नीतीश को 'आया राम, गया राम' बताकर बीजेपी ने बिहार की जनता को दे दिया बड़ा संदेश?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह बीते कुछ दिनों से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जिस अंदाज में हमलावर हैं उससे संकेत मिलता है कि अगले लोकसभा चुनाव में बिहार का चुनावी-संग्राम न सिर्फ दिलचस्प बनने वाला है बल्कि कुछ अलग ही नजारा भी दिखा सकता है. इसलिए कि ये लड़ाई पांच दलों वाले महागठबंधन बनाम बीजेपी के बीच होने वाली है. हालांकि बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं जिसमें से बीजेपी के पास फिलहाल 17 सीटें हैं लेकिन बीजेपी का लक्ष्य इसे दोगुना करने का है. लिहाज़ा, बीजेपी का हर बड़ा नेता बिहार के 'सुशासन बाबू' कहलाने वाले नीतीश की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहता.
शनिवार को पश्चिमी चंपारण की जन सभा में अमित शाह ने जिन तीखे तेवरों से नीतीश पर हमला बोला है उससे साफ है कि बीजेपी बिहार की जनता को लालू प्रसाद यादव के 'जंगल राज' की याद दिलाते हुए अपनी सियासी जमीन को बेहद रणनीतिक तरीके से मजबूत करने में जुट गई है. गौरतलब है कि नीतीश अपने उत्तराधिकारी के रूप में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का संकेत दे चुके हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि संयुक्त विपक्ष उन्हें पीएम पद का उम्मीदवार बना सकता है. शायद इसीलिए अमित शाह ने एक ही तीर से नीतीश पर दो निशाने साधे हैं. पहला तो वहां की जनता को आगाह किया कि अगर लालू यादव के बेटे सीएम बन गए तो बिहार में पूरी तरह से जंगल राज आ जायेगा. दूसरा, नीतीश के पीएम बनने के सपने को चकनाचूर करते हुए कहा कि 2024 में पीएम पद की कोई वेकैंसी खाली नहीं हैं और अब अगर वे एनडीए में आने को सोचें तब भी बीजेपी के दरवाजे उनके लिए बंद हो चुके हैं.
दरसल, अगले साल होने वाला लोकसभा चुनाव विपक्षी दलों को बदलाव का एक बड़ा अवसर नजर आ रहा है लेकिन बीजेपी ने इसे बड़ी चुनौती मानते हुए जमीनी स्तर पर अपने काडर को बहुत पहले से ही काम पर लगा दिया है क्योंकि उसका लक्ष्य मोदी सरकार की हैट्रिक लगाने का है. पिछले चुनाव के वक़्त लोकसभा की करीब ऐसी 160 सीटें थीं जहां बीजेपी दूसरे या तीसरे नंबर पर रही थी लेकिन पार्टी ने अब इस आंकड़े को बढ़ाकर तकरीबन दो सौ के आसपास ला दिया है. ऐसी सारी सीटों पर पार्टी कार्यकर्ता और संघ के स्वयंसेवक बूथ लेवल पर ये पता लगाने के साथ ही इस काम में भी जुट गए हैं कि पिछले चुनाव में हुई इस हार को इस बार जीत में कैसे तब्दील किया जाए.
हालांकि बिहार में 12 सीटें ऐसी हैं जिन्हें बीजेपी ने कमजोर श्रेणी में रखा है. लेकिन नीतीश कुमार के एनडीए से नाता तोड़ने और महागठबंधन में शामिल होने के बाद करीब 22 सीटें ऐसी हैं जहां चुनावी समीकरण गड़बड़ा गए हैं. लिहाजा, उन एक दर्जन के अलावा बीजेपी का खास जोर इन सीटों पर भी रहेगा कि इन्हें अपनी झोली में कैसे लाया जाए. वैसे भी इस बार पार्टी ने 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. पार्टी सूत्रों की मानें तो कमजोर सीटों पर पार्टी को मजबूत करने के लिए बीजेपी ने इस बार कुछ अलग रणनीति बनाई है. ऐसी हर सीट पर सात विस्तारकों को जिम्मेदारी सौंपी गई है. इनमें से एक को समूची सीट का प्रभारी बनाया गया है जबकि बाकी छह विस्तारक संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली हर विधानसभा सीट का जिम्मा संभालेंगे.
इसके अलावा बूथ लेवल पर पन्ना प्रमुखों को तैनात किया गया है जो मोदी सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं को घर-घर जाकर बताने के साथ ही उन्हें बीजेपी के पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित करेंगे. बता दें, वोटर लिस्ट के एक पेज पर जितने मतदाताओं के नाम होते हैं उसे बीजेपी ने पन्ना प्रमुख का नाम दिया है जिसकी ये जिम्मेदारी होती है कि वे उनसे लगातार संपर्क में रहते हुए पार्टी के लिए अधिकतम वोट जुटाएगा. बताते हैं कि पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी का ये प्रयोग बेहद कारगर साबित हुआ है जिसका पार्टी को पर्याप्त फायदा भी मिला है.
लगता है कि अपनी इन तैयारियों से बीजेपी कुछ ज्यादा ही जोश में है. शायद इसीलिए अमित शाह ने शनिवार को पश्चिमी चंपारण में जेडीयू और आरजेडी के गठबंधन को अपवित्र बताते हुए कहा कि यह पानी और तेल जैसा है. जेडीयू पानी है और आरजेडी तेल है. उन्होंने नीतीश कुमार पर सीधा हमला करते हुए कहा कि बहुत साल तक 'आया राम गया राम' कर लिए अब उनके लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए गए हैं. ''नीतीश बाबू आप प्रधानमंत्री बनने के लिए विकासवादी से अवसरवादी बने, कांग्रेस और आरजेडी की शरण में गए. नीतीश बाबू की पीएम बनने की महत्वाकांक्षा ने बिहार का बंटाधार कर डुबोया क्योंकि हर 3 साल में उन्हें पीएम बनने का सपना आता है. ये वही नीतीश हैं जो जय प्रकाश नारायण से लेकर आज तक जिस कांग्रेस के खिलाफ लड़े, जिस जंगलराज के खिलाफ बीजेपी के साथ मिलकर एऩडीए की सरकार बनाई, अब उसी जंगलराज के प्रणेता लालू प्रसाद की गोदी में बैठ गए हैं."
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)



























