एक्सप्लोरर
टीचर्स डे स्पेशल: दोनों हाथ कटे हैं, फिर भी बेमिसाल है प्रयागराज का यह अनूठा शिक्षक
1/8

नारायण यादव जितने अच्छे शिक्षक हैं, उतने ही सच्चे समाजसेवी भी हैं. वह दिव्यांगों के लिए काफी काम करते हैं. वह अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर हर साल सौ दिव्यांगों का सामूहिक विवाह भी कराते हैं. उनकी उम्र अभी महज़ अड़तीस साल है. उन्हें अभी लंबा सफर तय करना है, लेकिन उनके हौसले और जज़्बे को देखकर कहा जा सकता है कि अपनी विकलांगता को मीलों पीछे छोड़कर आज वह हजारों लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं.
2/8

दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद वह न सिर्फ आम शिक्षकों की तरह बच्चों को पढ़ा रहे हैं, बल्कि मानसिक रूप से कमज़ोर उन बच्चों में भी शिक्षा की अलख जगा रहे हैं जो आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर होते हैं. ये अनूठे टीचर दूसरे शिक्षकों की तरह तेजी से ब्लैकबोर्ड पर लिखते हैं. बच्चों की कापियां जांचते हैं. संगीत के वाद्य यंत्रों को बजाकर अपने स्टूडेंट्स का मनोरंजन करते हैं तो साथ ही उनके बीच वालीबाल जैसे आउटडोर गेम्स खेलकर उन्हें फिट रहने का भी संदेश देते हैं.
3/8

प्रयागराज शहर से करीब पचीस किलोमीटर दूर कौड़िहार इलाके में चल रहे इस विशेष विद्यालय में भी शिक्षक श्री नारायण यादव ने कुछ ही दिनों में अपनी अलग पहचान बना ली है. स्कूल में वह किसी को भी अपने दिव्यांग होने का एहसास नहीं होने देते. नारायण यादव अपनी तमाम खूबियों की वजह से स्टूडेंट्स और टीचर्स के साथ ही समाज में भी खासे लोकप्रिय हैं. उन्हें अब तक तमाम संस्थाएं सम्मानित भी कर चुकी हैं.
4/8

नारायण यादव ने ग्रेजुएशन करने के बाद स्पेशल बीएड, एमए व एलएलबी समेत कई डिग्रियां हासिल कीं. अपनी काबिलियत के भरोसे वह कई दूसरी नौकरियां भी हासिल कर सकते थे, लेकिन उन्होंने शिक्षक बनने का ही फैसला किया, ताकि दूसरों की ज़िंदगी में उजाला भर सकें. लोगों को जागरूक व ज़िम्मेदार बना सकें. उन्हें बेसिक शिक्षा विभाग में नौकरी मिल गई और वह बांदा जिले में शिक्षक बन गए.
5/8

कहते हैं दिव्यांगता अभिशाप होती है, लेकिन अगर बुलंद हौसलों के साथ कोई काम किया जाए तो शारीरिक कमज़ोरी कभी मंज़िल तक पहुंचने में रुकावट नहीं हो सकती. यह बात प्रयागराज के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक नारायण यादव पर पूरी तरह फिट बैठती है. नारायण जब छठीं क्लास में पढ़ते थे, तभी एक हादसे का शिकार होने की वजह से उनके दोनों हाथ काटकर अलग कर दिए गए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और खुद इतनी डिग्रियां हासिल कीं, जो किसी साधारण इंसान के लिए किसी सपने से कम नहीं होती.
6/8

अपने हौसले और जज़्बे की वजह से शिक्षा जगत में बेमिसाल बने नारायण यादव मूल रूप से यूपी के मऊ जिले के रहने वाले हैं. सन 1990 में जब वह छठी क्लास में पढ़ते थे, तब उन्हें बिजली का ज़बरदस्त करंट लगा. डॉक्टर्स ने उनकी ज़िंदगी बचाने के लिए दोनों हाथों को काटा जाना ज़रूरी बताया. श्रीनारायण की ज़िंदगी बचाने के लिए परिवार वालों ने उनके दोनों हाथ कटवा दिए. शुरुआती कुछ दिन तो वह काफी परेशान रहे. ज़िंदगी उन्हें बोझ लगने लगी, लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन्होंने अपनी कमज़ोरी को ताकत बनाने का फैसला किया.
7/8

हाथ नहीं होने के बावजूद वह अपने स्टूडेंट्स के बीच लैपटॉप आपरेट कर उन्हें नई तकनीकों की जानकारी देते हैं तो साथ ही स्मार्ट फोन चलाकर अपने विद्यार्थियों का हाल चाल भी लेते रहते हैं. दिव्यांग होने के बावजूद छात्रों और दूसरे टीचर्स के बीच लोकप्रिय ये टीचर अपने हौसलों की बदौलत दिव्यांगता के अभिशाप होने के दावे को भी गलत साबित करते हैं. ख़ास बात यह है कि इस अनूठे टीचर ने मानसिक रूप से कमज़ोर बच्चों के दर्द को महसूस करते हुए अपना तबादला अब उनके ही स्कूल में करा लिया है. अपनी बेमिसाल सेवाओं व शिक्षा के प्रति समर्पण की वजह से प्रयागराज के इस अनूठे टीचर को तमाम जगहों पर सम्मानित भी किया जा चुका है.
8/8

नारायण यादव जब बच्चों को दूसरे आम शिक्षकों की तरह पढ़ाते थे, तो लोग उन्हें देखकर हैरान रह जाते थे. हाथ के बिना भी वह तेजी से ब्लैक बोर्ड पर लिखते थे. बच्चों की कापियां जांचते थे. किताबों के पन्ने पलटते थे और रिपोर्ट कार्ड तैयार करने समेत दूसरे काम भी करते थे. इस बीच यूपी सरकार ने मानसिक रूप से कमज़ोर गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए सूबे में लखनऊ और प्रयागराज दो जगहों पर सरकारी आवासीय विद्यालय खोले तो शिक्षक नारायण यादव ने अपना तबादला यहीं करा लिया. उन्हें लगा कि मानसिक रूप से कमज़ोर बच्चों को शिक्षित व जागरूक करने का काम वह दूसरों से ज़्यादा बेहतर ढंग से कर सकते हैं.
Published at : 05 Sep 2019 11:26 AM (IST)
View More
Advertisement
Advertisement
Source: IOCL
























