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बागपत में बीजेपी के लिए आसान नहीं राह, जाटलैंड में कड़ी टक्कर के आसार, जानें- नए समीकरण

बागपत लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी। पहले चुनाव में यहां जनसंघ और दूसरे चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। लेकिन इमरजेंसी के बाद यहां 1977 में हुए चुनाव से ही क्षेत्र की राजनीति पूरी तरह से बदल गई।

बागपत: पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सियासी गढ़ और जाटलैंड माने जाने वाली लोकसभा सीट बागपत इस बार बेहद अहम है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और उनके बेटे अजित सिंह के कर्मक्षेत्र के रूप में भी यह सीट जानी जाती है। 2014 में मोदी लहर के दम पर भारतीय जनता पार्टी ने यहां परचम लहराया और मुंबई पुलिस के कमिश्नर रह चुके सत्यपाल सिंह सांसद चुने गए। वहीं रालोद प्रमुख अजित सिंह इस सीट पर तीसरे स्थान पर रहे थे। रालोद के सामने 2019 के चुनाव में जीत दर्ज कर सियासी वजूद बचाने की चुनौती होगी।

दिलचस्प है मुकाबला

भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर यहां से सत्यपाल सिंह को मैदान में उतारा है। ऐसे में शिवपाल की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के लिए यह सीट निकाल पाना आसान नहीं होगा। चौधरी चरण सिंह और फिर उनके बेटे चौधरी अजित सिंह के लिए मशहूर बागपत सीट से शिवपाल ने चौधरी मोहम्मद मोहकम को प्रत्याशी बनाया है। जिस समाजवादी पार्टी को छोड़कर शिवपाल ने अलग पार्टी बनाई वह यहां से चुनाव नहीं लड़ेगी। गठबंधन के तहत यह सीट आरएलडी के हिस्से आई है। यहां से जयंत चौधरी मैदान में हैं।

बागपत लोकसभा सीट का इतिहास

बागपत लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी। पहले चुनाव में यहां जनसंघ और दूसरे चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। लेकिन इमरजेंसी के बाद यहां 1977 में हुए चुनाव से ही क्षेत्र की राजनीति पूरी तरह से बदल गई। 1977, 1980 और 1984 में लगातार पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह यहां से चुनाव जीते। चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह 6 बार यहां से सांसद रहे। 1989, 1991, 1996, 1999, 2004 और 2009 में अजित सिंह बागपत से सांसद रहे। 1998 में हुए चुनाव में उन्हें यहां हार का सामना करना पड़ा और 2014 में तो वह तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे।

सियासी समीकरण

बागपत में 16 लाख से भी अधिक वोटर हैं। जाट समुदाय के वोटरों के बाद यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे अधिक है। बागपत लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें सिवालखास, छपरौली, बड़ौत, बागपत और मोदीनगर विधानसभा सीटें हैं। इसमें सिवालखास मेरठ जिले की और मोदीनगर गाजियाबाद जिले से आती हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सिर्फ छपरौली में राष्ट्रीय लोकदल ने जीत दर्ज की थी, जबकि बाकी 4 सीटों पर बीजेपी जीती थी।

2014 लोकसभा चुनाव के आंकड़े

सत्यपाल सिंह- भारतीय जनता पार्टी- कुल वोट मिले- 423,475- 42.2 प्रतिशत गुलाम मोहम्मद- समाजवादी पार्टी- कुल वोट मिले 213,609- 21.3 प्रतिशत चौधरी अजित सिंह- राष्ट्रीय लोक दल- कुल वोट मिले 199,516- 19.9 प्रतिशत

2009 लोकसभा चुनाव के आंकड़े

अजीत सिंह- रालोद- कुल वोट मिले-238589- 38.86 प्रतिशत मुकेश शर्मा-बसपा- कुल वोट मिले- 175611- 28.61 प्रतिशत सोमपाल शास्त्री- कांग्रेस- कुल वोट मिले- 136964    8.40 प्रतिशत

मोदी लहर का असर

जाटों का गढ़ माने जाने वाले बागपत में राष्ट्रीय लोक दल को बड़ा झटका तब लगा था जब 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित सिंह को यहां से हार झेलनी पड़ी थी। बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने इस सीट से 2 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी।

आरएलडी के लिए आसान नहीं है सफर

2019 का लोकसभा चुनाव रालोद के लिए अस्तित्व की लड़ाई भी माना जा रहा है। कभी ये सीट रालोद का गढ़ मानी जाती थी लेकिन अब हालात पूरी करह से बदल चुके हैं।

कौन हैं सत्यपाल सिंह

मुंबई पुलिस कमिश्नर के तौर पर पहचान बनाने वाले सत्यपाल सिंह को 2014 में भाजपा ने मौका दिया और उन्होंने 2 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की। सत्यपाल सिंह 2012 से 2014 तक मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे थे। 2014 में चुनाव जीतने के बाद वह केंद्र सरकार में मंत्री बने।

प्रमुख मुद्दे

- गन्ना मूल्य भुगतान और पर्ची व प्रजाति को लेकर विवाद

- बस अड्डे की मांग

- बागपत मुख्यालय पर राजकीय डिग्री कॉलेज की स्थापना की मांग

- यूपी-हरियाणा विवाद सुलझाने की मांग

- रेल कनेक्टिविटी बढ़ाई जाए

 
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