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शत्रुघ्न का छलका दर्द, 'देश में चल रही राजनीतिक उठा-पटक सभी को खामोश करने वाली हैं'
बीजेपी के सांसद और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने मौजूद राजनीतिक हालात पर कहा कि देश में जो माहौल चल रहा है, उसमें सभी 'खामोश' हैं. अपने 'खामोश' डायलॉग पर सिन्हा ने कहा 'अब लगता है कि हम सब खामोश हो गए हैं.'
![शत्रुघ्न का छलका दर्द, 'देश में चल रही राजनीतिक उठा-पटक सभी को खामोश करने वाली हैं' Satrughan Sinha said all the silent in the country’s current environment शत्रुघ्न का छलका दर्द, 'देश में चल रही राजनीतिक उठा-पटक सभी को खामोश करने वाली हैं'](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2017/11/13084529/satrughan-compressed.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
नई दिल्ली: बीजेपी के सांसद और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने मौजूद राजनीतिक हालात पर कहा कि देश में जो माहौल चल रहा है, उसमें सभी 'खामोश' हैं. अपने 'खामोश' डायलॉग पर सिन्हा ने कहा 'अब लगता है कि हम सब खामोश हो गए हैं.' साहित्य आजतक के तीसरे और अंतिम दिन शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा, "मैंने अपनी किताब सबसे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दी. पीएम नरेंद्र मोदी को इसलिए नहीं दे सका, क्योंकि तब तक यह आई नहीं थी."
शत्रुघ्न ने कहा कि वह लालकृष्ण आडवाणी के कहने पर राजनीति में आए और आडवाणी के आदेश पर ही मध्यावधि चुनाव में राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़कर राजनीतिक पारी की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में हारने के बाद किन हालात में उन्होंने अशोक रोड स्थित बीजेपी कार्यालय नहीं जाने की कसम खाई.
फिल्मों में खलनायकी की अपनी पहचान पर शत्रुघ्न ने कहा, "मैंने विलेन के रोल में होकर कुछ अलग किया. मैं पहला विलेन था, जिसके परदे पर आते ही तालियां बजती थीं. विदेशों के अखबारों में भी यह आया कि पहली बार हिन्दुस्तान में एक ऐसा खलनायक उभरकर आया, जिस पर तालियां बजती हैं. अच्छे-अच्छे विलेन आए, लेकिन कभी किसी का तालियों से स्वागत नहीं हुआ. ये तालियां मुझे निर्माताओं-निर्देशकों तक ले गईं. इसके बाद निर्देशक मुझे विलेन की जगह हीरो के तौर पर लेने लगे."
उन्होंने कहा, "एक फिल्म आई थी 'बाबुल की गलियां', जिसमें मैं विलेन था, संजय खान हीरो और हेमा मालिनी हीरोइन थीं. इसके बाद जो फिल्म आई 'दो ठग', उसमें हीरो मैं था और हीरोइन हेमा मालिनी थीं. मनमोहन देसाई को कई फिल्मों में अपना अंत बदलना पड़ा. भाई हो तो ऐसा, रामपुर का लक्ष्मण ऐसी ही फिल्में हैं."
सिन्हा ने कहा, "मैंने रोल को कभी विलेन के तौर पर नहीं, रोल की तरह ही देखा. मैं विलेन में सुधरने का स्कोप भी देखा करता था. मैं यंग जनरेशन को एक मंत्र देता हूं कि अपने आप को सबसे बेहतर साबित करके दिखाओ, यदि ऐसा नहीं कर सकते तो सबसे अलग साबित करके दिखाएं. आज खामोश सिग्नेचर टोन बन गया है. पाकिस्तान जाता हूं तो बच्चे कहते हैं -एक बार खामोश बोलकर दिखाओ." उन्होंने कहा, "अपनी वास्तविकता को मत खो."
सिन्हा ने कहा कि फिल्म 'शोले' और 'दीवार' ठुकराने के बाद ये फिल्में अमिताभ बच्चन ने कीं और वह सदी के महानायक बन गए. शत्रु ने कहा कि ये फिल्में न करने का अफसोस उन्हें आज भी है, लेकिन खुशी भी है कि इन फिल्मों ने उनके दोस्त को स्टार बना दिया. शत्रुघ्न के मुताबिक, ये फिल्में न करना उनकी गलती थी और इस गलती को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कभी भी इन दोनों फिल्मों को नहीं देखा.
साहित्य आजतक के तीसरे दिन तीसरे सत्र में शत्रुघ्न सिन्हा और पूर्व पत्रकार व लेखक भारती प्रधान ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन पुण्य प्रसून वाजपेयी ने किया. भारती प्रधान ने शत्रुघ्न की किताब 'एनीथिंग बट खामोश' पर की चर्चा.
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