इंसेफेलाइटिस की बीमारी से आज भी जकड़ा है गोरखपुर, सीएम योगी की पहल ला रही रंग
करीब चार दशक से भी ज्यादा समय से गोरखपुर के मासूमों पर इंसेफेलाइटिस का खतरा मंडराता रहता है। यहां का मेडिकल कालेज हजारों मासूमों की मौत और माताओं के करुण क्रंदन का गवाह है।

गोरखपुर, एबीपी गंगा। देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक गोरखपुर में आज भी इंसेफेलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी पैर पसारे हुए हैं। हर साल ये बीमारी हजारों मासूमों की जिंदगी लील जाती है। यही वजह है कि आज जिले को ‘मासूमों की कब्रगाह‘ के नाम से भी जाना जाता है। वैसे राजनीतिक तौर पर गोरखपुर की पहचान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तौर पर भी की जाती है। उत्तराखंड में जन्मे योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर है, वो यहां से सांसद भी रहे हैं। योगी ने इस गंभीर बीमारी को लेकर कई जागरूकता अभियान भी चलाए हैं। जिसका असर भी देखने को मिला है।
हर साल जाती है मासूमों की जान करीब चार दशक से भी ज्यादा समय से गोरखपुर के मासूमों पर इंसेफेलाइटिस का खतरा मंडराता रहता है। यहां का मेडिकल कालेज हजारों मासूमों की मौत और माताओं के करुण क्रंदन का गवाह है। साल 1978 में इस शहर में एक बीमारी से लोग परिचित हुए। किसी ने इसे ‘जापानी इंसेफेलाइटिस’ या एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) तो किसी ने ‘नवकी बीमारी’ के नाम से जाना। आम भाषा में इसे दिमागी बुखार भी कहा जाता है। क्योंकि इस बीमारी में तेज बुखार के साथ दिमागी झटके आना आम बात है। इसकी चपेट में जन्म के समय से लेकर 16 साल तक के बच्चे आ जाते हैं। खुले में शौच से फैलने वाला जमीनी प्रदूषण, गंदगी और फिर कम गहराई वाले निजी हैंडपंपों का इस्तेमाल इस बीमारी के फैलने का प्रमुख कारण है। धान की बुआई के समय मच्छरों का प्रकोप और बढ़ जाता है। ऐसे में इस बीमारी से प्रभावित बच्चों की संख्या में भी इजाफा हो जाता है।
नहीं सुधरे हालात योगी आदित्यनाथ के अलावा गोरखपुर से ही कांग्रेस के नेता स्व. वीर बहादुर सिंह भी मुख्यमंत्री बने, लेकिन स्थिति जस की तस बनी रही। समय बीतने के साथ इस बीमारी ने विकराल रूप ले लिया। जापानी इंसेफेलाइटिस के साथ एक्यूट वायरस ने डाक्टरों की पेशानी पर बल डाल दिया है। साल 2005 में जब बीआरडी मेडिकल कालेज में इस बीमारी से सबसे अधिक बच्चों की मौत हुई, तब जांच में पता चला कि मच्छर के काटने के साथ ही दूषित पेयजल के सेवन से भी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम जैसा गंभीर रोग बच्चों की जान ले रहा है। इसकी चपेट में आने वाले बच्चों के शरीर के 100 से अधिक अंगों पर इसका प्रभाव होता है, जबकि जापानी इंसेफेलाइटिस का असर सिर्फ दिमाग पर होता है।
राज्य सरकार ने चलाई कई योजनाएं इस जानलेवा बीमारी से निपटने के लिए राज्य सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई गई। दो साल पहले जब योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बने, तो लोगों को उनसे काफी उम्मीदें जगी। दरअसल, योगी ने इंसेफेलाइटिस को लेकर पहले कई जागरूकता अभियान चलाए थे। स्थानीयों की माने तो 'दस्तक' जैसे जागरूकता अभियानों और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल ने इस बीमारी पर थोड़ा बहुत अंकुश जरूर लगाया है। इसके अलावा ‘पेशेंट केयर’फॉर्मूले भी गेमचेंजर साबित हुआ है।
ऐसा पहली बार हुआ जब इंसेफेलाइटिस के बुखार पर वार के लिए स्लोगन के साथ स्वास्थ्य विभाग के साथ पांच अन्य विभागों की टीम भी एकजुट दिखी। चिकित्सा शिक्षा, महिला कल्याण, बाल विकास, पंचायती राज और नगर निगम की टीमों ने मिलकर लगातार पेयजल, स्वच्छता, टीकाकारण और जागरूकता के ऐसे कार्यक्रम चलाए, जिसका असर अस्पताल से लेकर गांवों तक महसूस होने लगा।
क्या कहते हैं आंकड़ें साल 2016 में बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस के 4,353 मामले आए थे। जिसमें 715 की मौत हो गई थी। 2017 में ये आंकड़ा बढ़कर 5,400 पहुंचा तो मृतकों की संख्या भी बढ़कर 748 हुई। बीआरडी मेडिकल कालेज के प्रिसिंपल डा. गणेश कुमार बताते हैं कि साल 2017 में जनवरी से अगस्त तक भर्ती हुए इंसेफेलाइटिस के 744 मरीजों में 180 की मौत हुई थी। इस बार जनवरी से अब तक भर्ती इंसेफेलाइटिस के 380 मरीजों में 80 की मौत हुई है। इस साल अगस्त माह में पिछली बार के 409 मरीजों में 80 की मौत की अपेक्षा 80 मरीज भर्ती हुए, उसमें सिर्फ 6 की मौत हुई है।
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