'दोनों हमारे लिए..', जगदगुरू रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज विवाद में अभिनव अरोड़ा की एंट्री, जानें- क्या कहा?
Abhinav Arora news: जगदगुरू रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज के बीच विवाद पर बाल कथावाचक अभिनव अरोड़ा ने कहा कि संतों में अगर कोई मतभेद होता है तो वो क्षणिक है. दोनों मेरे लिए तीर्थ समान है.

जगदगुरू रामभद्राचार्य ने वृंदावन के संत प्रेमानंद जी महाराज को संस्कृत बोलने की चुनौती दी, जिसके बाद इसे लेकर साधु संतों में बहस छिड़ गई है. इस पूरे विवाद पर अब बाल कथावाचक अभिनव अरोड़ा ने भी प्रतिक्रिया दी और कहा कि अगर संतों में कोई मतभेद दिखाई दे वो क्षणिक होता है. दोनों ही हमारे लिए तीर्थ है.
बाल कथावाचक अभिनव अरोड़ा ने एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में ये बात कही. उन्होंने कहा कि "रामभद्राचार्य जी हों या प्रेमानंद जी महाराज, दोनों ही हमारे लिए चलते फिरते तीर्थ हैं. स्वामी तुलसीदास जी ने स्वयं कहा कि अगर संतों में कभी मतभेद दिखाई दे तो समझ लीजिए कि ये क्षणिक भर है. उनका शाश्वत संदेश प्रेम भक्ति और लोक कल्याण ही है."
विवाद पर बोले बाल कथावाचक अभिनव अरोड़ा
अभिनव अरोड़ा ने कहा कि "मैं कौन होता हूं संतों के बारे में कुछ कहने वाला. मैं तो स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज और स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के श्री चरणों में दंडवत् होकर प्रणाम करता हूं.
मैं बहुत छोटा हूं किसी भी महापुरुष पर कुछ कहने के लिए. लेकिन, अपने नन्हें अनुभव के साथ मैं ये कह सकता हूं कि स्वामी रामभद्राचार्य जी को देखो तो मुझे भगवान श्री राम के दर्शन होते हैं और श्री प्रेमानंद महाराज की वाणी और मुस्कान में मुझे राधा रानी के दर्शन होते हैं."
जगदगुरू रामभद्राचार्य ने बीते वर्ष एक कार्यक्रम के दौरान अभिनव अरोड़ा को मूर्ख कहा था, इस पर बाल कथावाचक ने कहा कि "उन्होंने मुझे मूर्ख कहा था. लेकिन अभी दो महीने पहले ही जब दिल्ली में आए थे तब मैं उनके दर्शन करने गया था तो उन्होंने मुझे खूब लाड़ प्यार दिया और मुझे अपने हाथों से लड्डू भी खिलाए"
मैं कहता हूं कि संत तो मतवाले होते हैं. वो मुझसे गुस्सा थे लेकिन उन्होंने मुझे ये भी कहा कि संतों में कभी द्वेष नहीं होता.
रामभद्राचार्य के इस बयान पर बवाल
बता दें कि जगदगुरू रामभद्राचार्य ने एक पॉडकास्ट में प्रेमानंद जी महाराज को संस्कृत बोलने की चुनौती दी थी. उन्होंने कहा कि प्रेमानंद महाराज न तो विद्वान है और न ही चमत्कारी हैं. वो उनके सामने एक बालक के समान है. अगर उनमें क्षमता है तो वो उनके संस्कृत के श्लोक का अर्थ बताएं तब मैं उन्हें चमत्कारिक मानूंगा.
हालांकि बाद में रामभद्राचार्य ने कहा कि उन्होंने प्रेमानंद जी पर कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की है. वो उनके पुत्र के समान है.
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