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UP: दूसरे चरण में भी हुए 20 जिलों में पंचायत चुनाव के बाद तेजी से बढ़े कोरोना के मामले, दोगुनी रफ्तार से बढ़ा संक्रमण

यूपी में पंचायत चुनाव कराना सरकार को भारी पड़ सकता है. 19 अप्रैल को हुये दूसरे चरण की वोटिंग के बाद कोरोना संक्रमण दोगुनी-तिगुनी रफ्तार से बढ़ा है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के दो चरण हो चुके हैं और अभी दो चरण होने बाकी हैं.  26 और 29 अप्रैल को पंचायत चुनाव के तीसरे और चौथे चरण की वोटिंग होनी है. एबीपी गंगा ने पहले भी बताया था कि कैसे पंचायत चुनाव कोरोना को बढ़ाने में सबसे बड़ा करियर साबित हुआ है. हमने आपको बताया था कि जिन जिलों में प्रथम चरण में पंचायत चुनाव हुए वहां चुनाव के बाद कोरोना के मामले दोगनी- तिगुनी रफ्तार से बढ़ गए. आज हम आपको बताएंगे कि कैसे दूसरे चरण में जिन 20 जिलों में पंचायत चुनाव हुए, चुनाव के बाद कोरोना ने इन जिलों में भी रफ्तार पकड़ ली है.

वोटिंग के बाद दोगुनी रफ्तार से बढ़ गये कोरोना के मामले 

उत्तर प्रदेश में हो रहे पंचायत चुनाव कोरोना संक्रमण को बढ़ाने में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है. यह हम नहीं कह रहे बल्कि आंकड़े गवाही दे रहे हैं. कुछ दिन पहले हमने आपको बताया था कि, प्रदेश के जिन 18 जिलों में पंचायत के चुनाव पहले चरण में 15 अप्रैल को हुए थे, वहां चुनाव के बाद कोरोना के मामलों में दुगनी चौगुनी बढ़ोतरी देखी गई, और आज हम आपको बताते हैं कि जिन जिलों में दूसरे चरण में 19 अप्रैल को वोटिंग हुई वहां वोटिंग के बाद कोरोना की रफ्तार किस तरह से बढ़ गई है. दूसरे चरण में 19 अप्रैल को प्रदेश के 20 जिलों में वोटिंग हुई थी. इनमें अमरोहा, आजमगढ़, इटावा, एटा, कन्नौज, गोंडा, गौतम बुद्ध नगर, चित्रकूट, प्रतापगढ़, बदायूं, बागपत, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मैनपुरी, महाराजगंज, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, सुल्तानपुर, ललितपुर और लखनऊ शामिल हैं. 

ये आंकड़े बता रहे हैं किस तरह बढ़े कोरोना के मामले

हमने चुनाव से पहले और चुनाव के बाद इन जिलों में कोरोना के आंकड़ों को लेकर जब अध्ययन किया तो यह बात खुलकर सामने आई कि, चुनाव के पहले मामले कम आ रहे थे, लेकिन चुनाव के बाद अचानक से मामलों में इजाफा हो गया. अगर हम बात करें तो दूसरे चरण में इटावा में भी वोटिंग हुई और यहां चुनाव से पहले 16 अप्रैल से लेकर 18 अप्रैल के बीच महज कुल 684 मामले सामने आए थे लेकिन चुनाव के बाद 19 से लेकर 21 अप्रैल के बीच यहां कुल मामले 702 हो गए. इसी तरह अगर एटा की बात करें तो यहां भी चुनाव से पहले 16 से लेकर 18 अप्रैल के बीच कुल 532 मामले सामने आए थे, लेकिन चुनाव के बाद 19 से 21 अप्रैल के बीच यहां मामले बढ़कर 552 हो गए. इसी तरह कन्नौज की बात कर ले तो यहां भी 16 से 18 अप्रैल के बीच मामले 539 थे जबकि चुनाव के बाद 19 से 21 अप्रैल के बीच मामले बढ़कर 552 हो गए. गौतम बुद्ध नगर में तो स्थिति और भी बिगड़ गई. पहले 1599 मामले सामने आए थे तो वहीं चुनाव के बाद सोलह सौ से ज्यादा मामले सामने आए. 

हालात हुये और खराब

बदायूं में जहां 16 से 18 अप्रैल के बीच महज 410 मामले सामने आए थे तो वही 19 से 21 अप्रैल के बीच मामले बढ़कर 525 हो गए. इसी तरह अगर बिजनौर की बात करें तो यहां भी 16 से 18 अप्रैल के बीच 642 मामले आए थे तो 19 से 21 अप्रैल यानी चुनाव के बाद यह मामले 654 हो गए. सबसे ज्यादा खराब स्थिति तो मुजफ्फरनगर की रही जहां चुनाव से पहले 16 से 18 अप्रैल तक 1010 मामले सामने आए थे तो वहीं चुनाव के बाद इसमें लगभग 50 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हो गया और 19 से 21 अप्रैल के बीच के मामले बढ़कर 1518 हो गए. वाराणसी में भी चुनाव से पहले 16 से 18 अप्रैल के बीच कुल मामले 6019 आए थे जबकि चुनाव के बाद इसमें भी बेतहाशा वृद्धि हुई है 19 से 21 अप्रैल के बीच में मामले बढ़कर 6869 हो गए. वहीं, सुल्तानपुर में भी मामलों में काफी इजाफा देखने को मिला यहां चुनाव से पहले 16 से 18 अप्रैल के बीच 1145 मामले सामने आए थे तो वहीं चुनाव के बाद यह मामले बढ़कर 19 से 21 अप्रैल के बीच 1285 हो गए. यानी अगर इन 9 जिलों में चुनाव से पहले 16 से 18 अप्रैल के बीच कोरोना के कुल मामलों को देखें तो वह तकरीबन 12500 थे और चुनाव के बाद 19 से 21 अप्रैल के बीच इनकी संख्या बढ़कर 14258 हो गई. 

कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन
एक तरफ उत्तर प्रदेश में जहां पंचायत चुनाव के दो चरण अब तक हुए हैं, उसमें कई जिलों में हिंसा भी देखने को मिली है, तो वहीं दूसरी तरफ लगातार कोरोना के मामले भी इन जिलों में बढ़े हैं. ऐसे में आज उत्तर प्रदेश के राज्य निर्वाचन आयुक्त मनोज कुमार ने उन 20 जिलों के अधिकारियों के साथ वीसी के जरिए बैठक की जहां तीसरे चरण में 26 अप्रैल को चुनाव होना है. इस बैठक में उन्होंने हिंसा को रोकने और कोविड गाइडलाइन को फॉलो कराने के निर्देश जारी किए हैं. लेकिन हकीकत क्या है यह सबको पता है, पहले और दूसरे चरण में सामने आई हिंसा की तस्वीरों ने सारी हकीकत को सामने लाकर रख दिया है. वहीं, तमाम पोलिंग बूथ पर कैसे कोविड गाइडलाइन का उल्लंघन हुआ है,यह भी किसी से छिपा नहीं है. लेकिन शायद लोगों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण यह चुनाव है. कुछ जिलों में चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारियों की मौत भी कोरोना के चलते हुई है, लेकिन अभी भी फोकस इस चुनाव को सकुशल संपन्न कराने पर है.

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