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उन्नाव कांड: जानिए पीड़िता के चाचा की कहानी, एक किसान जिसने विधायक के खिलाफ उठाई आवाज

उन्नाव गैंगरेप पीड़िता के चाचा अब जेल की सलाखों के पीछे हैं लेकिन एक वक्त था जब वो उन्नाव के माखी गांव में रहते थे और प्रधानी का चुनाव लड़ने की सोच रहे थे.

नई दिल्ली: इंसाफ मांगना किस कदर महंगा हो सकता है ये बात उन्नाव गैंगरेप पीड़िता के चाचा से बेहतर शायद ही कोई जानता हो. अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए रायबरेली जेल से उन्हें पेरोल दिया गया था. जेल से सीधे उन्हें शमशान ले जाया गया और फिर वापस ले जाया गया. इस बीच उन्होंने कहा,"कुलदीप सिंह सेंगर ने मेरे पूरे परिवार को खत्म कर दिया... अब सिर्फ मैं बचा हूं. लेकिन मैं लड़ूंगा और उसे सजा दिलाउंगा." ये बात कहते हुए उनकी आखों में दुख और गुस्सा दोनों ही था.

एक वक्त था जब उनकी जिंदगी भी खुशहाल थी. वे एक साधारण किसान थे और खेतीबाड़ी करके अपना जीवन यापन करते थे. फिर इस खुशहाली को बाहुबली की नजर लग गई. उन्नाव के माखी गांव में एक साल पहले जब एबीपी न्यूज़ की टीम गई थी तो लोगों ने जो बातें कहीं थीं वो हैरान करने वाली थीं. लोगों ने कैमरे पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया था. जैसे तैसे कैमरा छुपा कर बात की गई तो लोगों ने उस डर को बयान किया जिसको वो सालों से झेल रहे थे.

लोगों ने गांव में 'रावणराज' बताया और कहा कि जैसे फिल्मों में विलेन के आ जाने से दरवाजे बंद हो जाते हैं वही हाल है यहां भी. वो (पीड़िता का चाचा) मजबूरी में सनी देओल बना है. पीड़िता का चाचा लंबे वक्त से बाहुबली को देख रहा था. फिर एक दिन उसने प्रधानी का चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया. शायद ये बात बाहुबली और उसके साथियों को पसंद नहीं आई. इसके बाद जो हुआ उसे दुनिया ने देखा.

उस वक्त एबीपी न्यूज़ के कैमरे में क्या कुछ रिकॉर्ड हुआ था देख लीजिए-

ऐसे शुरु हुआ था पूरा मामला

पीड़िता के घर शशि सिंह नाम की एक महिला पहुंची थी, उसने पीड़िता को काम दिलाने के बहाने विधायक से मिलाया था. आरोप है कि विधायक ने अपने भाई के साथ मिल कर गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया. इसके बाद पीड़िता पुलिस के पास पहुंची तो वहां से उसे भगा दिया गया. जब कहीं किसी स्तर पर सुनवाई नहीं हुई तो पीड़ित परिवार ने कोर्ट के माध्यम से मुकदमा दर्ज करा दिया. इसी बात से नाराज विधायक का भाई अपने गार्डों के साथ पीड़ित के घर पहुंचा और पीड़िता के पिता को जम कर पीटा.

शिकायत पर आई पुलिस ने पीड़िता के पिता को ही शांतिभंग के आरोपों में जेल की सलाखों की पीछे कर दिया. अब लड़की का सब्र जवाब दे गया और उसने सीएम आवास पर पहुंच कर आत्महत्या करने का प्रयास किया. मामला मीडिया की सुर्खियां बना तो जांच शुरु हुई. पुलिस के अधिकारियों से सवाल हुए तो जवाब देने पड़े. उधर पिता ने जेल में दम तोड़ दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि पिटाई के कारण आंतें फट गई थीं.

खत्म होता गया परिवार

सबसे पहले पीड़िता के पिता ने दम तोड़ा. चाचा को कई तरह के मामलों में जेल जाना पड़ा. किसानी खत्म होती रही और जोड़े हुए पैसे पैरवी में खत्म होते रहे. विधायक तो गिरफ्तार होकर जेल चले गए लेकिन उनके समर्थक आकर समझौते और केस वापस लेने का दवाब बनाते रहे. सरकार ने पुलिस सुरक्षा तो दे दी लेकिन इस सुरक्षा में भी परिवार के मन में असुरक्षा का भाव बढ़ता रहा. हाल ये था कि एक साल में 33 बार पुलिस को शिकायत कर जान का खतरा बताना पड़ा.

बाहुबली का दबदबा कहिए या फिर सिस्टम का नकारापन, 33 शिकायतों में से पुलिस के एक भी शिकायत गंभीर नहीं लगी. पीड़ित ने डीजीपी से लेकर चीफ जस्टिस तक को चिट्ठियां भेजीं लेकिन वक्त पर उन तक ये चिट्ठियां पहुंची ही नहीं और फिर एक दिन जब पीड़िता अपनी चाची और मौसी के साथ चाचा से मिलने रायबरेली जेल जा रही थी तो एक ट्रक ने इंसाफ की तमन्ना को ऐसी टक्कर मारी कि सब चूर-चूर हो गया.

पीड़िता की चाची और मौसी की मौत हो गई. पीड़िता और उसका वकील वेंटीलेटर पर है. कोई नहीं जानता कि वे लोग अस्पताल से लौट भी पाएंगे या नहीं. पूरा परिवार आखिर किस चीज की सजा भगत रहा है? इंसाफ मागने की? क्या वाकई देश में इंसाफ मांगना इतना ही महंगा है? अब पीड़ित परिवार में से कौन लड़ेगा इंसाफ के लिए? पीड़ित की मां जिसके पास ना तो कोई जानकारी है और ना ही पैसा या फिर पीड़ित का चाचा जो अपने भाई, पत्नी और साली को खो चुका है और खुद जेल की सलाखों के पीछे है?

इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी माननीय विधायक, अभी भी विधायक ही हैं, और क्या पता जब पैरवी करने वाले ही ना बचें तो एक दिन सबूतों के आभाव में उन्हें रिहा भी कर दिया जाए.

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