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Chhattisgarh: जीने के लिए संघर्ष करने को मजबूर पंडो जनजाति, पीने के पानी से लेकर बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा को तरसे लोग

Pando Janjati Chhattisgarh: पंडो जनजाति अभी तक बुनियादी सुविधाओं को लेकर तरस रही है. लोग लोगों को सड़क, बिजली, पेयजल सहित स्कूल व स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही है.

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के बिहारपुर क्षेत्र में 25 पंड़ों परिवार बड़ी परेशानी का सामना कर रहे है. रामगढ़ पंचायत के तेलईपाठ के 25 पंड़ो परिवार गांव छोड़कर 10 सालों से पहाड़ से नीचे सड़क किनारे जंगल में रहने लगे है. ताकि पहाड़ के नीचे अफसर बुनियादी सुविधाएं पहुंचा सकें, लेकिन अब तक पंडो जनजाति के इन लोगों को बिजली स्वास्थ्य स्कूल नहीं मिल पाया है. ये लोग अभी भी रेडिया नदी में रेत को खोदकर वहां से पानी निकालकर पीते हैं. काफी मेहनत करने के बाद भी इन्हें साफ पानी नहीं मिल पाता.

राशन लेने लेने के लिए तय करते है 4 किमी की दूरी
ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें राशन लेने 20 किमी पहाड़ी रास्ते से पैदल चलना पड़ता था, तो वे पहाड़ के नीचे आकर 2013 में सड़क किनारे बस गए हैं और अब यहीं खेती बाड़ी करते हैं, अब यहां से राशन दुकान की दूरी 4 किमी है, मूल सुविधा को लेकर इसकी शिकायत अफसरों से हुई, लेकिन जांच के नाम पर उन्हें गुमराह किया जा रहा है. पंडो जनजाति के इन लोगों का मांग है कि उनके नवीन बस्ती में एक हैंडपंप लगवाया जाए और बिजली भी पहुंचाई जाए.

दूषित जल से कुपोषित हुए बच्चे
पंडो जनजाति के यहां 30 से अधिक बच्चे हैं, जो यहां स्कूल नहीं होने के कारण नहीं पढ़ पा रहे हैं. इसमें से अधिकतर बच्चे कुपोषित हो गए हैं. महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच भी नहीं हो रही है. जबकि गर्भवती महिलाओं को पूरक पोषण आहार तक नहीं मिलता. गर्मी हो या बरसात पेयजल के लिए नदी-नाले ही सहारा बने हुए है. पण्डो परिवार नदी का दूषित जल पीने को मजबूर हैं, जिससे जल जनित रोगों का खतरा भी बना रहता है.

अभिकरण बना, फिर भी पंडो का विकास नहीं
सूरजपुर जिले में पंडो विकास के लिए पंडो विकास अभिकरण बना हुआ है. जिले में स्थित पंडोनगर में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी आए थे. उन्होंने पंडो जनजाति के लोगों के विकास के लिए इस जनजाति को गोद लिया था, लेकिन इसके बाद भी जिले में पंडो जनजाति का जमीनी स्तर पर विकास नहीं हुआ. पंडो नगर में आज भी वह भवन है, जहां राष्ट्रपति रुके थे, जिसे अब राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना जाता है.

गर्मी के मौसम में गहरा जाता है जल संकट
अप्रैल-मई का महीना शुरू होने के साथ ही वनांचल क्षेत्र में पेयजल संकट गहराने लगता है. न तो लोगों को भीषण गर्मी से राहत मिल पाती है और न ही पेयजल संकट से ही मुक्ति मिल पाती है. जिससे वहां निवास करने वाले पंडो जनजाति के लोग नदी-नाले का दूषित पानी पीने के लिए मजबूर हो रहे हैं. गौरतलब है कि ग्राम पंचायत रामगढ़ के आश्रित ग्राम तेलाईपाठ में मूलभूत सुविधाओं का अभाव होने के कारण वर्ष 2011 में वहां निवास करने वाले 20-25 पण्डो परिवारों ने गांव को छोड़कर बलियारी जंगल में झुग्गी झोपड़ी बनाकर निवास करना शुरू कर दिया था, लेकिन यहां भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली. वन विभाग ने उनकी झोपड़ियों को वर्ष 2012 में तोड़ उनकों वहां से खदेड़ दिया. उसके बाद पुनः उन्होंने 2013 में जंगल की ओर रूख किया और झोपड़ी बनाकर रहने लगे.

गांव में मूलभूत सुविधाओं का है अभाव
चर्चा के दौरान एक पंडो परिवार ने बताया कि उनके गांव में सड़क, बिजली, पेयजल सहित स्कूल व स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. उनकों राशन लेने के लिए भी पहाड़ी रास्ते का सफर तय कर 20 किमी दूर जाना पड़ता था तब कहीं जाकर राशन मिल पाता है. जिससे उन्होंने तेलईपाठ गांव को छोड़ दिया और रामगढ़ के आश्रित पंचायत से छह किमी दूर बलियारी में 2011 से निवास कर रहे हैं. वहीं खेती करने के साथ मवेशियों का पालन करते हैं और तेंदूपत्ता तोड़कर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं. गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आने के कारण अब उन्हें वनों से मिलने वाला लाभ भी नहीं मिल पा रहा है.

आज तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला
गौरतलब है कि बीते वर्ष 2020-21 में प्रदेश के पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव तथा क्षेत्रीय पूर्व विधायक व संसदीय सचिव पारसनाथ राजवाड़े सहित बीजेपी के वरिष्ठ नेता व जिला प्रशासन भी इनकी समस्याओं से अनभिज्ञ नहीं है. क्षेत्र में इनकी समस्याओं को लेकर तथा इन्हें साधने समय-समय पर जनप्रतिनिधि पहुंचते रहते हैं और मूलभूत सुविधाओं का विस्तार करने आश्वासन भी देते हैं, लेकिन कोई पहल नहीं होता है. न तो आज तक शासन स्तर पर इनके लिए कोई कारगर कदम उठाया गया और न ही जिला प्रशासन की ओर से ही कोई पहल की गई है.

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