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UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
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AIADMK+
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BJP+
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NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
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MADHYA PRADESH (29)
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BJP
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INDIA
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RAJASTHAN (25)
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BJP
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DELHI (07)
07
NDA
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INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
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(Source: ECI / CVoter)
BLOG: जम्मू कश्मीर में सरकार का फैसला तिहरी रणनीति का नतीजा, आगे है मुश्किल की घड़ी
जम्मू कश्मीर से बीजेपी सरकार ने आर्टिकल 370 हटा दिया है. अब जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केन्द्र शासित प्रदेश होंगे. एबीपी न्यूज़ के ब्लॉग में जानें अब यहां से कैसे जम्मू कश्मीर की राजनीति आगे बढ़ेगी और चुनाव कब हो सकते हैं.
कश्मीर में केंद्र सरकार ने अपना ऐतिहासिक हस्तक्षेप उस दौरान किया है जब वहां की पारम्परिक राजनीतिक शक्तियों की साख पूरी तरह से गिर चुकी हैं. पीपुल्स डैमॉक्रैटिक पार्टी (पीडीपी) भारतीय जनता पार्टी के साथ गठजोड़ सरकार चलाने से हुए राजनीतिक नुकसान से नहीं उबर पाई है. लोकसभा चुनाव में महबूबा मुफ़्ती समेत उसके सभी उम्मीदवार उस दक्षिण कश्मीर में चुनाव हार गए थे जो अभी कुछ दिन पहले उनका गढ़ हुआ करता था. नैशनल कांफ़्रेंस की हालत यह है कि चुनाव में कुछ सकारात्मक परिणाम मिलने के बावजूद उसकी सांगठनिक हालत ख़स्ता है. अब्दुल्ला परिवार के नेतृत्व की चमक अब पहले जैसी नहीं रही. फ़ारूक़ अब्दुल्ला भ्रष्टाचार के मामलों में बुरी तरह से फंसे हुए हैं और उमर अब्दुल्ला ने अभी पंद्रह दिल पहले ही कार्यकर्ताओं के बीच जाना शुरू किया था. कांग्रेस का संगठन घाटी में पहले ही ठंडा पड़ा था और अब तो उसके आलाकमान की निष्क्रियता ने उसे और निराश कर दिया है.
दरअसल, केन्द्र ने पहले ही इस स्थिति को भांप लिया था. कश्मीर के जानकार मानते हैं कि उसने एक तिहरी रणनीति बनाई. एक तरफ़ तो उसने बीजेपी की घाटी में उपस्थिति बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर सदस्यता भर्ती अभियान चलाना शुरू किया. अगर बीजेपी के दावों पर भरोसा किया जाए तो उसने पिछले दो महीनों में कोई 85 हजार सदस्य केवल घाटी से ही भर्ती किए हैं. हो सकता है कि यह आंकड़ा कुछ बढ़ा-चढ़ा हो, लेकिन फिर भी इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी मुस्लिम बहुल घाटी में अपने कदम मज़बूत करने में लगी है ताकि अगले विधानसभा (केंद्र शासित) चुनाव में कम से कम आठ-दस सीटें जीत सके.
बीजेपी की गतिविधियों को ध्यान से देखने वाले कहते हैं कि घाटी के कुछ इलाक़े ऐसे हैं जहां बीजेपी की संभावनाएं परवान चढ़ सकती हैं. जैसे बडगाम ज़िला जो शिया बहुल आबादी वाला है. हम जानते हैं कि शिया मुसलमान सत्तर के दशक से ही पहले जनसंघ और अब बीजेपी के प्रति हमदर्दी रखते हैं. ध्यान रहे कि अनंतनाग निर्वाचन क्षेत्र के त्राल विधानसभा क्षेत्र (जो सर्वाधिक आतंकवादपीड़ित है) में उसे नैशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस से ज़्यादा वोट मिले थे. बीजेपी तो यह भी मानती है कि अगर घाटी से बाहर रह रहे कश्मीरी पंडितों को वोट डालने के लिए एम फ़ॉर्म भरने के जटिल झंझट से न गुज़रना पड़ता तो फ़ारूक़ अब्दुल्ला तक को चुनाव में हराया जा सकता था. इसलिए बीजेपी पंडित मतदाताओं को इस बंधन से निकालना चाहती है ताकि वे खुल कर कमल के सामने का बटन दबा सकें.
दूसरी तरफ़ केंद्र ने पहले से ही घाटी में नयी राजनीतिक शक्तियों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया था. आईएएस में आ कर नाम कमाने वाले शाह फैज़ल के नेतृत्व में एक पार्टी जन्म ले चुकी है. विधानसभा में बीजेपी विधायकों के हाथों जिन इंजीनियर रशीद का मुंह काला किया गया था, उनकी पार्टी भी अपना काम कर रही है. उसने फ़ैज़ल की पार्टी के साथ मिल कर गठजोड़ बना लिया है. रशीद स्थानीय अख़बारों में पहले से मोदी समर्थक लेख लिख कर घाटी के बारे में कोई असाधारण कदम उठाने की अपीलें कर रहे थे. इस दुतरफ़ा रणनीति का मतलब यह निकलता है कि निकट भविष्य में जब नेतागण रिहा किये जाएंगे तो घाटी में होने वाली राजनीतिक गोलबंदी एकतरफ़ा भारत-विरोधी नहीं होगी.
तीसरे, बीजेपी विधानसभा से घाटी का प्रभुत्व भी घटाना चाहती है. विधानसभा में कुल 87 सीटें हैं जिनमें 46 घाटी के, 37 जम्मू के और 4 लद्दाख के हिस्से में आती हैं. ज़ाहिर है कि जो घाटी में जीतता है वह कश्मीर पर हुकूमत करता है. ऐसा लगता है कि इस समीकरण को बदलने के लिए सरकार कुछ विधियां अपना सकती है. विश्लेषकों की मान्यता है कि उस समय तक विधानसभा चुनाव टाले जाएंगे जब तक सीटों का यह समीकरण भाजपा के अनुकूल नहीं हो जाता.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर को हालात ठीक होते ही फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिये जाएगा. सरकार का यह इरादा अच्छा है. पर सवाल यह है कि हालात कब ठीक होंगे? ऐसी स्थिति बनना आसान नहीं होगी. इसके लिए पाकिस्तान के हाथ को प्रभावहीन करना होगा. उसके लिए संसद में बहुमत के सहारे बनाया गया कानून काम नहीं आएगा. उसके लिए प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति करनी होगी. धारा 370 हटाना जितना आसान था, उतना ही कठिन कश्मीर के इर्दगिर्द होने वाली अंतर्राष्ट्रीय राजनीति होगी.
लेखक विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सी.एस.डी.एस.) में भारतीय भाषा कार्यक्रम के निदेशक और प्रो़फेसर हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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