एक्सप्लोरर

BJP का गठबंधन मजबूरी वाला नहीं, अभी नरेंद्र मोदी को एडवांटेज, विपक्ष को एकजुटता बनाए रखने की चुनौती

विपक्षी दलों की बेंगलुरु में बैठक हुई. इसका सियासी संदेश तो ये है कि एक पक्ष तैयार हो रहा है जो असलियत में विपक्ष बनेगा और 2024 में नरेंद्र मोदी के सामने चुनौती पेश करेगा. लेकिन आज की स्थिति में एडवांटेज नरेंद्र मोदी के पास है. ये इसलिए है कि भारतीय राजनीति का इतिहास गवाह है कि जब तक आप एक कंसोलिडेटेड स्ट्रक्चर्ड विपक्ष की तस्वीर देश के सामने नहीं रखते हैं, तब तक देश के लोग उसको विकल्प नहीं मानते हैं.

नेता का होना या न होना जरूरी नहीं है. कई बार नेता या प्रधानमंत्री बाद में चुने गए हैं. लेकिन विपक्ष को समझने के लिए जो महत्वपूर्ण बात है, उनको देश के सामने राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही ताकतवर बीजेपी के खिलाफ एक तस्वीर पेश करनी पड़ेगी कि वे सभी एक साथ हैं. अपने छोटे-मोटे मनमुटाव, झगड़े और सियासी मुद्दों को छोड़कर हम देश को एक विकल्प देने के लिए तैयार हैं.

एनडीए की बैठक को लेकर कहें तो ये तो अपनी ताकत का मुज़ाहिरा करना होता है. हर राजनीतिक दल करते हैं. गठबंधन का मतलब समझने की जरूरत है. 1991 के नरसिम्हा राव सरकार के बाद से लगातार गठबंधन या कोअलिशन सरकार का दौर चला. इसके तहत अटल बिहारी वाजपेयी भी साढ़े छह साल प्रधानमंत्री रहे. उन्होंने वाकई एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया. फिर उसके बाद मुश्किल से 160 सीट हासिल कर कांग्रेस ने गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया. यहां पर कोअलिशन की वो स्थिति नहीं है क्योंकि यहां बीजेपी खुद से बहुमत में है.

बीजेपी पार्टियों को साथ लेकर चल रही है. अब इसमें पार्टियों की कितनी भूमिका है, उनको कितनी अहमियत दी जा रही है, ये बीजेपी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है. बीजेपी का कोअलिशन कोई मजबूरी का कोअलिशन नहीं है. मजबूरी वाले गठबंधन में जो उसमें शामिल होते हैं, उनकी सुनी भी बहुत जाती है. यही बहुत बड़ा फर्क है. बीजेपी की स्थिति बिल्कुल अलग है, बीजेपी डॉमिनेंट पार्टनर है. बीजेपी शीर्ष पर है और बाकी सब उसके नीचे हैं. 

फिर भी बीजेपी अच्छा कर रही है कि वो दिखाना चाहती है कि हम सब साथ हैं. हमारे पास भी एक बहुत बड़ा कोअलिशन है. ऐसा न समझा जाए कि बीजेपी सिर्फ अकेले है. कड़वी सच्चाई ये है कि बीजेपी को कोअलिशन की जरूरत नहीं है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर बार-बार ये कह रहे हैं कि विपक्ष गठबंधन के नाम पर भ्रष्टाचारी इकट्ठा हो रहे हैं, तो अजित पवार के बाद इस तरह के बयान का कोई ज्यादा मायने नहीं रह जाता है. प्रधानमंत्री के स्तर से ये बयान जरूर आ रहा है, लेकिन सवाल है कि आपके साथ भी कौन-कौन जमा हो रहे हैं, ये भी देखना होगा. आपके यहां भी तो ऐसे लोग इकट्ठा हो रहे हैं न. आपकी भी वहीं स्थिति है, विपक्ष में भी यही स्थिति है तो ये थोड़े कहेंगे कि विपक्ष में कितने भ्रष्टाचारी हैं.

आइडियोलॉजिकल मैटर को पीछे रखकर ही गठबंधन बनाना पड़ता है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो उन्होंने गठबंधन सरकार के लिए बीजेपी के जो प्रमुख मुद्दे थे, उनको पीछे रखा. आज जब बीजेपी पूर्ण बहुमत से है तो उन मुद्दों पर पार्टी आगे बढ़ रही है.

अगर आपको विपक्षी एकता की गंभीरता दिखानी है तो कुछ मुद्दे पीछे करके रखने ही पड़ेंगे. अब महाराष्ट्र में जो भी प्रयोग हो रहा है, उस प्रयोग से बीजेपी ने एक बात तो साबित कर दी कि सरकार तोड़ना, अलग-अलग पार्टियों से लोगों को अपने पास लाना...ये सब चीजें उनके सिस्टम में भी है, जो कभी कांग्रेस के सिस्टम में रही है. काफी सावधानी से ये चयन करना होता है कि आप किसको...कैसे और कहां लेकर जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि जनता आपको देख नहीं रही है, समझ नहीं रही है.

