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UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दलितों पर क्यों लगी है बीजेपी की नजर
UP Election 2022: यूपी बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने बीते साल नवंबर में कार्यकर्ताओं से दलितों के घर जाकर चाय-नाश्ता करने और उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर वोट करने के लिए राजी करने की अपील थी.
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उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने कार्यकर्ताओं से दलितों के साथ मेल-जोल बढ़ाने की अपील की थी. उन्होंने कार्यकर्ताओं को दलितों के साथ चाय पीने, खाना खाने और उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर वोटे देने के लिए मनाने को कहा था. उन्होंने बीते साल 14 नवंबर को लखनऊ में कहा था कि 2022 के चुनाव में भगवान राम के लिए बीजेपी की सरकार बनानी है और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पूरा करना है. इसके लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं से कड़ी मेहनत करने को कहा. स्वतंत्र देव का यह बयान बताता है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी जाति और धर्म के नाम पर चुनाव लड़ेगी. ऐसी हालत तब है, जब उसकी यूपी में पूर्णकालिक और स्पष्ट बहुमत वाली सरकार है.
उत्तर प्रदेश के चुनाव में जाति महत्वपूर्ण भूमिका में होती है. देश में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद पिछड़े वर्ग की राजनीति को नई राह दिखाई. समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का जन्म भी मंडल आयोग की सिफारिशे लागू होने के बाद हुआ है. यूपी में बीजेपी ने पहले धर्म के आधार पर चुनाव लड़े और सरकारें भी बनाईं. मंडल कमीशन लागू होने के बाद हुए 1991 के चुनाव में बीजेपी ने यूपी की 425 सदस्यों वाली विधानसभा में 221 सीटें जीती थीं. यह चुनाव मंडल के बदले बीजेपी की कमंडल की राजनीति शुरू करने के बाद हुआ था. इसके बाद 2017 से पहले तक के विधानसभा चुनान में बीजेपी कभी भी 200 सीटें नहीं जीत पाई थी. बीजेपी ने 2017 के चुनाव में अकेले के दम पर 312 सीटें जीती थीं.
बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग
कहां जाता है कि बीजेपी ने 2017 के इस चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन केवल और केवल सोशल इंजीनियरिंग के दम पर किया था. बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग का काम टिकट बंटवारे में किया था. उसने टिकट बंटवारे में दलित समुदाय के गैर जाटव और पिछड़ों में गैर यादवों को टिकट देने में खास ध्यान रखा था. बीजेपी अब 2017 के अपने प्रदर्शन को फिर दुहराने की कोशिश कर रही है.
आइए नजर डालते हैं कि 2017 के बाद हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में किस जाति ने किस पार्टी या गठबंधन को वोट किया था. थिंकटैंक सीएसडीएस और लोकनीति के एक सर्वे के मुताबिक अनुसूचित जाति की बड़ी जातियों में से एक जाटव जाति का 75 फीसदी वोट सपा-बसपा, 17 फीसदी बीजेपी, 1 फीसदी कांग्रेस और अन्य दलों को 7 फीसदी वोट मिला था. वहीं एससी की अन्य जातियों के वोटों में से बीजेपी गठबंधन को 48 फीसदी, सपा-बसपा गठबंधन को 42 फीसदी, कांग्रेस को 7 फीसदी और 3 फीसद ने अन्य दलों को वोट किया था.
साल 2022 के चुनाव में बीजेपी की नजर जाटव जाति के 75 फीसदी वोटों पर है, जो लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा को मिले थे. इसमें बंटवारा इसलिए भी संभव है कि लोकसभा चुनाव में हुआ सपा-बसपा का गठबंधन टूट चुका है. बीजेपी को लगता है कि अगर दलितों में जगह बनाई जाए तो उनका वोट उन्हें मिल सकता है.
नोट: इस खबर में दिए गए आंकड़े सीएसडीएस और लोकनीति के एक सर्वे के हैं. इसकी प्रमाणिकता को लेकर एबीपी जिम्मेदार नहीं है.
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