फाइजर की वैक्सीन क्या भारतीयों के लिए होगी फायदेमंद? भारत में किस आधार पर मिलेगा अप्रूवल?
एम्स के पूर्व निदेशक डॉ एम सी मिश्रा के मुताबिक, फाइजर की वैक्सीन भारत के लिए इतनी अच्छी नहीं है. इसका कोल्ड चेन मेंटेंस और दाम दोनों भारत के लिहाज से ठीक नहीं है.

नई दिल्ली: जिस कोरोना की वैक्सीन का दुनिया को इंतजार था उसे लेकर अच्छी खबर आई है. यूके ने कोरोना के लिए फाइजर बायोएनटेक की वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी है. ऐसा करने वाला यूके पहला देश बन गया है जिसमें कोरोना वैक्सीन को मंजूरी दी है. यूके की दवा रेगुलेटर मेडिसिंस एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेग्युलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) इस वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों के आधार पर अथॉराइजेशन दिया है और अगले हफ्ते से यूके में टीका लोगों को दिया जाएगा. लेकिन क्या ये वैक्सीन भारत में आ पाएगी, क्या इसको लेकर भारत में तैयारी है.
वैक्सीन आ गई है और अगले हफ्ते से यूके के बाजारों में उपलब्ध होगी लेकिन क्या भारत के लिए ठीक है और भारत में आ सकती है. इस बारे में जानकारों की माने तो वैक्सीन आ सकती है जैसे यूके में ड्रग कंट्रोलर अथॉरिटी से अनुमति मिली है वैसे ही भारत में मिल सकती है. जानकारों के मुताबिक मिल सकती है लेकिन ये फैसला पूरी तरह डीसीजीआई यानी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया का होगा.
यूके रेगुलेटर ने किस आधार पर अनुमति दी एम्स पूर्व निदेशक डॉ एम सी मिश्रा ने कहा, "कोई इंडिपेंडेंट व्यक्ति में या आप कोई भी इस वैक्सीन को इंपोर्ट कर इस्तेमाल करना चाहते है तो उनको वही दस्तावेज देने होंगे जो यूके में दिए गए हैं. उसके आधार पर डीसीजीआई निर्णय करेगी कि इसको परमिट करना है या नहीं करना है.
डॉ एम सी मिश्रा ने कहा, भारत में प्राइवेट तौर पर ये वैक्सीन आ सकती है लेकिन सरकार के तौर पर सरकार इसको प्राथमिकता देगी मुझे ऐसा नहीं लगता है. कई खामियां है इस वैक्सीन में, लेकिन अथॉराइजेशन बिल्कुल ले सकते. कोई भी कंपनी करार कर जैसे स्पूतनिक 5 ने डॉ रेड्डी लैब से समझौता किया है, एस्ट्रेजनिका ने सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया से किया. वैसे ही फाइजर किसी कंपनी के साथ या अपने आप भी ला सकती है. इमरजेंसी अथॉराइजेशन के लिए वो डीसीजीआई के पास जा सकते है. वहीं जहां तक बात है ट्रॉयल की तो वो जारी है कई देशों में और अभी कुछ वक्त और चलेगा. इसी आधार पर यूके के रेगुलेटर ने अनुमति दी है.
भारत में किस आधार पर मिलेगा अप्रूवल एम्स के डॉ पुनीत मिश्रा ने कहा, "किसी भी वैक्सीन के लिए जरूरी चीज है वहां उस देश की रेगुलेटरी अथॉरिटी अप्रूव करें. अगर भारत में फाइजर के लाइसेंस के लिए अप्लाई करेगा तो जो भारत की रेगुलेटरी अथॉरिटी है वह भारत के संदर्भ में. फिर अथॉरिटी सोचेगी उसे दिया जा सकता है या नहीं. इसके लिए अथॉरिटी यह देखेगी कि आपने जो प्रमाण इकट्ठे किए हैं वह किस किस देश में किए हैं किस पॉपुलेशन पर किया है इस संदर्भ को देखने के बाद ही अनुमति दी जा सकती है."
वहीं क्या दुबारा इसके अथॉराइजेशन के लिए दुबारा ट्रायल की जरूरत होगी. इसपर भी फैसला सिर्फ डीसीजीआई ही कर सकता है.
