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मजदूरों को नहीं पता कैसे होगी ट्रेन की टिकट बुकिंग, पुलिस ने वापस भेजा तो पैदल ही बिहार चल पड़े
पुलिसकर्मियों ने उन सभी लोगों को जिनके पास टिकट नहीं था कॉलेज के बाहर खदेड़ दिया. साथ ही साथ अनाउंसमेंट की गई कि जिनके भी पास मैसेज नहीं आया वो वापस लौट जाएं.
![मजदूरों को नहीं पता कैसे होगी ट्रेन की टिकट बुकिंग, पुलिस ने वापस भेजा तो पैदल ही बिहार चल पड़े Workers do not know ticket booking process of train labour started walking towards Bihar ann मजदूरों को नहीं पता कैसे होगी ट्रेन की टिकट बुकिंग, पुलिस ने वापस भेजा तो पैदल ही बिहार चल पड़े](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2020/05/17020218/labour2.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से आदेश जारी हुआ है कि राज्य की सीमा में प्रवेश करने वाले हर मजदूर की मदद की जाएगी. चाहे जरूरत खाना पानी की हो या फिर जानकारी की. सरकार के इस आदेश को प्रशासन कितनी गंभीरता से ले रहा है ये जानने के लिए हमने गौतमबुद्ध नगर के दादरी में मजदूरों का हाल जानना चाहा.
बता दें कि आज दादरी से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलीं. ये ट्रेनें बिहारी श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए आज चलाई गईं. दादरी में स्थित अग्रसेन कॉलेज में मजदूरों को रोका गया. यहां पर काफी संख्या में मजदूर ट्रेन चलने की खबर सुनकर जुट गए. इनमें से ज्यादातर को पता ही नहीं था कि ट्रेन की बुकिंग के लिए प्रक्रिया क्या है. जिनको पता था उनके पास ऐसे स्मार्टफोन नहीं थे जिनसे की ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया जा सके. कई लोगों ने रजिस्ट्रेशन किया भी था तो मैसेज आया ही नहीं. जनसुनवाई पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के बाद आया मैसेज ही बतौर टिकट मान्य होगा.
पुलिसकर्मियों ने उन सभी लोगों को जिनके पास टिकट नहीं था कॉलेज के बाहर खदेड़ दिया. साथ ही साथ अनाउंसमेंट की गई कि जिनके भी पास मैसेज नहीं आया वो वापस लौट जाएं. मजदूरों का कहना है कि मकान मालिक ने घर से बाहर निकाल दिया है. पैसा है नहीं, 20 किलोमीटर चलकर यहां आए. अब पुलिस वाले कह रहे वापस जाओ. हम वापस नहीं जाएंगे. हम पैदल ही बिहार अपने गांव जा रहे.
ऐसे मजदूर बड़ी संख्या में थे जो कि पैदल ही अपने गांवों की तरफ निकल गए. इन मजदूरों को न खाना दिया गया न पानी. जिन मजदूरों के टिकट आ भी गए थे. उनके भी खाने पीने का इंतजाम प्रशासन की तरफ से नहीं हुआ. महिलाएं छोटे छोटे बच्चों को लेकर बैठी अपनी बारी का इंतजार करती रही थी. इनका कहना है कि सुबह से आए हुए हैं और किसी ने पूछा नहीं. खुद ही व्यवस्था करनी पड़ी. बच्चा भी भूख से रो रहा है.
ऐसे में एक बात तो साफ हो जाती है कि मजदूरों को लेकर सरकारे चाहे जो भी बात कर रही हो मगर धरातल पर मजदूरों को लेकर प्रशासनिक संवेदनहीनता ही नजर आ रही है.
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