Siachen में 38 साल से लापता जवान का मिला शव, identification Disc से हुई पहचान
Siachen Warrior: 1984 को ऑपरेशन मेघदूत के तहत सियाचिन के ग्योंग्ला ग्लेशियर में एवलांच के कारण लापता होने वाले लांस नायक चंद्र शेखर का शव मिला है. उनकी पहचान आईडेंटिफिकेशन-डिस्क से की गई है.
Siachen Warrior: सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier) में 38 साल बाद मिले लांस नायक चंद्र शेखर (Lance Naik Chandra Shekhar) के पार्थिव शरीर को सेना ने सोमवार को लद्दाख (Ladakh) में श्रद्धांजलि अर्पित की. 1984 में दुनिया के सबसे ऊंचे रण-क्षेत्र सियाचिन में आए एक एवलांच (Avalanche) यानि बर्फीले तूफान के बाद से ही चंद्र शेखर लापता हो गए थे. इसी शनिवार को भारतीय सेना (Indian Army) की एक पैट्रोलिंग पार्टी ने ग्लेशियर में गस्त के दौरान उनके शव को बरामद किया था. जल्द ही सियाचिन-वॉरियर (Siachen-Warrior) का पार्थिव शरीर उनके पैतृक शहर उत्तराखंड (Uttarakhand) के हल्द्वानी (Haldwani) भेजा जाएगा जहां उनका परिवार रहता है.
भारतीय सेना की उत्तरी कमान के मुताबिक, 29 मई 1984 को ऑपरेशन मेघदूत के तहत कुमाऊं रेजीमेंट की एक टुकड़ी की तैनाती सियाचिन के ग्योंग्ला ग्लेशियर में की गई थी. चंद्र शेखर कुमाऊं रेजीमेंट की टुकड़ी का हिस्सा था. उसी दौरान वहां आए एवलांच के चलते चंद्र शेखर लापता हो गए थे.
38 साल बाद मिला पार्थिव शरीर
38 साल बाद पिछले हफ्ते भारतीय सेना की एक पैट्रोलिंग टुकड़ी को चंद्र शेखर का शव एक हटमैंट में पड़ा मिला. माना जा रहा है कि एवलांच आने की स्थिति में चंद्र शेखर ने इस हट में शरण ली होगी. लेकिन बर्फीली तूफान से ये हट भारी बर्फ में दब गई होगी और खिसक कर कहीं और पहुंच गई होगी. 38 साल बाद इस हट से बर्फ हटी तो चंदर शेखर का शव दिखाई पड़ा.
आईडेंटिफिकेशन-डिस्क से हुई पहचान
भारतीय सेना के मुताबिक, चंद्र शेखर के शव की पहचान उनके शरीर से मिली आईडेंटिफिकेशन-डिस्क से लगी. पहले सैनिकों को धातु की एक छोटी सी खास डिस्क दी जाती थी जिसपर उनका आर्मी नंबर लिखा रहता था. इस नंबर को फिर सेना के रिकॉर्ड से मैच कराया गया. तब जाकर शव की पहचान हो पाई.
ऑपेरशन मेघदूत हिस्सा थे चंद्र शेखर
सोमवार को लेह (Leh) स्थित फायर एंड फ्यूरी कोर (Fire and Fury Corps) के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने पार्थिव शरीर पर श्रद्धांजलि अर्पित की. अब चंद्र शेखर का पार्थिव शरीर उत्तराखंड के हल्द्वानी भेजा जाएगा. हल्द्वानी में उनकी पत्नी और दो बेटियां रहती हैं. दरअसल, वर्ष 1975 में चंद्र शेखर सेना में भर्ती हुए थे. 1984 में भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) के बीच सियाचिन का युद्ध लड़ा गया था. भारतीय सेना ने इस मिशन को ऑपेरशन मेघदूत नाम दिया था. इसी ऑपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot) के तहत चंद्र शेखर की तैनाती सियाचिन ग्लेशियर में की गई थी.
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