हर किसी पर दवा का अलग असर होता है डॉ पुनीत मिश्रा का कहना है कि सामान्यता जब कभी हम किसी वैक्सीन को किसी देश में अथॉराइज करते हैं तो कुछ चीजों को देखते हैं. सबसे पहले देखते हैं कि उसकी सेफ्टी प्रोफाइल कितनी है उसकी एफीकेसी कितनी है और अगर बाहर कहीं ट्रायल हुआ है तो बाहर उन्होंने किस तरह की पॉपुलेशन पर क्या है. हो सकता है उन्होंने अफ्रीकन-अमेरिकन स्कोर लिया हो उस ट्रायल में या किसी और को तो कई सारी ड्रग्स का अलग-अलग रेस पर असर अलग होता है.
उन्होंने कहा, एशियन पर इसका अलग असर हो सकता है, अमेरिकन रेस पर अलग हो सकता है, अफ्रीकन-अमेरिकन पर अलग हो सकता है. बहुत सारे देशों में ऐसा होता है कि वह अपने यहां परीक्षण करते हैं. यह सफल हुआ तब भारत में इसकी अनुमति मिली. जहां तक कोविड की बात है इमरजेंसी अथॉराइजेशन कोई भी देश दे सकता है लेकिन जनरल पब्लिक के लिए अथॉरिजेशन देने से पहले रेगुलेटरी अथॉरिटी है, जो देखेगी हमारी आबादी और हमारी रेस के लिए क्या यह सुरक्षित है.
"फाइजर की वैक्सीन भारत के परिवेश में सूट नहीं करती" एम्स के पूर्व निदेशक डॉ एम सी मिश्रा के मुताबिक, फाइजर की वैक्सीन भारत के लिए इतनी अच्छी नहीं है. उनके मुताबिक इसका कोल्ड चेन मेंटेंस और दाम दोनों भारत के लिहाज से ठीक नहीं है. उन्होंने कहा, "फाइजर की वैक्सीन भारत के परिवेश में हमें सूट नहीं करती. इसकी कोल्ड चेन मैंटेंस दिक्कत है और दूसरी महंगी है ये. में ये समझता हूं कि हम अपनी वैक्सीन पर ज्यादा निर्भर रहेंगे. भारत में जो वैक्सीन ट्रायल चल रहे है अभी तक की जानकारी के मुताबिक वो भी इफेक्टिव है इसलिए उस पर निर्भरता ज्यादा होगी. वहीं कीमत भी ज्यादा असर रखती है."
डॉ एम सी मिश्रा ने कहा, 'कार मर्सिडीज भी है ऑडी भी है रोल्स रॉयस भी, मारुति भी और बाकी छोटी कार भी है. तो अगर में बड़ी गाड़ी अफॉर्ड नहीं कर सकता तो छोटी गाड़ी लूंगा वो भी चलती है. ऐसे ही वैक्सीन वो भी इफेक्टिव है, ये भी इफेक्टिव है, तो हम अपनी वैक्सीन पर ज्यादा निर्भर रहेंगे, इस पर हम उतना निर्भर नहीं रहेंगे.
कुछ ऐसा ही मानना है एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के डॉ पुनीत मिश्रा का. उनके मुताबिक इसकी स्टोरेज इसके लिए बड़ी वजह है. डॉ पुनीत मिश्रा ने कहा, "फाइजर एमआरएनए वैक्सीन है जिसके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है. लॉन्ग टर्म में इसके इफेक्ट क्या होने वाले हैं. दूसरी चीज यह है कि इस वैक्सीन को -70 डिग्री में रखने की जरूरत होती है. अभी तो भारत के दूरदराज इलाकों में हम देने की अगर बात करते हैं तो अमेरिका में भी अब सारी जगह यह स्टोरेज विकसित नहीं है. इस सब को देखते हुए यह कह सकते हैं कि अभी यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती."
दोनों जानकारों के मुताबिक, वैक्सीन की एफिकैसी और सेफ्टी पर कोई सवाल नहीं है. अथॉराइजेशन देने का काम ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया का है. वहीं इसकी स्टोरेज और दाम एक वजह है जिसकी वजह से भारत के लिए अभी ठीक नहीं है.
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Source: IOCL