विपक्ष को अपने किले को भी संभाल कर रखना पड़ेगा. दूसरा भ्रष्टाचारियों के जमावड़े से जुड़ा विमर्श न्यूट्रलाइज हो जाता है, जब दोनों ही तरफ ऐसा जोड़-तोड़ हो रहा हो. ये विपक्ष को भी देखना पड़ेगा कि उसके लोग न टूटें. बीजेपी सरकार गिराने, तोड़ने और बनाने में माहिर हो चुकी है. पहले भी ऐसा होता रहा है. कोई नई बात नहीं हो रही है. जो कांग्रेस के युग में होता था, वो अब भी हो रहा है. विपक्ष की एकता की यही चुनौती है कि आप सबको रोक कर रखिए. हर मुद्दे, हर बात को उठाकर ये सोचेंगे कि सब लोग साथ में रहेंगे, ऐसा संभव नहीं है.

बीजेपी के नेता जो ये तंज कस रहे हैं कि विपक्ष में दूल्हा कौन होगा, इसका कोई ज्यादा मायने नहीं है. ये राजनीतिक बयानबाजी है, इससे राहुल गांधी पर बीजेपी निशाना साधना चाहती है. इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. बीजेपी ने ऐसी बहुत सरकारों को समर्थन दिया जिसका दूल्हा कौन होगा, बीजेपी को मालूम नहीं था. बीजेपी को अपना इतिहास भी पलट कर देखना चाहिए.

अटल बिहारी वाजपेयी के सामने सोनिया गांधी की कोई हैसियत नहीं थी, लेकिन 2004 में सोनिया गांधी ने आगे आकर बीजेपी को हरा दिया. उस वक्त तो नहीं पता था कि दूल्हा कौन है. अंत में प्रधानमंत्री कौन बने, तो मनमोहन सिंह और वे 10 साल प्रधानमंत्री रहे. ये सब सिर्फ कहने की बातें हैं.

वोट करते वक्त लोगों के जेहन में ये बात जरूर होता है कि उनका प्रधानमंत्री कौन होगा. लेकिन पर्सनैलिटी पॉलिटिक्स से ऊपर एक और चीज होती है. वीपी सिंह और राजीव गांधी की कहानी याद होगी. उस वक्त किस स्थिति में राजीव गांधी थे. 1989 में वे 400 प्लस सीटों वाला नेता थे, दूसरी तरफ वीपी सिंह थे. लेकिन वीपी सिंह ने तो सरकार गिरा दी थी. यहां चेहरे से कौन सा फर्क पड़ा. इतिहास के पन्नों को भी पलट कर देखना चाहिए. उसी तरह से यूनाइटेड फ्रंट में दो प्रधानमंत्री बने. दोनों ही चुनाव के बाद चेहरे बने.

इन सब बातों से ऊपर सबसे महत्वपूर्ण ये होता है कि अगर देश का एक बड़ा हिस्सा परिवर्तन का मूड बना ले तो हमारे-आपके कई आकलन के लिए जगह नहीं रह जाती है. ये सच्चाई है कि कोअलिशन की सरकार अगर संभालकर नहीं चलाई जाएगी, तो वो चल ही नहीं सकती. इसलिए मैं अटल बिहारी वाजपेयी और सोनिया गांधी की बहुत तारीफ करता हूं. अटल जी ने तो तीन-तीन बार में खींच-खींचकर साढ़े छह साल सरकार चला गए.  वे बहुत बड़े नेता थे, सही मायने में स्टेट्समैन थे. सोनिया गांधी को देखिए, कांग्रेस को दोनों ही बार बहुमत नहीं मिला, फिर भी यूपीए की सरकार 10 साल चलाई. ये आप चीजें कैसे मैनेज करते हैं, उस पर निर्भर करता है.

गठबंधन सरकार पॉलिटिकल मैनेजमेंट पर निर्भर करता है. देश का इतिहास गवाह है कि राज्यों और केंद्र दोनों में कोई चलाना चाहे, तो गठबंधन सरकार चला सकता है. अब अगर किसी को नहीं चलाना है, तो कोई भी मुद्दा बनाकर तोड़ी जा सकती है. जैसे जनता पार्टी की सरकार ड्यूल मेंबरशिप के नाम पर टूटी थी, जबकि सबको पता है कि संघ में ऐसी कोई व्यवस्था होती नहीं है.

