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ज्ञानवापी परिसर में पूजा के मामले में मस्जिद कमेटी को नहीं मिली अंतरिम राहत, HC में अब 12 फरवरी को सुनवाई

Gyanvapi मामले में बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने दलील पेश की. अब अगली सुनवाई 12 जनवरी को है.

Gyanvapi Case News: वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में स्थित व्यास तहखाने में पूजा अर्चना शुरू किए जाने के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. बुधवार को सबसे पहले हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने अपनी दलीलें पेश कीं. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच में मामले की सुनवाई हुई. अब मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को सुबह 10 बजे होगी.

हाईकोर्ट बुधवार को अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें वाराणसी अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें हिंदू भक्तों को ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में प्रार्थना करने की अनुमति दी गई थी.

हिंदू पक्ष के वकील हरि शंकर जैन सीपीसी की धारा 152 के बारे में बताया जिसमें किसी भी तरह की त्रुटि होने पर आदेश को बाद में सुधारा जाता है. जैन ने दलील दीकि 1993 तक व्यास तहखाने में नियमित तौर पर पूजा अर्चना होती थी. 1993 के बाद साल में एक दिन पूजा की जाती रही है. मुस्लिम पक्ष ने कभी भी पूजा पर आपत्ति नहीं की है.

जस्टिस अग्रवाल ने हरिशंकर जैन से पूछा कि क्या अंतिम राहत सिर्फ एक अर्जी के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है ? इस पर जैन ने कहा है कि हमें कोई अधिकार नहीं दिया गया है. कोर्ट ने रिसीवर नियुक्त किया है और रिसीवर ने पूजा शुरू कराई है.

जैन फिर काशी विश्वनाथ एक्ट 1983 की धारा 13 और 14 को पढ़ रहे हैं, जिसमें ट्रस्ट को पूजा करवाने के अधिकारों का हवाला दिया गया है जैन ने कहा है कि काशी विश्वनाथ एक्ट के तहत पूजा अर्चना करना ट्रस्ट का दायित्व है. जिला जज के 31 जनवरी के फैसले से हमें यानी व्यास परिवार को कोई फायदा नहीं हो रहा है हमें कोई दान दक्षिणा भी नहीं मिल रही है.

हखाना में वैसे भी हर साल पूजा होती रहती है- जैन
जैन ने कोर्ट में कहा कि तहखाना में वैसे भी हर साल पूजा होती रहती है. ज्ञानवापी मस्जिद समिति का तहखाना पर कभी कोई कब्जा नहीं रहा है. मस्जिद कमेटी को पूजा अनुष्ठानों पर आपत्ति दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है.

हरिशंकर जैन के मुताबिक एडवोकेट कमिश्नर और ASI सर्वे में भी परिसर में तहखाना होने की बात सामने आई है. मस्जिद कमेटी ने इस बात से कभी इंकार नहीं किया है कि व्यास तहखाने में पूजा होती रही है. व्यास परिवार के पास इस बात के दस्तावेजी सबूत है कि वह लोग वहां पूजा करते रहे हैं.

हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कुछ डाक्यूमेंट्स कोर्ट को सौंपे हैं. जैन ने कहा है कि इन दस्तावेजों से साफ है कि व्यास तहखाना में 2016 में भी रामचरित मानस का पाठ किया गया था और उस वक्त तमाम अधिकारी भी मौजूद थे.

जैन ने इसके बाद कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 31 मई 2023 के उस आदेश को पढ़ा जिसमें पैराग्राफ 103 में कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया था.

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि श्रृंगार गौरी का केस अलग मामला था और यह अलग केस हैं. इस मामले में मस्जिद कमेटी और व्यास परिवार को यह बताना है कि 1993 में तहखाने को बैरिकेड किए जाने के वक्त किसका कब्जा था.

