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क्या OPS लोकसभा चुनाव 2024 में मोदी सरकार की बढ़ाएगा टेंशन, कर्ज माफी के बाद बना बड़ा मुद्दा

यूपी चुनाव के बाद ओपीएस का मुद्दा राजनीतिक रूप से बड़ा होता जा रहा है. सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों पर यह सीधा असर कर रहा है.

ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) को फिर से लागू किए जाने की मांग को केंद्र ने ठुकरा दिया है. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री भगवत कराड ने कहा- ओल्ड पेंशन स्कीम को 3 राज्यों ने लागू किया है, लेकिन हम लागू करने पर विचार नहीं कर रहे हैं. 

यूपी समेत 5 राज्यों में चुनाव के बाद हाल ही में हुए हिमाचल चुनाव में भी ओपीएस की मांग जोर पकड़ी थी. एक रिपोर्ट के मुताबिक पहाड़ी राज्य हिमाचल में बीजेपी की हार की बड़ी वजह ओपीएस फैक्टर भी रहा, जिसे कांग्रेस ने लागू करने का वादा किया था.

ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस क्या है?
2004 या उससे पहले तक कर्मचारियों के रिटायर होने के बाद सरकार उसे हर महीने पेंशन देती थी. इसे ओल्ड पेंशन स्कीम कहा जाता है. इसके तहत कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय उनके वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती थी. 

ओल्ड पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी की मृत्यु होने के बाद उनके परिजनों को पेंशन की राशि दी जाती थी. 2014 में मोदी सरकार ने एक बिल पास कर इसे बदल दिया और नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) लागू कर दिया.

ओपीएस और एनपीएस में अंतर क्या, 3 फैक्ट्स

  1. ओल्ड पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं होती था, जबकि एनपीएस लेने के लिए कर्मचारियों को वेतन से 10% (बेसिक+DA) की कटौती करानी होती है.
  2. ओपीएस में सरकार को अपनी ट्रेजरी से भुगतान करना पड़ता था, जबकि एनपीएस में शेयर बाजार से मिले लाभ के आधार पर भुगतान किया जाता है. 
  3. ओपीएस में रिटायर होने के बाद करीब 20 लाख तक के ग्रेजुएटी का प्रावधान था, एनपीएस में ग्रेजुएटी का अस्थाई प्रावधान है. 

ओपीएस गले की फांस, मगर वोटबैंक की बात निराली
- ओपीएस लागू करने वाले राज्यों को वित्त आयोग ने चिट्ठी लिखी है. आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने राजस्थान सरकार से पूछा है कि पैसा कहां से लाओगे? पेट्रोल सस्ता करने के नाम पर केंद्र से मुआवजा मांगते हो.

- ओपीएस लागू करने से केंद्र और राज्यों के बीच राजनीतिक तनाव भी उत्पन्न होगा, जिससे कई योजनाओं पर असर हो सकता है. इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन की योजना शामिल हैं.

ओपीएस चुनावी मुद्दा कैसे बना?
यूपी चुनाव में कांग्रेस और सपा ने ओपीएस को मुद्दा बनाया. इसी बीच राजस्थान की सरकार ने ओपीएस लागू कर दिया, जिससे पूरे देश में ओपीएस पर फिर से बहस छिड़ गई. इसके बाद कांग्रेस और गैर-बीजेपी दलों ने ओपीएस को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल कर लिया. 


क्या OPS लोकसभा चुनाव 2024 में मोदी सरकार की बढ़ाएगा टेंशन, कर्ज माफी के बाद बना बड़ा मुद्दा (Source- Social Media)

अब तक किन राज्यों में असर हुआ?
1. हिमाचल चुनाव- पहाड़ी राज्य हिमाचल में करीब 2 लाख सरकारी कर्माचारी हैं. कांग्रेस ने सरकार बनने पर यहां ओपीएस लागू करने की घोषणा की. पार्टी को इसका फायदा भी मिला और 68 में से 40 सीटों पर जीत मिली.


क्या OPS लोकसभा चुनाव 2024 में मोदी सरकार की बढ़ाएगा टेंशन, कर्ज माफी के बाद बना बड़ा मुद्दा

2. पंजाब चुनाव-2022 के मार्च में पंजाब चुनाव में AAP ने ओल्ड पेंशन स्कीम लाने का वादा किया. यहां पहले से कांग्रेस की सरकार थी. AAP को इसका फायदा भी मिला और 117 सीटों में से 92 पर जीत मिली. 

3. यूपी चुनाव- सबसे बड़े राज्य यूपी में  मुख्य विपक्षी पार्टी सपा ने ओल्ड पेंशन स्कीम को घोषणापत्र में शामिल किया. पार्टी को इसका जबरदस्त फायदा मिला और 111 सीटों पर जीत दर्ज की. जीत के बावजूद बीजेपी की सीटें घट गई, जिसका कारण ओपीएस को ही माना गया.

2024 से पहले बीजेपी की टेंशन बढ़ाएगा ओपीएस?
2024 में लोकसभा का चुनाव है. लोकसभा चुनाव तक राजस्थान, एमपी समेत 9 राज्यों में विधानसभा के भी चुनाव होंगे. देश में करीब 2 करोड़ 25 लाख सरकारी कर्मचारी हैं.

साथ ही जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां भी सरकारी कर्मचारियों की तादात ज्यादा हैं. ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि ओपीएस बड़ा चुनावी मुद्दा बनेगा.

अब तक कांग्रेस शासित राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड ने ओपीएस लागू कर दी है. हिमाचल में भी सरकार बनने के बाद सरकार ने ओपीएस लागू करने का ऐलान किया है. पंजाब की आप सरकार भी ओपीएस को लेकर नोटिफिकेशन जारी कर चुकी है.

कर्ज माफी की वजह से 3 राज्यों में हारी थी बीजेपी
2018 में किसान कर्ज माफी स्कीम को कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाया था. पार्टी ने राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में 2 लाख रुपए तक के कर्ज माफ करने का ऐलान किया था. इसका फायदा भी पार्टी को मिला और तीनों राज्यों में सरकार बनी.

किसान कर्ज माफी को देखते हुए केंद्र सरकार ने किसानों के लिए 6 हजार रुपए सालाना सहयोग राशि देने की घोषणा की, जिससे बीजेपी को 2019 चुनाव में राहत मिली थी.

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