World Most Dangerous Weapon: जंग का सबसे छोटा हथियार, कैसे करता है दुश्मन पर वार, जानें इसकी ताकत
माइक्रो ड्रोन अब सिर्फ जासूसी का साधन नहीं बल्कि आधुनिक युद्ध की एक नई परिभाषा बन चुके हैं. जहां पहले युद्ध हथियार-टैंकों से युद्ध लड़े जाते थे, अब वहां छोटे-से ड्रोन पूरे मिशन को अंजाम दे सकते हैं.

आज का युद्ध केवल बंदूक या मिसाइलों से नहीं लड़ा जाता. अब लड़ाई का एक नया हथियार है माइक्रो ड्रोन. यह इतने छोटे होते हैं कि हथेली में समा जाए, लेकिन इनकी ताकत और तकनीक बड़े-बड़े हथियारों को चुनौती दे रही है. माइक्रो ड्रोन एक छोटा Unmanned Aerial Vehicle (UAV) यानी बिना पायलट का विमान होता है. इसका वजन कुछ सौ ग्राम से लेकर दो किलो तक होता है. यह कैमरे, सेंसर और छोटे मोटरों से लैस होता है, जिससे यह न केवल उड़ान भर सकता है बल्कि ऊंचाई पर जाकर निगरानी भी कर सकता है.
इन्हें खासतौर पर जासूसी, निगरानी और खुफिया मिशन के लिए तैयार किया जाता है. ये दुश्मन की सीमा में जाकर वीडियो रिकॉर्डिंग, लोकेशन ट्रैकिंग और अन्य महत्वपूर्ण डेटा इकट्ठा करते हैं.
सैकड़ों माइक्रो ड्रोन बनते हैं एक सेना
कई माइक्रो ड्रोन जब एक साथ झुंड बनाकर काम करते हैं तो उन्हें स्वार्म ड्रोन कहा जाता है. ये एक साथ दुश्मन के ठिकानों पर हमला कर सकते हैं या इलाके की छोटी-सी-छोटी जानकारी जुटा सकते हैं. इनका छोटा आकार इन्हें रडार या सामान्य डिफेंस सिस्टम से लगभग अदृश्य बना देता है, इसलिए इन्हें भविष्य के युद्धों का सबसे खतरनाक हथियार माना जा रहा है.
युद्ध के मैदान में माइक्रो ड्रोन की भूमिका
दुनिया के लगभग सभी बड़े देश अमेरिका, चीन, रूस और इजरायल अब माइक्रो ड्रोन को अपनी सैन्य रणनीति का हिस्सा बना चुके हैं. पहले इन्हें केवल निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब ये हमले में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं. हाल ही में रूस ने यूक्रेन पर ड्रोन हमला किया, जिसमें बिजली ग्रिड को निशाना बनाया गया और पूरा क्षेत्र अंधेरे में डूब गया. ऐसे झुंड वाले हमलों को “डेथ स्वार्म (Death Swarm)” कहा जाता है क्योंकि इनसे बचाव लगभग असंभव होता है.
स्वार्म ड्रोन कैसे काम करते हैं?
स्वार्म ड्रोन का संचालन पूरी तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और कंप्यूटर नेटवर्क के जरिए होता है. हर ड्रोन एक दूसरे से जुड़ा होता है, जिससे यह झुंड एक जीवित सिस्टम की तरह काम करता है. पहले मिशन की योजना बनाई जाती है, फिर सभी ड्रोन को एक साथ उड़ाया जाता है. उड़ान के बाद ये अपने सेंसर और कैमरे से लक्ष्य पहचानते हैं और जरूरत के अनुसार या तो हमला करते हैं या जानकारी वापस भेज देते हैं. अगर किसी मिशन में एक ड्रोन नष्ट हो जाए तो बाकी ड्रोन बिना रुकावट मिशन जारी रखते हैं. यही वजह है कि स्वार्म तकनीक आने वाले युद्धों की दिशा तय कर रही है.
माइक्रो ड्रोन से सुरक्षा कैसे की जाती है
इन छोटे ड्रोन से निपटना आसान नहीं है क्योंकि ये तेज उड़ान भरते हैं और बहुत छोटे होते हैं. फिर भी कई देशों ने इन्हें रोकने के लिए नई तकनीकें अपनाई हैं.
कुछ प्रमुख उपाय, जो इस प्रकार हैं.
- रेडियो जामिंग: ड्रोन के सिग्नल को ब्लॉक कर उसे गिरा दिया जाता है.
- एंटी ड्रोन गन: ये खास हथियार होते हैं जो ड्रोन को निशाना बनाकर निष्क्रिय कर देते हैं.
- नेट ड्रोन: ऐसे ड्रोन जो जाल फेंककर दुश्मन ड्रोन को पकड़ लेते हैं.
- AI सर्विलांस कैमरे: ये कैमरे माइक्रो ड्रोन की गतिविधि पहचानकर सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर देते हैं.
- भारत समेत कई देशों ने ड्रोन संचालन के लिए रजिस्ट्रेशन और नियंत्रण नीति लागू की है ताकि इनका दुरुपयोग न हो सके.
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