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शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा का ये है रूट, ISS सिर्फ 400 किलोमीटर दूर फिर क्यों पहुंचने में लगेंगे 28 घंटे

Shubhanshu Shukla Axiom-4: ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला Axiom-4 मिशन के तहत ISS की ओर रवाना हुए. यह यात्रा 28 घंटे लंबी होती है लेकिन आपको इसकी वजह पता है?

Shubhanshu Shukla Axiom-4: भारत के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने 25 जून 2025 को ऐक्सिओम मिशन-4 (Ax-4) के तहत अंतरिक्ष की ऐतिहासिक यात्रा शुरू की है. वह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की ओर रवाना हो चुके हैं. यह मिशन अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट और ड्रैगन अंतरिक्ष यान के ज़रिए लॉन्च हुआ.

लेकिन एक सवाल यह है कि जब ISS पृथ्वी से सिर्फ 400 किलोमीटर दूर है, तो फिर वहां पहुंचने में 28 घंटे क्यों लगते हैं? आइए इसका आसान जवाब समझते हैं.

अंतरिक्ष में ISS से मिलने की प्रक्रिया क्यों है जटिल?
ISS पृथ्वी की सतह से करीब 400 किलोमीटर ऊपर “लो अर्थ ऑर्बिट” में हर 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है, यानी यह लगातार 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूम रहा है.

ड्रैगन यान को सीधे ISS तक पहुंचाने के बजाय पहले उसे अपनी कक्षा में धीरे-धीरे एडजस्ट करना पड़ता है ताकि वह ISS की दिशा, ऊंचाई और रफ्तार से मेल खा सके. यह प्रक्रिया फेजिंग मैन्यूवर्स (Phasing Manoeuvres) कहलाती है, जिसमें यान के थ्रस्टर्स (इंजन) बार-बार जलाए जाते हैं ताकि कक्षा धीरे-धीरे बदली जा सके.

स्पेसएक्स का ड्रैगन यान इस दौरान 16 "Draco थ्रस्टर्स" का इस्तेमाल करता है, जो अंतरिक्ष में 90 पाउंड बल पैदा करते हैं.

डॉकिंग और सुरक्षा जांच में लगता है अतिरिक्त समय
जब ड्रैगन ISS के नज़दीक पहुंचता है, तब उसकी गति बहुत धीमी हो जाती है ताकि वह सुरक्षित तरीके से स्टेशन से जुड़ सके. यह डॉकिंग प्रक्रिया बेहद सटीक होती है क्योंकि ज़रा सी भी चूक से दुर्घटना हो सकती है.

डॉकिंग के बाद करीब 1 से 2 घंटे तक अंतरिक्ष यान और ISS के बीच दबाव की समानता और रिसाव की जांच की जाती है. तभी यान के अंदर मौजूद यात्री स्टेशन में प्रवेश कर सकते हैं.

सोयूज़ तेज क्यों और ड्रैगन धीमा क्यों?
रूसी सोयूज़ यान को ISS तक पहुंचने में सिर्फ 8 घंटे लगते हैं, क्योंकि वह दशकों पुरानी तकनीक और सटीक गणनाओं पर आधारित है. वहीं, स्पेसएक्स का ड्रैगन यान एक नई टेक्नोलॉजी है, जिसे पहली बार 2012 में मानव रहित और बाद में मानव सहित उड़ानों के लिए तैयार किया गया.

ड्रैगन के फेजिंग और डॉकिंग के लिए स्पेसएक्स अभी भी गणनाओं और मैन्यूवर्स के नए मॉडल पर काम कर रहा है, जिससे समय थोड़ा ज्यादा लग रहा है.

लॉन्च में देरी की वजह और लॉन्च विंडो की भूमिका
Ax-4 मिशन की तारीख कई बार बदली गई. मई में प्रस्तावित यह लॉन्च जून तक टल गया. वजह थी खराब मौसम, फाल्कन 9 रॉकेट में ऑक्सीजन रिसाव और ISS के रूसी हिस्से में मेंटेनेंस.

लॉन्च विंडो एक निश्चित समय होता है, जब रॉकेट को रवाना करना जरूरी होता है ताकि वह कम ईंधन और समय में ISS तक पहुंच सके. थोड़ी सी देरी भी पूरे मिशन को री-शेड्यूल कर देती है.

रॉकेट कैसे काम करता है?

  • फाल्कन 9 रॉकेट दो स्टेज में काम करता है.
  • पहला स्टेज नौ मर्लिन इंजनों से यान को वायुमंडल के बाहर पहुंचाता है और फिर पृथ्वी पर वापस लैंड कर जाता है.
  • दूसरा स्टेज, जिसमें एक मर्लिन इंजन होता है, ड्रैगन यान को उसकी कक्षा में स्थापित करता है.
  • यह दो-स्तरीय प्रक्रिया भी यात्रा को लंबा बनाती है, लेकिन यह पर्यावरण और लागत दोनों के लिए बेहतर है.

यात्रा की पूरी टाइमलाइन
लॉन्च: 25 जून 2025, दोपहर 12:01 बजे (भारतीय समयानुसार)

कक्षा में प्रवेश: लॉन्च के 15 मिनट बाद

जीरो ग्रेविटी इंडिकेटर: "जॉय" नामक छोटा हंस का खिलौना अंतरिक्ष में तैरना शुरू करेगा

फेजिंग मैन्यूवर्स: अगले 28 घंटों में यान धीरे-धीरे ISS की कक्षा में पहुंचेगा

डॉकिंग: 26 जून को शाम 4 से 10 बजे (IST) के बीच

प्रेसर और रिसाव जांच: डॉकिंग के बाद 1-2 घंटे

ISS प्रवेश: जांच के बाद शुभांशु और टीम स्टेशन में दाखिल होंगे

शुभांशु शुक्ला की भूमिका क्या है?
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला इस मिशन के पायलट हैं. वे मिशन कमांडर पेगी व्हिटसन (पूर्व नासा अंतरिक्ष यात्री) के साथ काम कर रहे हैं. उनकी जिम्मेदारियों में अंतरिक्ष यान का संचालन, सिस्टम की निगरानी और वैज्ञानिक प्रयोगों में सहायता करना शामिल है. वह ISS पर 14 दिन तक रहेंगे और 7 भारतीय और 5 अमेरिकी प्रयोग करेंगे. इसके अलावा वह योग और भारतीय संस्कृति से जुड़े विशेष सत्र भी आयोजित करेंगे.

देरी और चुनौतियां 
Ax-4 मिशन को कई बार टाला गया, कभी मौसम खराब रहा, कभी तकनीकी खराबी आई और कभी ISS के रूसी हिस्से में रखरखाव का काम हुआ. यह दिखाता है कि अंतरिक्ष मिशन कितने संवेदनशील होते हैं और हर सेकंड का मूल्य कितना ज्यादा होता है. सुरक्षा, गणना, और सटीकता- यही अंतरिक्ष की असली चुनौती है.

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