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UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)
IPL 2019, BLOG: अब किस्मत नहीं काबिलियत के दम पर बनेगा आईपीएल चैंपियन
IPL 2019, BLOG: मुंबई, चेन्नई और दिल्ली की टीमों में एक और खास बात है. इन तीनों टीमों के कप्तानों ने बहुत आसान क्रिकेट खेली. यानी मैचों को ज्यादा ‘कॉम्पलीकेट’ नहीं बनाया. एक मैच में धोनी के गुस्से को छोड़ दें तो इन तीनों टीमों के कप्तानों ने बेवजह आक्रमकता नहीं दिखाई
सनराइजर्स हैदराबाद का प्लेऑफ से बाहर होना इस बात का सबूत है कि लंबे समय तक चलने वाले टूर्नामेंट में अंत तक टीमों का ‘टैलेंट’ ही बचता है. या यूं कहें कि ‘टैलेंटेड’ टीमें ही बचती हैं. इस सीजन में ओवरऑल मुंबई इंडियंस, चेन्नई सुपरकिंग्स और दिल्ली कैपिटल्स ने शानदार प्रदर्शन किया था. 5 मई को जब आखिरी लीग मैच खेला गया उसके बाद प्वाइंट टेबल में इन तीनों टीमों के खाते में 18-18 प्वाइंट्स थे. नेट रन रेट के आधार पर इन्हें पहला, दूसरा और तीसरा पायदान जरूर मिला, लेकिन सभी के खाते में 14 मैचों में से 9 मैचों में जीत दर्ज थी.
इन तीनों टीमों के मुकाबले चौथी टीम थी सनराइजर्स हैदराबाद. जिसके खाते में 14 में से सिर्फ 6 मैचों में जीत थी. कोलकाता नाइट राइडर्स और किंग्स इलेवन पंजाब के खाते में भी 12-12 प्वाइंट्स ही थे लेकिन वो नेट रन रेट के आधार पर प्लेऑफ की दौड़ से बाहर हो गईं. यहां तक कि जो रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और राजस्थान रॉयल्स लीग मुकाबलों में फिसड्डी साबित हुईं उनके खाते में भी 11-11 प्वाइंट्स थे. इन दोनों टीमों के बीच अगर मैच का नतीजा निकल गया होता तो एक और टीम के खाते में 12 प्वाइंट होते. इस सारी अंकगणित के बाद भी अगर लीग की तीन बेस्ट टीमें अब खिताब की दौड़ में हैं, तो असल मायने में यही क्रिकेट की जीत है.
टीमें क्यों जीतती हैं, खिलाड़ी क्यों नहीं
क्रिकेट ‘टीमगेम’ है यहां ज्यादातर मौकों पर टीमें जीतती हैं, खिलाड़ी नहीं. अगर हर मैच में एक-दो खिलाड़ी ही जीत तय करते रहेंगे तो मैच का रोमांच ही खत्म हो जाएगा. इस कहानी को आप ऐसे समझिए. इस सीजन में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाजों में टॉप 3 बल्लेबाज उन टीमों के नहीं हैं जो अब खिताब की रेस में हैं बल्कि उन टीमों के हैं जो टूर्नामेंट से बाहर हो चुकी हैं.
डेविड वॉर्नर ने इस सीजन में 692 रन बनाए. उनकी टीम सनराइजर्स हैदराबाद टूर्नामेंट से बाहर है. केएल राहुल ने 593 रन बनाए. उनकी टीम किंग्स इलेवन पंजाब बाहर है. कोलकाता नाइट राइडर्स के आंद्रे रसेल ने 510 रन बनाए उनकी टीम भी टूर्नामेंट से बाहर है. गेंदबाजी की भी हालत कुछ ऐसी ही है. कसिगो रबाडा को हटा दें तो टॉप 10 की फेहरिस्त में अगले 9 गेंदबाजों में से 5 गेंदबाज ऐसे हैं, जिनकी टीमें टूर्नामेंट से बाहर हो चुकी हैं.
यानी गेंदबाजी और बल्लेबाजी में इन खिलाड़ियों की जीत और हार का फैसला सिर्फ कुछ खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर ही टिका रहा. जब वो खिलाड़ी चले तो जीत मिली, वरना हार. जबकि खिताब की रेस में जो टीमें बनी हुई हैं उनके खिलाड़ी भले ही टॉप 10 बल्लेबाज या टॉप 10 गेंदबाजों की लिस्ट में ना हों, लेकिन उन्होंने मैच की जरूरत के लिहाज से बेहतर संतुलित प्रदर्शन किया.
‘कूल’ कप्तान भी रहे ज्यादा फायदे में
मुंबई, चेन्नई और दिल्ली की टीमों में एक और खास बात है. इन तीनों टीमों के कप्तानों ने बहुत आसान क्रिकेट खेली. यानी मैचों को ज्यादा ‘कॉम्पलीकेट’ नहीं बनाया. एक मैच में धोनी के गुस्से को छोड़ दें तो इन तीनों टीमों के कप्तानों ने बेवजह आक्रमकता नहीं दिखाई. रोहित शर्मा और श्रेयस अय्यर क्रिकेट को गेंद और बल्ले के बीच की लड़ाई मानकर ही मैदान में उतरे. प्लेइंग-11 में जरूरत से ज्यादा प्रयोग नहीं किए. रणनीतियों को स्पष्ट रखा.
इससे उलट बतौर कप्तान आर अश्विन, दिनेश कार्तिक या विराट कोहली के बर्ताव को याद कर लीजिए. आर अश्विन बीच मैच में कई बार अंपायर से बहस करते दिखे, दिनेश कार्तिक तो ‘स्ट्रेटजिक टाइम आउट’ के दौरान ही अपनी टीम पर बिफर गए. विराट तो खैर आक्रामक रहते ही हैं. लेकिन तीनों ही टीमों को इस बर्ताव का कोई फायदा नहीं मिला. अगले साल के लिए इन टीमों के लिए सबक भी यही है कि जैसे खाने की थाली में अचार चटनी सिर्फ जायके को बढ़ाते हैं, वैसे ही ‘अग्रेसिवनेस’ और ‘एक्सपेरिमेंट’ जायके को बढ़ाते भर हैं असली लड़ाई गेंद और बल्ले की ही है.
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