फेसबुक अफेयर: खेल-खेल में जुड़ गए दिल

फेसबुक अफेयर: खेल-खेल में जुड़ गए दिल
फेसबुक अफेयर
प्राची गुप्ता
अनुवाद - सोनाली मिश्रा

'हे भगवान! उसे फैशन की एकदम अक्ल नहीं हैं, गुलगुला सा, बड़ाबड़ा, मैच्योर, मेरे टाइप का तो एकदम ही नहीं' ईशा ने अपने साथी प्लेमेट की फेसबुक प्रोफाइल देखकर कहा, जिसने अभी अभी उसे मेसेज भेजा था. 'अरे, तुम बहुत ही क्यूट हो,' तरुण से आए हुए संदेश को उसने पढ़ा था.
'माफ करना, तुमसे तो कभी बात न होगी, दोस्त,' उसने उसकी प्रोफ़ाइल पिक्चर से कहा और ऑफ़लाइन हो गई. उसने एक गहरी सांस ली और रसोई में अपनी मां की मदद करने चली गई.
ईशा दिल्ली में फ्रीलान्स इंटीरियर डिज़ाइनर के रूप में काम करती थी. उसे हेमैन नामक गेम खेलने का शौक था. जब भी वह खेल में फंस जाती थी, उसका खिलाड़ी, तरुण, उसकी मदद करने के लिए कूद जाता था. जब तक उसने हेमैन पर तरुण के साथ बात नहीं की थी और फेसबुक पर उसकी तस्वीर नहीं देखी थी, वह उसके लिए एकदम अजनबी थी. वह लगातार संदेश भेजता लेकिन उसने कभी जवाब नहीं दिया; उसे हर बार अनदेखा करती रही.
एक साल बीत गया था और ईशा ने लंबे समय तक हेमैन नहीं खेला था. बोरियत से बाहर निकल कर एक दिन वह जब फेसबुक के अपने सभी संदेश देख रही थी तो उसने अपने इनबॉक्स में पचास बिना पढ़े संदेश मिले थे - सभी तरुण के ही थे. उसने उन्हें पढ़ा और एक बार भी जवाब न देने के लिए बुरा महसूस किया. वह केवल दोस्त बनना चाहता था. अब जबाव देने में तो जेब से कुछ जाता नहीं हैं. वह अपराधबोध में घिर गई. उसने संदेश भेज दिया, मेसेज की अनदेखी के लिए माफी मांगते हुए. एक पल में, उसे एक उत्तर मिला जिसमें तरुण ने लिखा था “ठीक है, मुझे खुशी है कि आपने मैसेज किया. तो फिर दोस्त?”
'दोस्त.' उसने अपने चेहरे पर एक बड़ी मुस्कुराहट के साथ वापस मेसेज कर किया. उन्होंने बात शुरू की और कुछ दिनों के बाद, फोन नंबर भी दोनों ने अदल बदल लिए. फेसबुक-मैसेजिंग के बजाय व्हाट्सएप पर चैट करना शुरू कर दिया और जल्द ही, तरुण उसे फोन करने से रोक नहीं सका. वह टेक्स्ट से ही उसे पसंद करने लगा था और अब तो ईशा को भी उसका इंतज़ार रहने लगा था. वह सिर्फ उसकी आवाज़ सुनना और सुनना चाहता था उसके मुंह से अपना नाम. तो, उसने जब उसे कॉल किया, तो उसने फोन उठा भी लिया. उन्होंने समय का लिहाज न करते हुए पूरी रात बातें की, यह मज़ेदार था और रोमांचकारी था कि दोनों में से कोई भी कॉल को डिस्कनेक्ट करना नहीं चाहता था.
तरुण यह सुनिश्चित करना चाहता था कि उसे हर रात यह आवाज़ सुनाई दे. अगली रात उसने उसे फिर से कॉल किया. जैसे ही वे बात कर रहे थे, तरुण ने कहा, 'मैंने किसी लड़की को अपनी तरफ से प्रपोज़ नहीं किया है. तुम्हें पता है, मैं इतना हैंडसम हूं कि आज तक केवल लड़कियों ने अपनी ही तरफ से मुझे प्रपोज़ किया है.' उसने अपने बड़े अहंकार से कहा, 'अगर तुम्हें मुझसे बात करनी है तो मुझे अभी प्रपोज़ करो!” “अभी?” 'हां,' उसने ज़ोर दिया. 'मुझे नहीं पता कि कैसे प्रपोज़ करना है मैंने कभी नहीं किया है’.
'तुम्हारी मर्ज़ी,' उसने रोका और कहा कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो वह फोन काट देगी. 'मैं डर गया,' वह हंसा. 'ठीक है, मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा, लेकिन मैं तुम्हें यह कहने की बजाय इसे लिखूंगा!'
'ठीक है,' उसने कहा और फोन काट दिया. उन्होंने इंटरनेट पर एक नार्मल सा प्रपोज़ल भेजा और उसे उसके पास भेजा. इसे पढ़ने के बाद, उसने उसे कॉल किया और कहा, 'अच्छा नहीं. इसे ठीक करो!”
तरुण ने फिर से कहा 'जैसे ही मैंने पहली पहली बार मैंने तुम्हारी तस्वीर फेसबुक पर देखी, मैं तुम पर फिदा हो गया! क्या शानदार आंखें और सुन्दर मुस्कान है तुम्हारी! मैं वाकई तुमने पसंद करता हू.! क्या हम एक रिश्ते में रह सकते हैं?
'हम्म...' उसने सोचने का नाटक किया. 'ठीक है, चलो इसे एक चांस देते हैं.' 'हां?' वह बहुत खुश था. 'अरे, रुको!' उसने उसे रोका. 'इसमें कुछ सीरियस नहीं है, ठीक है? मैंने सिर्फ मस्ती के लिए हां कहा था. तुम मुझसे बहुत छोटे हो और मुझे किसी भी सीरियस रिश्ते में बंधना नहीं है! ठीक है!”
उन्होंने कहा, 'ठीक है, कोई बात नहीं!” और फिर वे और बातें करने लगे.
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(प्राची गुप्ता की कहानी का अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)
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