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Horticulture: क्यों बागवानी फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं किसान? यहां जानिए असल वजह

Horticulture in India: पारंपरिक फसलों की तुलना में बागवानी में फसलों के विविधिकरण, नई तकनीकों, मशीनरी और नई तरीकों से नुकसान की संभावनायें कम हो जाती है, इसलिये किसान इस तरफ बढ़ रहे हैं.

Importance of Horticulture: कृषि को फायदे का सौदा बनाने के लिए सरकार, कृषि वैज्ञानिक और किसान लगातार काम कर रहे हैं. अब खेती के लिए जमीन की तैयारी से लेकर खाद-बीज, सिंचाई, रखरखाव और कटाई के बाद फसलों के भंडारण तक पर खास जोर दिया जा रहा है. चाहे नई कृषि तकनीक (New Agriculture Technology) हो या फिर उन्नत किस्म के बीज और पौधे, अब किसान खेती में नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं.

पारंपरिक खेती के बजाय बागवानी फसलों का उत्पादन सबसे ज्यादा सुर्खियों में बना हुआ है. सरकार भी अब किसानों को खाद्यान्न फसलों (Food Grains) की जगह फल, फूल, सब्जी और औषधीय पौधों की खेती (Herbal farming) के लिए प्रोत्साहित कर रही है. इसके लिये कई योजनाएं (Horticulture Schemes) भी चलाई जा रही हैं, ताकि किसानों पर खेती का बोझ ना पड़े और कम लागत में अच्छा पैदावार ले पाएं.

बढ़ रहा है बागवानी फसलों का उत्पादन

कृषि क्षेत्र के उत्पादन को लेकर सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021-22 के दौरान बागवानी फसलों से 341.63 मिलियन टन उत्पादन मिला है, जो पिछले साल के मुकाबले 2.10% ज्यादा है. वहीं पारंपरिक फसलों की खेती से साल 2021-22 में 315,72 मिलियन टन उत्पादन हुआ. इस हद तक कम होते उत्पादन के पीछे मौसम की अनिश्चितता और बीमारियों का प्रकोप इस नुकसान का प्रमुख कारण है, जिसकी चपेट में गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलें जल्दी आ जाती है.

यही कारण है कि कम समय में बेहतर उत्पादन के लिए अब किसान बागवानी फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि बागवानी फसलों में नुकसान नहीं होता, लेकिन बागवानी में फसलों के विविधिकरण, नई तकनीकों, मशीनरी और नई तरीकों का प्रयोग करने पर नुकसान की संभावनायें कम हो जाती है. 

बागवानी फसलों से कम प्रदूषण

जाहिर है कि धान-गेहूं जैसी पारंपरिक खाद्यान्न फसलों की कटाई के बाद बड़ी मात्रा में फसल अवशेष बचते हैं, जो किसानों के लिए किसी काम के नहीं होते. इसके अलावा इन फसलों की खेती के लिए बड़ी मात्रा में रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करके उत्पादन बढ़ाया जाता है, जिससे मिट्टी के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषित होता है.

वहीं बागवानी फसलों की खेती के लिए किसान ज्यादातर जैविक विधि अपनाते हैं, जिससे प्रदूषण के बिना ही मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कायम रहती है. इसके अलावा बागवानी फसलों की कटाई-तुड़ाई के बाद निकलने वाला कचरा पशुओं को खिलाया या पेड़ों की लकड़ी को इस्तेमाल में ले लिया जाता है, जिसके चलते प्रदूषण की संभावना ही नहीं रहती.

आधुनिक खेती से बढ़ा रोजगार

बागवानी फसलों की आधुनिक तकनीकों को अपनाने की कवायद की जा रही है. अब किसान फल, फूल, सब्जी और जड़ी-बूटियां उगाने के लिए खुली जमीन के बजाय पॉलीहाउस (Polyhouse), ग्रीन हाउस (Green house), लो टनल (Low Tunnel), प्लास्टिक मल्च (Plastic Mulch) और हाइड्रोपॉनिक्स (Hydroponics) का इस्तेमाल कर रहे हैं.

इससे खेती की लागत तो कम हो ही रही है, साथ ही पुराने तरीकों से कहीं ज्यादा पैदावार मिलती है. अब गांव के किसानों के साथ-साथ नौकरी-पेशेवर युवा भी आधुनिक तकनीकों को अपनाकर बागवानी कर रहे हैं. बाकी कामों के मुकाबले बागवानी एक सुकून वाला काम है और कम मेहनत में अच्छा उत्पादन भी मिल जाता है. बाजार में भी बागवानी फसलें (Horticulture Crops) आसानी से बिक भी जाती हैं, इसलिए अब गांव से लेकर शहरों तक लोग बागवानी को अपना व्यवसाय बना रहे हैं.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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