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Caste Census: Rahul Gandhi का आरक्षण पर बड़ा दांव, 50% सीमा तोड़ने की बात!
देश में 'अगड़ा बनाम पिछड़ा' का मुद्दा चुनावी चर्चा का केंद्र बना हुआ है. मंडल आयोग के लागू होने (अगस्त 1990) और 1993 तक 50% आरक्षण व्यवस्था के बावजूद, पिछड़े वर्ग की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं देखा गया है. अब 'अति पिछड़ा' की एक नई श्रेणी भी सामने आई है. आंकड़ों के अनुसार, 2014 में अरबपतियों में ओबीसी की भागीदारी 20% से घटकर 2022 में 9% रह गई, जबकि उच्च जाति की हिस्सेदारी 80% से बढ़कर 88.5% हो गई. केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित श्रेणी के 7153 पदों में से 2630 पद खाली हैं, जिनमें 1491 ओबीसी पद शामिल हैं. 'नॉट फाउंड सूटेबल' जैसी व्यवस्था अभी भी जारी है. हाल ही में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने अति पिछड़ों के लिए 10 सूत्री 'न्याय संकल्प' लिया, जिसमें आरक्षण की 50% सीमा को आगे बढ़ाने और निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का वादा किया गया. जाति जनगणना और आरक्षण के मुद्दे पर गहन चर्चा हुई, जिसमें रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक न किए जाने पर भी सवाल उठाए गए. बिहार में अति पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना और उसके लिए आवंटित राशि में वृद्धि का भी उल्लेख किया गया. वक्ताओं ने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों और अति पिछड़ों के प्रतिनिधित्व, शिक्षा की स्थिति और गरीबी के आंकड़ों पर भी बात की. यह भी सवाल उठाया गया कि मंडल कमीशन लागू हुए 35 साल हो गए, फिर भी पिछड़े वर्ग का उत्थान क्यों नहीं हो पाया. कई समुदाय अब भी पिछड़ा या अति पिछड़ा बनने की होड़ में हैं.
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