Bihar Voter List: वोट की लड़ाई...नागरिकता पर आई ? Sandeep Chaudhary | Nitish Kumar | Tejashwi
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश पर सुनवाई हुई. इस आदेश में कानूनी और व्यवहारिक दोनों तरह की कमियां बताई गई हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यदि चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को तय समय में पूरा करने की कोशिश की, तो इसका अंजाम ठीक नहीं होगा और करीब आधे वोटर अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं. यह उनके वोट देने के अधिकार को खत्म कर देगा. एक बड़ा सवाल यह भी है कि आधार को जनपत्र का आधार क्यों नहीं माना जा रहा है, जबकि पासपोर्ट जैसे अन्य दस्तावेज बनवाने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य है. यह भी बताया गया कि 1 जनवरी 2003 के बाद से रजिस्टर हुए वोटरों के नाम बिना कानूनी प्रावधानों का पालन किए हटा दिए गए हैं. एक पूर्व चुनाव आयुक्त ने अपने लेख में लिखा है कि, "इलेक्शन कमीशन का काम ये नहीं है कि वो लोगों की नागरिकता चेक करे। इलेक्शन कमीशन को करना चाहिए कि पुराना जो इलेक्टोरल रोल है उसको लेकर जाए और उसको चेक करें। उसमें क्या हकाना है, क्या जोड़ना है? क्योंकि एक दफा जो व्यक्ति इलेक्टोरल रोल में आ गया, उसके लिए देर इस ए प्रिसॉप्शन ऑफ सिटीजनशिप." चुनाव आयोग के 24 जून के पत्र में भी यह बात लिखी है. सवाल यह है कि जब स्पेशल समरी रिविजन अक्टूबर 2024 से जनवरी 2025 तक हो चुका है, तो फिर से समीक्षा की क्या जरूरत पड़ गई. यह प्रक्रिया गैरकानूनी और अव्यावहारिक दोनों है.
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