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Bastar: क्या जानकारी जुटाने के लिए बच्चों का इस्तेमाल कर रहे हैं नक्सली? जानें क्या बोले बस्तर आईजी सुंदरराज पी

Chhattisgarh News: 26 अप्रैल को दंतेवाड़ा के अरनपुर में हुए नक्सली ब्लास्ट में स्थानीय छोटे बच्चों की संलिप्तता के कयास लगाए जा रहे हैं, जिन्होंने चंदे के बहाने जवानों को करीब 5 मिनट तक रोके रखा था.

Dantewada News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलवाद के खात्मे के लिए बस्तर पुलिस के लिए नक्सलियों के गुरिल्ला युद्ध के साथ-साथ उनके सूचना तंत्र से भी निपटना काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है, अपने मजबूत सूचना तंत्र की वजह से नक्सली बस्तर में कई बड़ी नक्सली वारदातों को अंजाम दे चुके हैं, जिनमें जवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. मजबूत सूचनातंत्र के लिए नक्सली हमेशा से ही स्थानीय ग्रामीणों का इस्तेमाल करते आ रहे हैं, जिनमें युवा महिला-पुरुष के साथ गांव के छोटे बच्चे भी शामिल होते हैं.

हालांकि, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अब बंद स्कूलों को दोबारा खोले जाने से बस्तर पुलिस दावा कर रही है कि नक्सली अपने सूचनातंत्र के लिए बच्चों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, लेकिन 26 अप्रैल को दंतेवाड़ा के अरनपुर में हुए नक्सली ब्लास्ट में स्थानीय छोटे बच्चों की संलिप्तता के कयास लगाए जा रहे हैं, जिन्होंने आमा पंडुम त्योहार मनाने के लिए चंदा लेने के लिए घटनास्थल से करीब 60 मीटर पहले जवानों की गाड़ी रुकवाई थी. फिलहाल बस्तर के आईजी  इस पहलू से भी जांच करने की बात कह रहे हैं.

सूचनातंत्र के लिए बच्चों का इस्तेमाल करते हैं नक्सली
दरअसल बस्तर में नक्सल मोर्चे पर तैनात जवानों को अपने मजबूत सूचना तंत्र से नक्सली नुकसान पहुंचाते आए हैं, गांव में उनके आने जाने की जानकारी यहां तक कि उनके ऑपरेशन की जानकारी आसानी से नक्सलियों तक पहुंच जाती है, इसके लिए नक्सली स्थानीय ग्रामीणों का सूचना देने के लिए इस्तेमाल करते हैं. हालांकि इसका अंदाजा लगाया नहीं जा सकता कि कौन ग्रामीण नक्सलियों तक इतनी तेजी से सूचना पहुंचाते हैं. नक्सली गांव के मासूम बच्चों से लेकर गांव की महिला, पुरुष और बुजुर्गों को भी अपना सूत्रधार बनाते हैं.

मुठभेड़ की ज्यातार घटनाओं में सूत्रधार बनते हैं बच्चे
ज्यादातर मुठभेड़ की घटनाओं में छोटे बच्चे नक्सलियों के सूत्रधार बनते हैं, ये बच्चे जवानों के गांव में आने के दौरान फटाका फोड़कर उनका ध्यान भटकाते हैं, कई बार जवानों ने अपने ऑपरेशन के दौरान इन बच्चों को अलग-अलग गतिविधियों में देखा भी है. नक्सली अपने संगठन में इन बच्चों को बाल संघम के रूप में इस्तेमाल करते हैं और इन बच्चों के जरिए जवानों की गश्ती, उनके मूवमेंट की जानकारी लेते हैं. कुछ साल पहले नक्सली बंद के दौरान दरभा में किये गए ब्लास्ट के दौरान भी घटनास्थल के आसपास बच्चों को देखा गया था.

पुलिस पर लगातार बढ़ रहा है ग्रामीणों का विश्वास- बस्तर आईजी
इसके अलावा ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें बच्चों की संलिप्तता भी उजागर हुई है. बस्तर आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि गांव-गांव में कम्युनिटी पुलिसिंग कार्यक्रम के माध्यम से अब बच्चों और ग्रामीणों का पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ा है, पिछले सालों की तुलना में ग्रामीण अब नक्सलियों का नहीं बल्कि पुलिस का साथ दे रहे हैं.

हालांकि वर्तमान में भी नक्सलियों का सूचनातंत्र भेद पाना पुलिस के लिए काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है, क्योंकि नक्सलियों को जवानों की हर मूवमेंट और उनकी गश्ती की जानकारी अपने मजबूत सूचना तंत्र से मिल जाती है, जिस वजह से कई नक्सल ऑपरेशन फेल भी हो जाते हैं. वहीं पहले की तुलना में बाल संघम भी कमजोर हुआ है ,क्योंकि गांव गांव में दोबारा स्कूल खुल जाने से बच्चे अब नक्सलियों का साथ छोड़ पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन बाल संघम पूरी तरह से सक्रिय नहीं है इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.

अरनपुर घटना में भी देखे गए बाल संघम
हालांकि, 26 अप्रैल को अरनपुर में हुए नक्सली ब्लास्ट में घटनास्थल से 60 मीटर दूर छोटे-छोटे मासूम बच्चों के द्वारा जवानों के वाहन को रोके जाने से कयास लगाए जा रहे हैं. आशंका जताई जा रही है कि यह बच्चे नक्सलियों के बाल संघम तो नहीं थे जिन्होंने नक्सलियों के कहने पर जवानों को करीब 5 मिनट तक रोके रखा. आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि अरनपुर से दंतेवाड़ा निकलते वक्त करीब तीन जगह ग्रामीणों ने आमा पंडुम त्योहार मनाने और चंदा लेने के लिए नाका बनाया रखा था, ऐसे में जांच की जा रही है कि इनमें बच्चे या बड़े जरूर नक्सलियों के सूत्रधार हो सकते हैं, फिलहाल यह जांच का विषय है और पुलिस इस पहलू से भी घटना की जांच कर रही है.

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