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केदारनाथ में पिछले 10 सालों में हुई सबसे कम बर्फबारी, एक्सपर्ट ने इस बात की जताई चिंता

Uttarakhand Snowfall: ग्लोबल वार्मिंग का असर उत्तराखंड के मौसम पर भी दिखाई पड़ रहा है. विशेषज्ञों ने सरकार से पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए ठोस नीति बनाने की सलाह दी है.

Dehradun News Today: उत्तराखंड के पवित्र तीर्थस्थल केदारनाथ में इस वर्ष पिछले 10 वर्षों में सबसे कम बर्फबारी दर्ज की गई है. इस बार सर्दियों में यहां सिर्फ दो फीट तक ही बर्फबारी हुई है, जो कि बीते वर्षों के मुकाबले काफी कम है. जलवायु परिवर्तन और लगातार बदलते मौसम के पैटर्न के कारण यह स्थिति बनी है. 

वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस पर चिंता जताई है, क्योंकि इससे न केवल क्षेत्र की पारिस्थितिकी प्रभावित होगी बल्कि जल स्रोतों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. बीते 10 वर्षों में केदारनाथ में बर्फबारी का पैटर्न बदलता दिखा है. जहां 2015 में 8 फीट बर्फ गिरी थी, वहीं 2025 में यह घटकर मात्र 2 फीट रह गई है. 

क्या होगा प्रभाव?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह स्थिति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में इससे कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं. जल स्रोतों पर असर: कम बर्फबारी के कारण गंगोत्री और यमुनोत्री ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ सकती है, जिससे गंगा और यमुना जैसी नदियों में जल प्रवाह प्रभावित होगा.

वनस्पति और जैव विविधता पर प्रभाव: केदारनाथ क्षेत्र में पाई जाने वाली दुर्लभ वनस्पतियां और वृक्ष कम बर्फबारी के कारण प्रभावित हो सकते हैं. इससे इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी प्रणाली पर नकारात्मक असर पड़ेगा.

गर्मी के मौसम में जल संकट: कम बर्फबारी का मतलब है कि गर्मियों में जल स्रोतों में कमी आएगी, जिससे पानी की किल्लत हो सकती है. पर्यटन पर असर: केदारनाथ और आसपास के इलाकों में भारी बर्फबारी देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. अगर बर्फबारी की मात्रा लगातार घटती रही, तो इससे पर्यटन पर भी प्रभाव पड़ेगा.

कम बर्फबारी खतरे की घंटी
पिछले कुछ वर्षों से हिमालयी क्षेत्रों में मौसम का मिजाज लगातार बदल रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह जलवायु परिवर्तन का ही असर है, जिससे सर्दियों में बर्फबारी कम हो रही है और गर्मियों में तापमान तेजी से बढ़ रहा है.

केदारनाथ में कम बर्फबारी का असर यहां के पुनर्निर्माण कार्यों पर भी देखा जा सकता है. मजदूरों और निर्माण कार्यों में लगे लोगों के लिए यह स्थिति राहत भरी है, क्योंकि भारी बर्फबारी के कारण निर्माण कार्य कई महीनों तक ठप पड़ जाते थे. लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह पूरे क्षेत्र के लिए खतरे की घंटी है.

विशेषज्ञों ने दी खास सलाह
विशेषज्ञों के अनुसार, अगर हमें इस समस्या से निपटना है, तो जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. विशेषज्ञों ने सलाह दी कि इसके लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाए और जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम किया जाए.

विशेषज्ञों ने सलाह दी कि हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए ठोस नीतियां बनाई जाएं. इसके साथ ही जल संरक्षण के उपाय किए जाएं, जिससे ग्लेशियरों से मिलने वाले पानी का सही उपयोग हो सके.

केदारनाथ में बर्फबारी में लगातार गिरावट एक गंभीर संकेत है, जो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन की ओर इशारा करता है. अगर इस दिशा में जल्द ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में हिमालयी क्षेत्रों की पारिस्थितिकी और जल स्रोतों पर गहरा असर पड़ सकता है. सरकार, वैज्ञानिकों और आम जनता को मिलकर इस समस्या के समाधान की दिशा में कार्य करना होगा, ताकि हिमालय का यह पवित्र क्षेत्र प्राकृतिक संतुलन बनाए रख सके.

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