करो!

अगस्त का महीना तो आजादी का महीना कहा जाता रहा है. इसी साल हम आजादी की 70वीं सालगिराह मना रहे हैं. लेकिन आजादी के 70 साल बाद अब अगस्त महीने के मायने बदल गए हैं.

अब तक तो हमने अगस्त क्रांति के बारे में सुना था जिसकी 75वीं सालगिरह 9 अगस्त यानि 36 मासूमों की मौत से एक दिन पहले पूरे देश ने धूम धाम से मनाई. 9 अगस्त 1942 वो तारीख है जब अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की आखिरी लड़ाई का शंखनाद हुआ. 9 अगस्त 1942 ही वो तारीख थी जब मुंबई से भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पास होने के बाद आजादी का आंदोलन पूरे देश में अलग-अलग जगह नेताओं की गिरफ्तारी के साथ शुरू हुआ.

अगस्त का महीना तो आजादी का महीना कहा जाता रहा है. इसी साल हम आजादी की 70वीं सालगिरह मना रहे हैं. लेकिन आजादी के 70 साल बाद अब अगस्त महीने के मायने बदल गए हैं, अब अगस्त महीना कितना खतरनाक हो चुका है इसका दिव्य ज्ञान दिया है यूपी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने. ये महीना इतना भयावह होता है कि हर साल इस महीने में औसतन 500-600 बच्चों की जान चली ही जाती है. लेकिन अगस्त महीना खत्म होने में अभी भी कई दिन बाकी है मतलब मंत्री जी के कथनानुसार अभी और बच्चे मरेंगे और सरकार आंकड़े गिनाती रहेगी.

आजाद भारत के 70 साल के इतिहास में मासूमों बच्चों की मौत पर शायद इतनी शर्मनाक और संवेदनहीन दलील इससे पहले कभी नहीं सुनी गई हो. बच्चों की मौत को 51 घंटे हो चुके थे, इसी बीच खबर आई कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक आपात बैठक बुलाई है जिसमें यूपी औऱ केंद्र सरकार के तमाम वरिष्ठ मंत्री शामिल हुए.

हादसा नहीं हत्या के 52 घंटे बाद एक हाइप्रोफाइल प्रेस कांफ्रेंस बुलाई गई जिसमें फिर वही शर्मनाक दलील. बड़ी ही बेशर्मी से सरकार ने कहा कि अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं जिसे साबित करने के लिए बकायदा आंकड़े पेश किए गए. यूपी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिहं ने कहा कि अगस्त 2014 में औसतन 19, अगस्त 2015 में 22 और अगस्त 2016 में 20 बच्चे मौत की मुंह में संमा गए.

जैसे मंत्री जी ये मान चुके थे कि मरना तो इनकी नियति है. अगर अगस्त महीनें में इनको मरना ही है तो फिर आपका क्या काम. आपको चुनकर यूपी की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया लेकिन आपकी बच्चों की मौत पर ये बेचारगी क्या उस जनादेश का अपमान नहीं? हैरानी की बात ये हे कि संसद में बतौर सांसद इंसेफेलाइटिस का मुद्दा जोर शोर से उठाने वाले सीएम योगी भी उसी पीसी में बेबस नजर आए. उन्होंने यहां तक कह दिया कि मैं तो दो-दो बार बीआरडी अस्पताल गया बार बार पूछा कोई दिक्कत तो नहीं लेकिन किसी ने मुझे ऑक्सीजन सप्लाई की कमी पर कुछ नहीं बताया. क्या सीएम योगी ये मानकर चल रहे थे कि अगर कोई गड़बड़झाला था तो गुनहगार अपना गुनाह खुद कबूल करेगा?

स्थानीय पत्रकार बता रहे हैं कि ऑक्सीजन सप्लाई के पीछे बड़ा आर्थिक घोटाला भी हो सकता है. 5 अगस्त को मिला पैसा आखिर 11 अगस्त तक क्यों रोक कर रखा गया जो बच्चों की मौत की एक बड़ी वजह बना. वैसे सीएम योगी की बेचारगी और अनभिज्ञ होने की इस दलील पर और संदेह तब होता है जब अस्पताल के एक मुलाजिम की 9 अगस्त की चिट्ठी को आप पढ़ते हैं जिसमें साफ साफ कहा गया है कि अगर बकाये पैसे का भुगतान नहीं किया गया तो ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हो सकती है जिसका मतलब ये हुआ कि इस नरसंहार की घंटी तो बहुत पहले ही बज चुकी थी. इन सबके बावजूद सरकार ये भी मानने तो तैयार नहीं कि ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होने से बच्चों की मौत हुई है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह, चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन और केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री ये साबित करने में लगे रहे कि सभी मौतों के अलग अलग कारण हैं और एक भी मौत ऑक्सीजन सप्लाई की कमी से नहीं हुई है. स्वास्थ्य मंत्री ने तो सभी मौत की वजह भी गिनवाई जिससे सभी बच्चों की मौत होने का दावा सरकार की तरफ से किया जा रहा है.

सरकार के मुताबिक ज्यादातर बच्चों की मौत प्रीमैच्योर डिलीवरी की वजह से अंडरवेट होने से हुई है. लेकिन इसी से जुड़े कुछ सवाल है जो सरकार के इस दावे की भी पोल खोलते हैं कि अगर ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होने से मौत हुई ही नहीं है और अगस्त महीने में बच्चों की मौत होना सामान्य घटना है तो फिर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को निलंबित क्यों किया गया? ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी के खिलाफ जांच मुख्य सचिव क्यों करेंगे? अगर सप्लाई रूकने से बच्चों की मौत का कोई लेना देना नहीं तो फिर दो दो जांच समिति का गठन क्यों? जाहिर है सरकार के दावों की कलई इन सवालों से खुलती नजर आ रही है.

लब्बोलुबाब ये है कि सबको पता था कि किसी भी वक्त अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई में दिक्कत आ सकती है जो बच्चों को मौत की नींद सुला सकती है फिर भी पूरा सिस्टम गहरी निद्रा में लीन रहा जो बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण बना. तो क्या बच्चों की मौत का इंतजार किया जा रहा था. इतनी चिट्ठियां सामने आने के बाद भी ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होने के खतरे को गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया. क्या ये लापरवाही आपराधिक नहीं है. और सबसे बड़ा औऱ अहम सवाल उस ऑक्सीजन गैस सप्लायर पर जो इतने सवालो में कहीं गुम हो गया है कि कोई इतना निर्मम कैसे हो सकता है कि भुगतान ना होने की वजह से ऑक्सीजन की सप्लाई रोककर 36 मासूमों को मौत की नींद सुला दे. इन बच्चों को अगस्त ने नहीं पूरे के पूरे सिस्टम ने मिल कर मारा है. ये हादसा नहीं हत्या है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार और आंकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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