Jammu Kashmir: टेरर लिंक में बर्खास्त हुए सरकारी कर्मचारी तो बोले सीएम उमर अब्दुल्ला, 'उन्हें कम से कम...'
Jammu Kashmir News: जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों का निष्कासन तब होना चाहिए था जब उनके खिलाफ सबूत मौजूद हों.

Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शनिवार को कथित टेरर लिंक का हवाला देकर एक पुलिस कॉन्स्टेबल, स्कूल टीचर और एक वन विभाग के कर्मचारी को नौकरी से हटा दिया. इनकी पहचान फिरदौस अहमद बट, मोहम्मद अशरफ बट और निसार अहमद खान के रूप में हुई है.
इनमें से निसार खान को एक मामले में गिरफ्तार कर 2000 में बरी कर दिया गया था. जबकि टेरर फंडिंग के केस में वह 2022 से जेल में है. अधिकारियों ने बताया कि तीनों सरकारी कर्मचारियों को तब नौकरी से निकाला गया जब उनके आतंकी लिंक होने की पुष्टि जांच एजेंसियों ने की थी. अब इस फैसले पर जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को खुद को बेगुनाह साबित करने का एक मौका दिया जाना चाहिए.
उमर ने उठाया फैसले पर सवाल
अब्दुल्ला ने कहा कि उचित कार्रवाई तभी करनी चाहिए जब उनके खिलाफ सबूत हों और तब जब उन्हें अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत साबित करने का मौका मिला हो और वे ना कर पाए हों.
फिरदौस पर लगे यह आरोप
फिरदौस बट 2005 में स्पेशल पुलिस ऑफिसर नियुक्त हुआ था और 2011 में कॉन्स्टेबल बना था. उसे जम्मू कश्मीर पुलिस के इलेक्ट्रॉनिक सर्वेलांस यूनिट में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई थी. सुरक्षा बलों का आरोप है कि वह एलईटी के लिए काम करता था और क्लासिफाइड दस्तावेज शेयर किए थे. निसार अहमद खान की नियुक्ति 1996 में वन विभाग में हेल्पर के तौर पर हुई थी. उस पर हिज्बुल मुजाहिदीन से संपर्क रखने के आरोप लगे थे.
तब जब 2000 में तत्कालीन मंत्री गुलाम हसन बट और दो अन्य पुलिस कर्मियों की हत्या कर दी गई थी. निसार के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई थी लेकिन उसे बरी कर दिया गया था. मोहम्मद अशरफ बट रियासी का रहने वाला है. सुरक्षा बलों ने आरोप लगाया था कि वह लश्कर-ए-तैयबा का ओवरग्राउंड वर्कर है.
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Source: IOCL





















