सपा-बसपा गठबंधन से मायावती को हुआ बंपर फायदा, अखिलेश के हाथ कुछ नहीं लगा
एसपी और बीएसपी का गठबंधन टूट गया. लेकिन इस गठबंधन से किसको फायदा हुआ? लगता है जैसे गठबंधन से अखिलेश यादव के हाथ कुछ नहीं लगा.

लखनऊ: बीएसपी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन टूट गया है. मायावती ने तो अखिलेश यादव से सारे नाते रिश्ते ख़त्म कर लिए. उन्होंने फिर कभी साथ चुनाव न लड़ने की क़सम खाई है. अखिलेश यादव अभी विदेश में हैं और मायावती के फ़ैसले पर ख़ामोश हैं. दोनों की राजनैतिक दोस्ती बस छह महीने ही चल पाई. अब जब दोनों के बीच सब कुछ ख़त्म हो गया है. तो राजनैतिक गलियारों में इस बात की चर्चा तेज़ है कि आख़िर किसने क्या खोया? और क्या पाया? एसपी-बीएसपी के गठबंधन से किसको फ़ायदा हुआ और कौन घाटे में रहा?
अखि़लेश यादव और मायावती के गठबंधन में फ़ायदा सिर्फ़ और सिर्फ़ मायावती का ही हुआ. जिस बीएसपी का पिछले चुनाव में खाता तक नहीं खुला था. उसी बीएसपी के अब लोकसभा में 10 सांसद हैं. पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी को 5 सीटें मिली थीं. इस बार भी यही आँकड़ा रहा.
अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव तो चुनाव जीत गए. लेकिन परिवार के तीन सदस्य चुनाव हार गए. अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज से चुनाव हार गईं. एसपी अध्यक्ष के दोनों चचेरे भाई धर्मेन्द्र और अक्षय यादव भी अपनी सीट नहीं बचा पाए.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को 19.77% वोट मिले थे. इस बार थोड़ा कम यानी 19.26% मत मिले. मोदी लहर में भी मायावती की पार्टी घाटे में नहीं रही. लेकिन गठबंधन के बावजूद समाजवादी पार्टी का बैंड बज गया. पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को 22.35 फ़ीसदी वोट मिले. इस बार घट कर ये 17.96 प्रतिशत रह गया. समाजवादी पार्टी को तीन फ़ीसदी से भी अधिक वोट का नुक़सान हुआ.
पिछले पाँच सालों से बीएसपी यूपी में तीसरे नंबर की पार्टी थी. लेकिन समाजावादी पार्टी का साथ लेकर वो अब दूसरे नंबर पर पहुँच गई है. 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन बीएसपी से बेहतर था.
गठबंधन के बाद मायावती की छवि एक ताक़तवर और अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाली नेता की बनी है. दूसरी तरफ़ अखिलेश यादव एक सीधे सादे लेकिन कमजोर नेता नज़र आने लगे हैं. सियासत में संकेत और टाइमिंग का बड़ा महत्व रहा है. इस मामले में मायावती हर लिहाज़ से अखिलेश यादव पर भारी पड़ी हैं.
मायावती के हर फ़ैसले के पीछे उनके फ़ायदे की राजनीति होती है. उनका ये कहना कि अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि बीएसपी अधिक मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, इसके भी मायने हैं. पिछले कई सालों से समाजवादी पार्टी मुसलमानों की पहली पसंद रही है. लेकिन मायावती अब इस रिश्ते को तोड़ने की तैयारी में हैं.
उन्होंने लोकसभा चुनाव में 6 और समाजवादी पार्टी ने 4 मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया. लेकिन मैसेज ये गया कि अकेले मायावती ही मुसलमानों के बारे में सोच रही हैं. अमरोहा के सांसद दानिश अली को लोकसभा में पार्टी का नेता बना कर उन्होंने एक और दाँव चल दिया.
मायावती बड़ी चालाकी से धीरे धीरे बीएसपी के लिए नया सामाजिक समीकरण तलाश रही हैं. वे दलित, मुस्लिम, ब्राह्मण और गैर यादव पिछड़ी जातियों को गोलबंद करने की जुगत में हैं. इसीलिए तो उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव के कारण अति पिछड़ी बिरादरी ने गठबंधन को वोट नहीं दिया.
मायावती की कोशिश समाजवादी पार्टी को अब सिर्फ़ यादवों की पार्टी बताने और समझाने की है. इसीलिए तो गठबंधन तोड़ने से पहले उन्होंने कहा कि शिवपाल यादव के कारण एसपी को यादवों का पूरा वोट भी नहीं मिला. अगले कुछ महीनों में यूपी में विधानसभा की 12 सीटों पर उप चुनाव होने हैं.
मायावती की कोशिश हर हाल में समाजवादी पार्टी से आगे रहने की है. यूपी में बीजेपी हर लिहाज़ से नंबर 1 की पार्टी है. मायावती इस तरह से रणनीति बना रही हैं कि वोटरों को ये लगे कि बीजेपी से सिर्फ़ बीएसपी ही मुक़ाबला कर सकती है. उनकी नज़र तो तीन साल बाद होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव पर है.
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