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क्या राहुल गांधी ने भारत यात्रा के दौरान जो कुछ कमाया, वो विदेश में माइक पर बयान देकर गंवाया?

राहुल गांधी के ब्रिटेन दौरे के वक्त उनकी तरफ से संसद में उनके बोलने के दौरान माइक बंद करने वाले दिए बयान पर राजनीतिक तूफान मचा हुआ है. एक तरफ जहां संसद में इस पर भारी गतिरोध देखने को मिल रहा है तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी से उनके इस बयान पर माफी की मांग कर रही है. राहुल गांधी ने ब्रिटेन दौरे के वक्त कम से कम 4 जगहों पर भाषण दिए. उसे लेकर बीजेपी की तरफ से ये कहा जा रहा है कि राहुल गांधी ने विदेश में ऐसा क्यों कहा. पहली बात तो ये कि आजकल देश में कोई बयान दे या फिर विदेश में, उसका इस इंटरनेट के जमाने में बहुत ज्यादा अंतर नहीं रहता है. इंटरनेट के जमाने में आप कहीं कुछ भी बोले तो वह पूरी दुनिया में फैल जाता है.

 इसके बावजूद उन्होंने दो-तीन बातें ऐसी कहीं, जो परेशान करने वाली हैं. उनके सामने कोई सिख सज्जन बैठे थे, उनकी ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में सिख हो, चाहे मुस्लिम या ईसाई हों वो दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर रह गए हैं. क्योंकि मोदी सरकार इन सबको दोयम दर्जे का नागरिक मानती है. राहुल गांधी का ये बयान काफी परेशान करने वाला है. इस तरह के वक्तव्य‍ का लाभ खालिस्तानी भी उठाएंगे, इस्लाीमिक व अन्य. तत्व भी उठाएंगे, इस पर राहुल को पुनर्विचार करना चाहिए.

दूसरी बात, उन्होंने भारत के लाकतंत्र की खामियों पर कई बातें की. उनको अपनी बातें कहने का अधिकार है. लेकिन उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र को कुचला ही नहीं जा रहा है बल्कि खत्म हो चुका है. यानी भारत में लोकतंत्र रहा ही नहीं.  उन्होंने ये भी कहा कि लोकतंत्र के पहरेदार कहे जाने वाले अमेरिका और यूरोप बेपरवाह हैं. उन्होंने ये तो नहीं कहा कि भारत में लोकतंत्र को बहाल करने के लिए इन हस्तक्षेप कहना चाहिए. लेकिन इसका मतलब ये  कि वे ये चाहते हैं कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो रहा है और यूरोपीय देश हस्तक्षेप करें. इसी को लेकर भाजपा ने मुद्दा बना रखा है और राहुल गांधी घेरे में हैं. इसलिए राहुल ने जो कुछ भी कहा है उनमें ये दो बातें सबसे ज्यादा परेशान करने वाली है.

विपक्षी नेता के बयान पर जो हंगामा हो रहा है वह राजनीतिक हंगामा है. अडानी मामले में विपक्ष द्वारा उठाया जा रहा है. सत्ता पक्ष द्वारा राहुल गांधी के विदेश में दिए गए भाषणों को तूल दिया जा रहा है. अडानी मामले में सरकार की सहमति के बिना सुपीम कोर्ट ने छह लोगों की समिति गठित कर दी है. यह समिति स्वत: संज्ञान लेकर गठित की गई है. लेकिन कांग्रेस इसपर जोर दे रही है कि संसदीय समिति गठित की जाए. तो इसका मतलब यह कि कांग्रेस इस मामले को आगामी चुनाव तक जीवित रखना चाहती है. ठीक उसी तरह जिस तरह पिछले चुनाव के समय तक राफेल सौदा मामले को जिंदा रखा था.

राज्यसभा के सभापति जगदीपF धनखड़ को बोलना चाहिए या नहीं यह कोई बड़ा सवाल नहीं है. उन्होंने बोल दिया तो बोल दिया. सवाल यह है कि क्या‍ कोई नेता बयान दे तो क्या देश का अपमान होता है. ऐसे बयान दिए जाएं जो तथ्यों मेल नहीं खाते तो यह चिंता  की बात है और परेशान करनेवाली बात भी है. हमारे नेताओं को संभलकर बोलना चाहिए. ऐसा कुछ नहीं कहना चाहिए जिसका फायदा भारत विरोधी शक्तियां या असामाजिक तत्व उठाएं.

कहीं न कहीं दोनों ही पक्ष आगामी आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए रणनीति अपना रहे हैं. संसद को चलने नहीं दिया जा रहा है. जब वित्त विधेयक को  रखा जा रहा है तो ऐसे में  इतना तू-तू- मैं-मैं होना या संसद को नहीं चलने देना उचित नहीं कहा जा सकता. बात सिर्फ वित्त विधेयक की नहीं है. सिर्फ बजट ही  पारित नहीं होना है बल्कि संसद में 35-36 विधेयक अटके पड़े हैं जिनपर बात आगे नहीं बढ़ रही है. जिससे देश का नुकसान हो रहा हैं!

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल राजीव सचान से बातचीत पर आधारित है.]

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