BLOG: राफेल पर फेल या पास...
राफेल विमान खरीद को लेकर कांग्रेस सीधे प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर ले रही है. आरोप अनिल अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाने का लग रहा है. लेकिन घोटाले में तीन महत्वपूर्ण तथ्य , वित्तीय लेन देन, बैंक खाते और बिचौलिये के बारे में कोई तथ्य सामने नही रखे गए हैं. तो क्या वाकई ये घोटाला है या महज राजनीतिक मुद्दा है?

बात 8 अप्रैल 2015 की है, दिल्ली से पेरिस के लिए निकले, प्रधानमंत्री मोदी की पेरिस यात्रा को कवर करने जा रहे थे. पहली बार पेरिस जाना हो रहा था तो और ज़्यादा उत्साह भी था. पूरी यात्रा के दौरान भागदौड़ ज़्यादा थी, इस बीच पेरिस के मीडिया के मित्रों से जानकारी हुई कि राफेल लड़ाकू विमान को लेकर कोई सहमति बन सकती है. लेकिन किसी को नही पता था कि ये सहमति दो सरकारों के बीच (govt to govt) होने जा रही है, विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी कुछ ज़्यादा बताने की स्थिति में नहीं थे. प्रधानमंत्री मोदी के पेरिस दौरे के आखिरी दिन यानी 12 अप्रैल को तब के विदेश सचिव एस जयशंकर ने भागमभाग में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी दी, लेकिन मुझे याद है कि उनके पास उस समय राफेल डील पर बनी सहमति को लेकर ज़्यादा डिटेल्स नहीं थे. प्रधानमंत्री मोदी ने वायुसेना की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए एक अप्रत्याशित कदम उठाया और 36 राफेल विमानो को तुरंत खरीदने का समझौता किया. आपको बता दें कि वायुसेना की स्क्वाड्रन 42 से घट कर 33 रह गई थी, ऐसे हालात में मोदी ने ये फैसला तुरंत लिया. चूंकि राफेल विमान को लेकर फ्रांस और भारत के बीच बनी सहमति को लेकर किसी पत्रकार के पास बहुत कम डिटेल थे इसलिए खबर भी बहुत सुर्खियों में नहीं आ पाई.
प्रधानमंत्री भी 18 अप्रैल को फ्रांस से जर्मनी और फिर कनाडा की यात्रा कर वापस आ चुके थे. वे 19 अप्रैल 2015 को संसद भवन की लायब्रेरी बिल्डिंग में सांसदों की एक कार्यशाला को संबोधित करने के बाद वापस जा रहे थे. बिल्डिंग के अंदर पत्रकारों का जमावड़ा था, प्रधानमंत्री ने क्या बात कही ये जानने की उत्सुकता सभी में थी. उस समय मुझे याद है कि भूमि अधिगृहण कानून को लेकर राजनीति बेहद गर्म थी. इसलिए पत्रकारों का जमावड़ा और भी ज़्यादा था. प्रधानमंत्री आम तौर से जिस रास्ते से बाहर निकलते हैं वे उस रास्ते से बाहर नहीं निकले. सभी को चौंका देने की अद्भुत क्षमता का बार-बार प्रयोग करने में कुशल पीएम मोदी पत्रकार जहां इकट्ठा थे वहीं से बाहर निकले. सभी पत्रकार अब सवाल दाग़ने को तैयार हो गए. पीएम मोदी ने दिल्ली के 90 के दशक के पुराने परिचित पत्रकार, रामनारायण श्रीवास्तव को आवाज़ दी "कैसे है रामनारायण जी आपके बाल बहुत सफेद हो गए हैं" और उनके कंधे पर हाथ रख हाल-चाल जानने लगे. रामनारायण श्रीवास्तव के बगल में मैं खड़ा था, प्रधानमंत्री जी से नमस्कार हुई और तभी उन्होंने मुझसे पूछ लिया "विकास तुम तो पेरिस में थे", मैंने हां में जवाब दिया,
तभी प्रधानमंत्री ने कहा कि "आप लोग बहुत अन्याय करते हैं इतनी बड़ी राफेल की डील पर सहमति बनी है और आप लोगो ने ना छापा और ना दिखाया" मैंने कहा, सर राफेल पर अफसरों ने ब्रीफिंग में सिर्फ एक दो लाइन ही बताई, इससे ज़्यादा के डिटेल्स मिले ही नहीं, पीएम मुस्कुराए और चल दिये, कुछ और साथी पत्रकार उनसे सवाल पूछते रहे लेकिन अपनी अदा के मुताबिक बिना कुछ बोले आगे निकल गए.
