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Spinach Cultivation: ये है पालक की खेती करने का नया तरीका, 20 दिन के भीतर मिलेगी 1 लाख रुपये की पैदावार

Green Vegetable Farming: सितबंर में पालक की खेती करके 150 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टयेर तक पत्तों का उत्पादन ले सकते हैं, जिसे बाजार में 15 से 20 रुपये प्रति गड्डी के हिसाब से बेचा जाता है.

Spinach Farming Technique: भारत में हरी पत्तेदार सब्जियों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. खासकर सितंबर से लेकर नवंबर तक पालक, मेथी, धनिया जैसी पत्तेदार सब्जियों की खेती (Vegetable Farming) के लिए मौसम काफी अनुकूल रहता है. किसान चाहें तो इस समय सर्दियों की सबसे लोकप्रिय सब्जी पालक की खेती (Spinach Farming) करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

बता दें कि पालक में विटामिन-ए, विटामिन-सी, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस जैसे कई खनिज तत्व पाये जाते हैं, जिनसे सब्जी, सलाद, भाजी, पराठे, पकौड़े और जूस बनाया जाता है. यह सेहत के लिए फायदेमंद है ही, साथ ही किसानों के लिए भरपूर मुनाफे का सौदा बन सकता है. सितबंर माह में पालक की खेती (Spinach Cultivation) करके 150  से 250 क्विंटल  प्रति हेक्टयेर तक पत्तों का उत्पादन (Spinach Production) ले सकते हैं, जिसे बाजार में 15 से 20 रुपये (Spinach Price) प्रति गड्डी के हिसाब से बेचा जाता है.

पालक की खेती के लिए जलवायु 
पालक जैसी पत्तेदार सब्जियों को उगाने का सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि यह कम समय में पककर तैयार हो जाती है. इसकी खेती के लिए सामान्य सर्द मौसम ही सबसे अच्छा रहता है. खासकर ठंड के मौसम में पालक के पत्तों की अच्छी उपज मिलती है. किसान चाहें तो बेहतर उत्पादन के लिए पालक की ऑलग्रीन, पूसा पालक, पूसा हरित और पूसा ज्योति किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.

पालक की खेती के लिए मिट्टी 
वैसे तो पालक को देश भर की अलग-अलग मिट्टियों में उगाया जाता है. कई लोग घर की छत पर या बालकनी में क्यारियां या कंटेनर बनाकर भी पालक के पत्ते उगाते हैं. वहीं खेतों में नमकीन या लवणीय भूमि सबसे अच्छी रहती है. हैरान करने वाली बात यह भी है कि जिस मिट्टी में किसी भी फसल का उत्पादन नहीं मिल पाता, वहां पालक की सबसे अच्छी पैदावार ले सकते हैं. बाकी बागवानी फसलों की तरह जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में भी पालक की खेती करके कम मेहनत में बेहतर उत्पादन ले सकते हैं.

खाद और बीज
पालक जैसी पत्तेदार सब्जियों से अच्छा उत्पादन लेने के लिए जरूरी है कि अच्छी मात्रा में जैविक खाद या वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल किया जाए. वैसे तो पालक की फसल में नाइट्रोजन का इस्तेमाल करने पर भी अच्छे परिणाम सामने आते हैं, लेकिन जैविक खेती करने वाले किसान नाइट्रोजन की जगह जीवामृत का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. एक हेक्टेयर खेत में पालक की खेती करने के लिए 30 से 32 किलोग्राम बीजों की जरूरत पड़ती है, जिसके बाद फसल से 150 से 200 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं.

पालक की खेती 
जाहिर है कि पालक एक पत्तेदार सब्जी है, जिससे बेहद कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि बाजार में पालक की काफी ज्यादा डिमांड होती है. रसोई के व्यंजनों से लेकर सलाद और जूस तक पालक का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए सिर्फ एक बार बुवाई के बाद 5 से 6 कटाईयां करके बंपर उत्पादन ले सकते हैं. बता दें कि एक बार कटाई के बाद वापस 15 दिनों में पालक के पत्तों का उत्पादन मिल जाता है. अधिक गर्म तापमान को छोड़कर अगले 10 महीनों तक पालक का अच्छा उत्पादन ले सकते हैं.

पालक में सिंचाई
पालक एक कम लागत वाली पर मुनाफे से भरपूर फसल है, जिसमें पानी की काफी अच्छी मात्रा होती है, लेकिन इसके सिंचाई में अधिक पानी खर्च करने की जरूरत नहीं होती. बता दें की पालक के खेत में से हल्की नमी बनाकर भी अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. विशेषज्ञों की माने तो सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर ही पालक के खेत में सिंचाई की जरूरत होती है. वहीं कटाई से दो-तीन दिन पहले भी हल्का पानी लगाकर अच्छा उत्पादन मिल सकता है.

पालक में कीट प्रबंधन 
पालक एक पत्तेदार सब्जी है, जो सीधा जमीन से जुड़ी होती है, इसीलिए कवक रोग और कीटों का लगना लाजमी है. अकसर पालक की फसल में खरपतवारों के साथ-साथ कैटरपिलर और इल्लियों का प्रकोप बढ़ जाता है. ये इल्लियां पालक के पत्तियों को बीच में से खाकर सारी पैदावार को बर्बाद कर सकते हैं. इन सभी की रोकथाम के लिए खेत में नीम-गौमूत्र आधारित कीटनाशक का 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव कर सकते हैं.

पालक की कटाई और पैदावार 
पालक की खेती के लिए उन्नत किस्म (Top Spinach Varieties) का चयन करने पर फसल जल्दी पक कर तैयार हो जाती है, जहां साधारण के समूह को पकने में 30 दिन का समय लगता है. वहीं उन्नत किस्में 20 से 25 दिनों के अंदर 15 से 30 सेंटीमीटर तक बड़ी हो जाती हैं. पहली कटाई के समय पौधों की जड़ों से 5 से 6 सेंटीमीटर ऊपर ही पत्तियों की कटाई (Spinach Harvesting) करनी चाहिये. इसके बाद इन्हीं जड़ों से हर 15 दिन के अंतराल पर 5 से 6 कटाईयां करके बंपर उत्पादन (Spinach Production) ले सकते हैं.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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