जैन ने कहा कि इस बारे में हमने 200 साल पुराने डॉक्यूमेंट भी कोर्ट को मुहैया कराए हैं. वहां बहुत पहले से रामायण का पाठ होता रहा है. कोर्ट ने इसके बाद यूपी सरकार के एडवोकेट जनरल से जवाब तलब किया. कोर्ट ने उनसे पूछा है कि क्या आपने तहखाना पर कब्जा हासिल कर लिया है और वहां पुख्ता इंतजाम कर दिए हैं ?

यूपी सरकार ने कही ये बात
एडवोकेट जनरल ने इस पर कहा कि इस बारे में हमें सरकार से जानकारी हासिल करनी होगी. कोर्ट के समक्ष जानकारी पेश करने के लिए कम से कम 48 घंटे का वक्त चाहिए.

उधर मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी ने कहा  कि 17 जनवरी के आदेश के बाद 31 जनवरी को पूजा शुरू कराए जाने का आदेश देना पूरी तरह से गलत था. जिला जज ने एक अंतरिम आदेश से मुकदमे के एक बड़े हिस्से का निपटारा कर दिया, यह उचित नहीं था.

मुस्लिम पक्ष ने किया ये दावा
जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने मुस्लिम पक्ष के वकील फरमान नकवी को CPC की धारा 152 का हवाला देते हुए कहा है कि इसके तहत किसी आदेश में त्रुटि को सुधारा जा सकता है. जज ने कहा है कि 31 जनवरी को मुस्लिम पक्ष को भी सुना गया था. मुस्लिम पक्ष ने उस वक्त कोई आपत्ति नहीं जताई थी. फैसले के वक्त भी जिला जज को कोई आवेदन नहीं दिया गया था.

नकवी ने फिर यह कहा कि 31 जनवरी के आदेश में अभी तक यह साफ नहीं है कि जिला जज ने अपने आदेश में सुधार किया था या किसी आवेदन पर आदेश पारित किया था या फिर उन्होंने सुओ मोटो लिया था. अगर कोई आवेदन किया गया था तो वह अब तक सामने क्यों नहीं आया है. जज ने यह नहीं बताया था कि वह सीपीसी की धारा 152  के तहत मिली शक्तियों का उपयोग कर रहे हैं. नकवी के इन तर्कों पर जस्टिस अग्रवाल में कहा है कि ऐसा करना अप्रासंगिक हो सकता है.

नकवी के मुताबिक व्यास परिवार ने 1993 में पूजा का अधिकार छोड़ दिया था। उनका कहना है कि मस्जिद कमेटी को दीन मोहम्मद के पुराने केस के आधार पर ही अदालत से फैसला होने की उम्मीद है। उस केस में ऐसे किसी तहखाना का जिक्र नहीं किया गया था जिस पर मस्जिद या मुस्लिम पक्ष का कब्जा ना हो.

नकवी का कहना है कि आवेदन के अभाव में 31 जनवरी का आदेश अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, इसलिए उस आदेश को रद्द किया जाना चाहिए. नकवी ने कहा है कि तहखाना में कभी नमाज नहीं पढ़ी गई, लेकिन यह मस्जिद का ही हिस्सा था. 1993 से यह सीआरपीएफ के कब्जे में है.

इस पर जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा है कि व्यास परिवार का दावा है कि तहखाना तक उनकी पहुंच थी. चाबियां उन्हीं के पास थी और वह साल में एक बार तहखाना को खोलकर पूजा भी करते थे.
नकवी ने कहा कि राज्य सरकार के खिलाफ राहत मांगी गई, लेकिन उन्हें पार्टी नहीं बनाया गया. सूट यानी मुकदमा चले या ना चले, अब कोई फायदा नहीं, क्योंकि संपत्ति की प्रकृति बदल दी गई है. सूट फाइल हुआ. जिला जज ने ट्रांसफर करके अपने पास मंगवा लिया और ऑर्डर भी पास कर दिया.

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