समझ नही आया कि अगर राफेल डील में घपला होता तो क्या प्रधानमंत्री इसके ज्यादा प्रचार- प्रसार नहीं होने पर शिकायत करते. लेकिन 19 अप्रैल की घटना के हफ्ते भर के भीतर 36 राफेल डील के बहुत सारे डिटेल्स मीडिया में छपे, आखिर में सितम्बर 2016 में जाकर 36 राफेल को लेकर दिल्ली में समझौते पर हस्ताक्षर हुए.
अब राफेल विमान में कांग्रेस को घोटाला दिखाई दे रहा है. लेकिन घोटाले में तीन महत्वपूर्ण तथ्य, वित्तीय लेन देन, बैंक खाते और बिचौलिये के बारे में कोई तथ्य सामने नही रखे गए हैं. इसलिए घोटाले के आरोप पर सवाल उठना भी स्वाभाविक है. ये पहला मौका नहीं है जब मोदी को निशाने पर लिया गया है. लेकिन 2002 से लेकर 2014 तक लगातार 4 चुनावों में सीधे-सीधे, मोदी ने कांग्रेस को धूल चटाई. 2014 के बाद तो मोदी ने 22 से ज़्यादा बार कांग्रेस को चित किया हालांकि तीन बार मोदी को भी कांग्रेस ने पंजाब बिहार और कर्नाटक में पटखनी दी. लेकिन इस बार राफेल का सहारा लेकर कांग्रेस 2019 में मोदी को राजनीतिक रूप से हमेशा के लिए मार गिराना चाहती है.
ये सब हो रहा है तभी बीजेपी ने आरोप जड़ दिया है कि स्विस से पिलाटस विमान खरीद में घोटाले में पकड़े गए हथियार दलाल संजय भंडारी के रॉबर्ट वाड्रा से करीबी संबंध है और रॉबर्ट वाड्रा के लिए संजय भंडारी ने लंदन में 19 करोड़ का मकान भी खरीद कर दिया है ये मकान संजय भंडारी के जीजा चड्ढा ने खरीदा. इस मामले में सीबीआई जांच कर रही है. अब सवाल तो कांग्रेस के दामन में दाग को लकर भी उठने लगे हैं. बताया तो ये भी जा रहा है कि यूपीए सरकार के समय संजय भंडारी की कंपनी ओआईएस को राफेल विमानों की खरीद में शामिल करने का दवाब भी दसो कंपनी पर था, दसो ही राफेल विमान बनाती है.
दसो कंपनी ने अनिल अंबानी के अलावा 70 दूसरी कम्पनियो से भी करार किया है, 2022 के बाद ही इस करार पर आगे बढ़ा जाएगा, और दसो ही तय करेगा कि वो 70 कंपनियों में से किस से राफेल के लिए कौन सा पुर्जा बनवायेगा, हो सकता है कि जिस अनिल अंबानी को तीस हजार करोड़ का ठेका देने का आरोप कांग्रेस लगा रही है वो राफेल विमान के लिए टायर भर ही बनाये या महिंद्रा जिसका नाम तक लोग अभी इस डील में नहीं जानते वो राफेल के लिए विमान बनाये. लेकिन राजनीति ऐसे ही चलती है. जिसका दांव लगता है वो लगा लेता है लेकिन अंतिम दांव तो जनता ही चलती है जो फैसले में सामने नज़र आता है. .
चलिए,चलते- चलते राफेल की खूबियां बताते हैं और ये भी बताते हैं कि राफेल विमान की खरीद में कौन-कौन से विमान कंपनियो ने टक्कर दी थी.
भारतीय वायु सेना ने कई टेस्ट के बाद राफेल को चुना है. हालांकि राफेल विमान भारत सरकार के लिए एकमात्र विकल्प नहीं था. इस डील के लिए कई अंतरराष्ट्रीय विमान निर्माताओं ने भारतीय वायुसेना को विमान बेचने की पेशकश की थी. इनमें से छह बड़ी विमान कंपनियों को चुना गया. जिसमें लॉकहीड मार्टिन का एफ-16, बोइंग एफ/ए -18 S, यूरोफाइटर टाइफून, रूस का मिग-35, स्वीडन की साब की ग्रिपेन और राफेल शामिल थे. भारतीय वायुसेना ने विमानों के परीक्षण और उनकी कीमत के आधार पर राफेल और यूरोफाइटर को शॉर्टलिस्ट किया. यूरोफाइटर टायफून काफी महंगा है. इस कारण राफेल विमानों को खरीदने का फैसला किया गया है. सवाल ये भी है कि अब ये जो बड़ी-बड़ी कंपनी जिनको सौदा नहीं मिला वो क्या चुप बैठेगी या इस राजनीतिक उठापटक में अपने फायदे के लिए इस सौदे को रद्द कराने के लिए भी जोर लगाएंगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)




























