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BLOG: एनडीए सरकार के तीन साल, मोदी जी का जलवा तो बरकरार है लेकिन...

पीएम नरेंद्र मोदी को भारतीय राजनीति का शोमैन, सपनों का सौदागर या बैगपाइपर बाबा कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी! 26 मई 2017 के दिन मोदी जी को शपथ लिए और उनकी सरकार को केंद्र में कामकाज शुरू किए हुए तीन साल पूरे हो गए. सारे चुनावी वादे कटी पतंग हो गए हैं लेकिन मोदी जी का जलवा फीका पड़ने का नाम नहीं ले रहा.

मोदी जी का जादू कुछ ऐसा है कि देश में किसानों की आत्महत्याएँ बदस्तूर जारी हैं, फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं बढ़ा, लेकिन किसान ख़ुश बताए जाते हैं. नोटबंदी के चलते सैकड़ों लोगों की जान चली गई, एटीएमों में आज भी पर्याप्त पैसे नहीं, लाखों कामगार रास्ते पर आ गए, सरकारी भर्ती न के बराबर है, स्टार्ट-अप ठीक से स्टार्ट भी नहीं हो पाया, लेकिन बताया जाता है कि मोदी राज में बेरोज़गार बड़े ख़ुश हैं. सातवां वेतन आयोग एक छलावे से अधिक कुछ नहीं था लेकिन सरकारी कर्मचारी मौज-मजे में बताए जा रहे हैं. आए दिन ‘निर्भया’ कांड हो रहे हैं, महिला आरक्षण विधेयक ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है, इसके बावजूद महिलाएँ गोया रामराज्य में बताई जा रही हैं.

विश्वविद्यालयों में फीस बढ़ रही है, शोधार्थियों की संख्या घटाई जा रही है, सीटें और अनुदान कम हो गए, मुंह खोलने पर छात्रों और शिक्षकों पर लाठियाँ बरसाई जा रही हैं, दलित छात्र आत्महत्या कर रहे हैं, लेकिन कहा जाता है कि विद्यार्थी नालंदा-तक्षशिला का ज़माना जी रहे हैं. कश्मीर में अशांति, सीमा पार से आतंकवादी हमले, सैनिकों की शहादतें और आंतरिक सुरक्षा पर ख़तरा बढ़ा है लेकिन दावा किया जाता है कि हरसू अमन-चैन है!

‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस’

‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस’ के बीज मंत्र का असर साल-दर-साल बेअसर होता चला गया लेकिन बीजेपी ‘शाइनिंग इंडिया’ की तर्ज़ पर कामयाबी का जश्न ज़रूर मनाती है. एक साल पूरा होने पर मोदी जी ने मथुरा में और दो साल पूरे होने पर सहारनपुर में भव्य रैली की थी. तीन साल पूरे होने पर उन्होंने गुवाहाटी में रैली करके जश्न मनाया. देश के लोगों को लगभग 2 करोड़ चिट्ठियां भी लिखेंगे. ‘न्यू इंडिया’ अभियान के तहत 16 मई से ही उनके केंद्रीय मंत्री, सांसद, राज्यों के मंत्री, विधायक और पार्टी पदाधिकारी देश के अगड़े-पिछड़े इलाक़ों में घूम-घूम कर सरकार की उपलब्धियां और यूपीए की घोर विफलताएं गिनाते घूम रहे हैं.

दरअसल मोदी जी का जादू बरकरार रहने का राज यूपीए की विफल नीतियों, शिथिल अर्थव्यवस्था, निर्णय लेने में ढिलाई, तुष्टीकरण, पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के कठपुतली होने और यूपीए-2 के दौरान हुए घोटालों के ज़ोरदार प्रचार में ही छिपा है. इससे एनडीए को यूपीए, ख़ास तौर पर कांग्रेस के प्रति असंतोष और आक्रोश का माहौल बनाने में सफलता मिलती है. इसके साथ-साथ विपक्ष के बिखराव और मोदी सरकार को घेरने में उसकी नाकामयाबी जनता को ‘अच्छे दिनों’ के इंद्रजाल से बाहर नहीं निकलने देती.

मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर जो सर्वे सामने आ रहे हैं उनसे भी यही उभर कर आ रहा है कि जनता की नज़रों में सरकार ने उम्मीद के मुताबिक काम किया है. स्वयं ‘एबीपी न्यूज़-सीएसडीएस-लोकनीति’ का सर्वे कह रहा है कि अगर आज चुनाव हो जाएं तो एनडीए को लोकसभा की 543 में से 331 सीटें मिल जाएंगी! ‘नागरिक जुड़ाव मंच लोकल सर्किल्सक’ के सर्वे में शामिल देश के 40000 शहरी और ग्रामीण मतदाताओं में से 61% लोगों के मुताबिक सम्प्रदायिकता से जुड़े मामलों पर नियंत्रण करने में यह सरकार कामयाब रही है तथा 51% लोग मानते हैं कि नोटबंदी के जरिए मोदी जी काला धन पर शिकंजा कसने में कामयाब रहे हैं और भ्रष्टाचार में कमी आई है.

हालांकि ज़मीनी हकीकत यह है कि अब तक न तो कोई दाग़ी अथवा दंगाई नेता जेल गया, न ही गंगा मैया साफ हुई, धारा 370 और कॉमन सिविल कोड बीते ज़माने की बात हो गई, एक भी कश्मीरी पण्डित इस दौरान घाटी में नहीं लौट सका, नक्सलवादियों और आतंकवादियों की कमर नहीं टूटी, 15 लाख रुपए का चुनावी वादा महज जुमला बन कर रह गया, रसोई गैस की सब्सिडी बिना बताए बंद हो रही है, भारतीय रेल लूट का नया औजार बन गई है, रोज़मर्रा के लेन-देन पर बैंक अनाप-शनाप शुल्क वसूल रहे हैं, पड़ोसी देशों से रिश्ते और ख़राब हो गए, गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी उफान पर है, दलितों के खिलाफ़ अत्याचारों का अंत नहीं है, लोकपाल का कोई नामलेवा नहीं है, सब खा भी रहे हैं और खिला भी रहे हैं. 2014 की चुनावी रैलियों में यह भी तो नहीं कहा गया था कि सत्ता में आने के बाद चुनी हुई सरकारों के खिलाफ़ साजिशें रची जाएंगी और तिकड़मों से राज्य सरकारें बनाकर लोकतंत्र का गला घोंटा जाएगा! सामाजिक मोर्चे पर जातीय टकराव की चिंगारियां सुलग रही हैं.

मोदी की कामयाबी

लेकिन आर्थिक मोर्चे पर तीसरे साल मोदी सरकार की नीतियों का अर्थव्यवस्था की सेहत पर सकारात्मक असर नजर आया. यूपीए-2 में जहां होम लोन 11-12% पर पहुंच गया था वह अब 8-9% पर आ गया है और गरीबों के लिए तो यह 4% ही है. निर्यात को छोड़ दें तो उपभोक्ता महंगाई, औद्योगिक उत्पादन, होम लोन ब्याज दर, जीडीपी ग्रोथ, विदेशी मुद्रा भंडार, विदेशी निवेश, राजकोषीय घाटा जैसे पैमानों पर 31 मार्च 2017 को एनडीए ने यूपीए-2 सरकार के मुकाबले भारी प्रगति की है. खुदरा महंगाई का तो आलम यह है कि वह 31 मार्च 2014 के 9.46% से घटकर अप्रैल 2017 में महज 2.99% रह गई है. हालांकि आम जनता को आंकड़ों की बाज़ीगरी ज़्यादा नहीं सुहाती और आटा-दाल की कीमत वह अपनी रसोई के जरिए ही समझा करती है.

सरकार की जन-मन को स्पर्श करने वाली उज्जवला योजना, मुद्रा लोन, जन-धन योजना, फ़सल बीमा योजना, स्वच्छ भारत अभियान, अटल पेंशन योजना तथा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान ने निश्चित ही परिवर्त्तन का एक नया दौर आरंभ किया है, जिसमें धीरे-धीरे सफलता मिल रही है. ताज़ा सर्वेक्षणों में जनता के अधिक असंतुष्ट न दिखने की वजह भी यही लग रही है. परंतु ज़रूरी यह है कि अब मोदी जी के लिए शेष 2 साल का समय चुनावी वादे पूरे करने का कालखंड बने. अर्थव्यवस्था, रोज़गार, सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क-बिजली-पानी जैसे यथार्थवादी मुद्दों की जगह हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, धर्मांतरण, गाय, वंदे मातरम, राम मंदिर, लव जिहाद, घर वापसी और जवानों की शहादत जैसे भावनात्मक मुद्दे उभार कर जनता को अधिक दिनों तक बरगलाया नहीं जा सकता. वैसे भी भारत में सुहाने सर्वे बदलते देर नहीं लगती, क्योंकि ये पब्लिक है, सब जानती है!

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नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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