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दिल्ली में लोग प्रदूषण से वैसे ही मर रहे हैं, मुझे फांसी मत दो- निर्भया कांड के दोषी अक्षय की गुहार

वकील ए पी सिंह के ज़रिए दाखिल इस याचिका में महात्मा गांधी का भी हवाला दिया गया है. दोषियों की तरफ से आखिरी कानूनी विकल्प के इस्तेमाल और उसमें फांसी की सज़ा की पुष्टि होने पर निचली अदालत डेथ वारंट जारी करती है.

नई दिल्ली: "सतयुग और त्रेता युग में लोग हज़ार साल तक जीते थे. द्वापर युग में भी सैकड़ों साल तक उम्र होती थी. अब कलयुग है. 50-60 साल तक की उम्र होती है. मुझे फांसी देकर उम्र और छोटी करने की क्या ज़रूरत है?" यह दलील 'निर्भया' के गुनहगार अक्षय ने दी है.

16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की सड़कों पर दरिंदगी के दोषी अक्षय ने फांसी की सज़ा के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर यह अजीब दलील दी है. इसके लिए उसने बकायदा वेद, पुराण, उपनिषद जैसे ग्रंथों का हवाला भी दिया है. उसकी विचित्र दलीलें यहीं खत्म नहीं हुईं. उसने दिल्ली के प्रदूषण को भी अपने ऊपर रहम का आधार बताया है. याचिका में लिखा गया है, "दिल्ली में बहुत ज़्यादा वायु प्रदूषण है. शहर गैस चैंबर बना हुआ है. पानी की क्वालिटी भी बहुत ख़राब है. इससे लोग वैसे ही मर रहे हैं. मुझे फांसी की सजा देने की क्या ज़रूरत है?

वकील ए पी सिंह के ज़रिए दाखिल इस याचिका में महात्मा गांधी का भी हवाला दिया गया है. कहा गया है, "महात्मा गांधी कहा करते थे कि जब कोई फैसला लेते समय शंका हो तो समाज के सबसे गरीब व्यक्ति का चेहरा याद करो. सोचो कि क्या इस फैसले से उसको कोई लाभ होगा. शंका दूर हो जाएगी. मुझे फांसी देने से किसी को कोई लाभ नहीं."

तीन दोषियों की रिव्यू ठुकरा चुका है SC

9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट तीन दोषियों मुकेश, विनय और पवन की पुनर्विचार याचिका खारिज कर चुका है. तब कोर्ट ने माना था कि दोषी ऐसी कोई बात रखने में नाकाम रहे, जिसकी वजह से फैसले को बदलना ज़रूरी लगे. उस वक्त अक्षय ने पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की थी. 5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों को फांसी की सज़ा दी थी. अब अक्षय ने फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है.

क्या थी घटना

16 दिसंबर 2012 को 23 साल की फिजियोथेरेपी छात्रा अपने एक दोस्त के साथ फिल्म 'लाइफ ऑफ़ पाई' देखने गई. रात साढ़े 9 बजे मुनिरका में वो एक चार्टर बस में सवार हुई. बस में सवार ड्राइवर समेत 6 लोग दरअसल मौज-मस्ती के इरादे से निकले थे. उनके पास उस रुट में बस चलाने का परमिट नहीं था. वो लड़की को बस के पिछले हिस्से में ले गए. जहां सब ने बारी-बारी से उसके साथ बलात्कार किया. विरोध करने पर उसके दोस्त की जम कर पिटाई की और उसे एक किनारे डाल दिया. गैंगरेप की इस पूरी घटना के दौरान इन लोगों ने पीड़िता के साथ जानवरों से भी बदतर बर्ताव किया. उसके गुप्तांग में लोहे का सरिया भी डाला गया. जिससे उसकी आंत बाहर निकल आई. शरीर के अंदरूनी हिस्सों को काफी नुकसान पहुंचा.

रात 11 बजे उन्होंने निर्भया और उसके दोस्त को बस से धक्का दे दिया. लड़की को बेहद गंभीर हालत में हस्पताल में भर्ती किया गया. उसके शरीर के अंदरूनी हिस्से जंग लगे लोहे की रॉड से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके थे. उसे बेहतर इलाज के लिए केंद्र सरकार के खर्चे पर सिंगापुर ले जाया गया. वहां 29 दिसंबर को उसकी मौत हो गयी.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

वारदात को अंजाम देने वाले 6 लोगों में से राम सिंह की जेल में मौत हो गयी थी. एक नाबालिग दोषी बाल सुधार गृह में 3 साल बिता कर रिहा हो गया. ऐसे में निचली अदालत और हाई कोर्ट में 4 लोगों पर मुकदमा चला. दोनों अदालतों ने चारों को फांसी की सज़ा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा.

5 मई 2017 को दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "ये घटना इस दुनिया की लगती ही नहीं. ये ऐसी दुनिया की घटना लगती है जहां इंसानियत मर चुकी हो. दोषियों की नज़र में पीड़िता इंसान नहीं, सिर्फ एक मज़े का सामान थी."

फांसी से कितनी दूर दोषी

दोषियों की तरफ से आखिरी कानूनी विकल्प के इस्तेमाल और उसमें फांसी की सज़ा की पुष्टि होने पर निचली अदालत डेथ वारंट जारी करती है. इस वारंट में फांसी की तारीख और समय तय किया जाता है. अभी दोषियों के पास क्यूरेटिव पेटिशन (संशोधन याचिका) दाखिल करने और राष्ट्रपति से दया की गुहार करने का विकल्प भी बचा है. ऐसे में निर्भया के साथ हैवानियत के दोषियों की फांसी में अभी भी कुछ वक्त लग सकता है.

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