मेरे हिसाब से अभी यानी आज की तारीख में एडवांटेज नरेंद्र मोदी को है, लेकिन आने वाले वक्त में क्या होगा, ये इस पर निर्भर करेगा कि विपक्ष यहां से क्या कर पाता है. अपने ही झगड़ों को सुलटाने में लग जाएगा, तो कुछ नहीं कर पाएगा और एकजुट होने में कामयाब हो गया तो चुनौती भी पेश कर सकता है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

PM Modi Nomination: 12 राज्यों के सीएम, सहयोगी दलों के 6 चीफ... पीएम मोदी के नामांकन में आने वाले VVIP की ये है लिस्ट
12 राज्यों के सीएम, सहयोगी दलों के 6 चीफ... पीएम मोदी के नामांकन में आने वाले VVIP की ये है लिस्ट
सुशील कुमार मोदी के निधन पर भावुक हुए लालू यादव, कहा- '51-52 वर्षों से हमारे मित्र रहे...'
सुशील कुमार मोदी के निधन पर भावुक हुए लालू यादव, कहा- '51-52 वर्षों से हमारे मित्र रहे...'
सलमान खान को माफ कर सकता है बिश्ननोई समाज, राष्ट्रीय अध्यक्ष ने एक्टर के आगे रखी ये शर्त
सलमान खान को माफ कर सकता है बिश्ननोई समाज, राष्ट्रीय अध्यक्ष ने एक्टर के आगे रखी ये शर्त
Lok Sabha Elections 2024: बंगाल में सबसे ज्यादा तो जम्मू-कश्मीर में सबसे कम वोटिंग, जानें चौथे चरण में कितना हुआ मतदान
बंगाल में सबसे ज्यादा तो जम्मू-कश्मीर में सबसे कम वोटिंग, जानें चौथे चरण में कितना हुआ मतदान
for smartphones
and tablets

वीडियोज

PM Modi का सपना साकार करेंगे बनारस के लोग? देखिए ये ग्राउंड रिपोर्ट | Loksabha Election 2024Mumbai Breaking News: आंधी ने मचाया कोहराम, होर्डिंग गिरने से 8 की मौत और 100 से ज्यादा घायलLoksabha Election 2024: देश में चौथे चरण की 96 सीटों पर आज 63 फीसदी मतदान | BJP | Congress | TmcSushil Modi Pass Away in Delhi AIIMS : बिहार के पूर्व डिप्टी CM सुशील मोदी का निधन

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
PM Modi Nomination: 12 राज्यों के सीएम, सहयोगी दलों के 6 चीफ... पीएम मोदी के नामांकन में आने वाले VVIP की ये है लिस्ट
12 राज्यों के सीएम, सहयोगी दलों के 6 चीफ... पीएम मोदी के नामांकन में आने वाले VVIP की ये है लिस्ट
सुशील कुमार मोदी के निधन पर भावुक हुए लालू यादव, कहा- '51-52 वर्षों से हमारे मित्र रहे...'
सुशील कुमार मोदी के निधन पर भावुक हुए लालू यादव, कहा- '51-52 वर्षों से हमारे मित्र रहे...'
सलमान खान को माफ कर सकता है बिश्ननोई समाज, राष्ट्रीय अध्यक्ष ने एक्टर के आगे रखी ये शर्त
सलमान खान को माफ कर सकता है बिश्ननोई समाज, राष्ट्रीय अध्यक्ष ने एक्टर के आगे रखी ये शर्त
Lok Sabha Elections 2024: बंगाल में सबसे ज्यादा तो जम्मू-कश्मीर में सबसे कम वोटिंग, जानें चौथे चरण में कितना हुआ मतदान
बंगाल में सबसे ज्यादा तो जम्मू-कश्मीर में सबसे कम वोटिंग, जानें चौथे चरण में कितना हुआ मतदान
TVS iQube: टीवीएस ने किया iQube लाइन-अप को अपडेट, दो नए वेरिएंट्स हुए शामिल
टीवीएस ने किया iQube लाइन-अप को अपडेट, दो नए वेरिएंट्स हुए शामिल
अखिलेश यादव पर जूते-चप्पल नहीं फूल मालाएं बरसा रहे हैं वीडियो में लोग
अखिलेश यादव पर जूते-चप्पल नहीं फूल मालाएं बरसा रहे हैं वीडियो में लोग
Chabahar Port: भारत और ईरान के इस फैसले से पाकिस्तान-चीन को लग जाएगी मिर्ची, जानें क्या है मामला
भारत और ईरान के इस फैसले से पाकिस्तान-चीन को लग जाएगी मिर्ची, जानें क्या है मामला
Kidney Transplant: क्या ट्रांसप्लांट के वक्त पूरी तरह हटा देते हैं खराब किडनी, ट्रीटमेंट में कितने रुपये होते हैं खर्च? जानें पूरा प्रोसेस
क्या ट्रांसप्लांट के वक्त पूरी तरह हटा देते हैं खराब किडनी, ट्रीटमेंट में कितने रुपये होते हैं खर्च? जानें पूरा प्रोसेस
Embed widget