पीलीभीत के 23 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गांव बदहाली का शिकार, प्रशासन भी नहीं लेता सुध
हम आजादी का 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं.लेकिन आज पीलीभीत का एक गांव सरकार और प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है. इस गांव से 23 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं.

पीलीभीत: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में अकेला एक ऐसा गांव है, जहां 23 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी की लड़ाई में शामिल होकर अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेकर देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई है. यही नहीं, आजादी की इस लड़ाई में काकोरी कांड के समय पीलीभीत के चार स्वंत्रता सग्राम सेनानी अग्रेजों से लोहा लेते समय शहीद भी हुए. जिसमे रोशन सिंह, दामोदर दास, सहित संघ के मंडल कमांडर कहे जाने वाले कमांडर राम स्वरूप ने अपने प्राण न्योछावर कर देश की रक्षा की थी. लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि हमारे अकेले गांव में करीब 23 स्वंत्रता सेनानी थे. जिन्होंने देश को आजाद करने में अहम योगदान दिया. उसी गांव की हालत आज आजादी के बाद से बद से बदतर है. जिस पर सरकार से लेकर जिला प्रशासन अब कभी झांकने नहीं आते.
भगत सिंह से लेकर महात्मा गांधी के साथ रहे
बीसलपुर तहसील देवहा किनारे स्थित खांडेपुर गांव की कहानी. यहां 23 स्वतंत्रता सग्राम सेनानियों ने जन्म लेकर देश की आजादी में अग्रेजों से लोहा लेकर उन्हें खदेड़ने का काम किया. गांव की हकीकत खुद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे राम स्वरूप के पौत्र शरद पाल ने एबीपी गंगा से खास बातचीत में बताया कि उनके बाबा राम स्वरूप आजादी से पूर्व सन् 1942 में देश के वीर क्रांतिकारियों सरदार भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल सहित गांधी जी के साथ काकोरी कांड को लेकर अहम रणनीति तैयार कर अंग्रेजों से लोहा लेते हुए यहां बड़ी जंगलों के घास में घाट किनारे बम बनाकर डाक भेजने की जिम्मेदारी अहम पहरे के वावजूद भी देश हित मे काम किया. लेकिन क्रांतिकारियों के साथ रणनीति की सूचना के बाद संग्राम सेनानियों को अग्रेजों की लाठियां ख़ाकर जेल भी जाना पड़ा. लेकिन आजादी के 73 साल पूरे होने के वावजूद भी आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गांव में आज भी न तो किसी सेवाओं का लाभ दिया गया और न ही स्वतंत्रता दिवस पर उनके गांव में जनप्रतिनिधि व जिला प्रशासन के कोई आला अफसर सुध लेते. ऐसे में ग्रामीणों का आरोप है कि पूरे देश में पीलीभीत का खांडेपुर गांव जो 23 स्वंत्रता संग्राम सेनानियों के अहम किरदार के लिए जाना जाता है,, वहां की पहचान आज खोती जा रही है.
प्रशासन की उपेक्षा
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों से जब एबीपी गंगा ने बात की तो उनका साफ तौर पर कहना है कि क्रांतिकारियों के साथ देश की आजादी की लड़ाई में यहां के वीर सपूतों का नाम केवल किताबों और गांधी चबूतरे में दबे कागजातों में दफन होकर रह गया. जिसके चलते आज सेनानियों का गांव अपनी पहचान खोता जा रहा है. न तो यहां जन प्रतिनिधि और न ही कोई प्रशासनिक अफसर ध्वजारोहण करने तक नहीं आते. गांव की धरोहर को संजोए शरद पाल गांव के नए पीढ़ी के बच्चों को आजादी से जुड़ा इतिहास बताकर युवाओं से इस रहस्य को सँभाल कर रखने की बात कहकर प्रयास करते जरूर नजर आये. जिन्होंने सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के समय की कुछ क्रांतिकारियों के साथ बैठक, सहित उनकी यादों को संजोए रखा है. अन्यथा आजादी की अहम भूमिका में शामिल इस गांव में शहीदों की याद से लेकर आजादी के युद्ध में लोहा लेने वाले सेनानियों की याद में आज तक कोई स्मृति चिन्ह व पार्क का जीर्णोद्धार नहीं किया गया, जिससे गांव की पहचान बच सके.
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Source: IOCL






















