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भीमा कोरेगांव केस में पुणे पुलिस का जवाबः हिंसा फैलाने की कोशिश कर रहे थे 'सामाजिक कार्यकर्ता'

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में पुणे पुलिस ने इन लोगों को देश में हिंसा और अराजकता पैदा करने की खतरनाक योजना का हिस्सा बताया है.

नई दिल्लीः महाराष्ट्र पुलिस ने भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार 5 लोगों को अपनी हिरासत में सौंपे जाने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में पुलिस ने इन लोगों को देश में हिंसा और अराजकता पैदा करने की खतरनाक योजना का हिस्सा बताया है. मामले में कोर्ट के दखल के बाद से ये लोग अपने घर पर नज़रबंद हैं.

क्या है मामला 1 जनवरी 2018 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा फैली थी. मामले की जांच के दौरान पुणे पुलिस ने पाया कि घटना देश में अस्थिरता फैलाने की बड़ी माओवादी साज़िश का हिस्सा है. जांच के दौरान गिरफ्तार कुछ लोगों के पास से मिले सबूतों के आधार पर 28 अगस्त को 5 सामाजिक कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरनॉन गोंजाल्विस, वरवरा राव और अरुण परेरा को देश के अलग-अलग शहरों से गिरफ्तार किया गया.

29 अगस्त को इतिहासकार रोमिला थापर समेत पांच लोगों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे जैसे बड़े वकील कोर्ट में पेश हुए और कहा कि सरकार लोकतंत्र का गला घोंट रही है. अपने से अलग विचार रखने वालों को निशाना बना रही है. सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार लोगों को पुलिस रिमांड में भेजे जाने पर रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि फिलहाल सबको उनके घर पर ही नज़रबंद रखा जाए.

पुणे पुलिस का जवाब अब पुणे पुलिस ने मामले पर जवाब दाखिल कर गिरफ्तारी को सही ठहराया है. पुलिस ने कहा है कि गिरफ्तार लोगों के पक्ष में याचिका दाखिल करने वाले लोग सिर्फ अपनी धारणा का हवाला दे रहे हैं. उन लोगों की धारणा है कि गिरफ्तार लोग 'सामाजिक कार्यकर्ता' हैं. वो देश के खिलाफ साजिश नहीं कर सकते. लेकिन पुलिस की कार्रवाई किसी धारणा पर नहीं, ठोस सबूतों पर आधारित है.

पुलिस ने बताया है कि ये लोग प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं. नक्सल गतिविधियों के लिए लोगों को भर्ती करने, पैसे और हथियार जुटाने जैसी गतिविधियों में शामिल हैं. पहले गिरफ्तार हो चुके रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग जैसे लोगों के पास से मिली लैपटॉप, पेन ड्राइव जैसी सामग्री की जांच से पता चला है कि देश में बड़े पैमाने पर हिंसा और अराजकता फैलाने की साज़िश चल रही थी. ये सब लोग उस साज़िश के अहम किरदार हैं.

महाराष्ट्र पुलिस ने सीलबंद लिफाफे में सबूत कोर्ट को सौंपे हैं. आग्रह किया है कि उन्हें देखने के बाद कोर्ट फैसला ले.

पुणे में हिंसा फैलाई पुलिस ने बताया है कि लंबे अरसे से अनुसूचित जातियों से जुड़े संगठन पुणे में विजय दिवस मनाते रहे हैं. हर साल ये शांतिपूर्वक होता है. इस साल माओवादियों ने हिंसा की साज़िश रची. 31 दिसंबर को इलगार परिषद नाम की सभा का आयोजन हुआ. इसका आयोजन कबीर कला मंच नाम के संगठन के बैनर तले किया गया. इलगार दरअसल 'यलगार' का बदला हुआ रूप है, जिसका मतलब होता है 'हमला'.

इलगार परिषद में 'जुल्म से मुक्ति' के लिए संघर्ष के नारे लगे. कथित जुल्म खत्म न हो तो 'समाज को जलाने' की बातें कही गयी. 'नई पेशवाई' (सरकारी तंत्र) को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया गया. नतीजा हुआ अगले दिन भयंकर हिंसा.

गिरफ्तारी की वजह राजनीतिक नहीं पुणे पुलिस ने कहा है इनकी गिरफ्तारी की वजह सरकार के खिलाफ राय रखना नहीं है. संविधान हर नागरिक को विचार रखने और उसे व्यक्त करने की आज़ादी देता है. राज्य सरकार इसकी कद्र करती है. प्रतिबंधित संगठन के ये लोग देश में आग लगाने की साज़िश में जुटे थे. इनकी गिरफ्तारी ठोस सबूतों के आधार पर हुई है.

हिरासत में सौंपने की मांग पुणे पुलिस ने कहा है कि इन लोगों को घर पर नज़रबंद रखने से जांच प्रभावित हो रही है. ये लोग घर पर रह कर भी दूसरों के संपर्क में हैं. इस तरह सबूतों को मिटाने का काम कर सकते हैं. इनकी हिरासत तुरन्त पुलिस को दी जाए. कोर्ट में कल इस मामले की सुनवाई करेगा.

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